मथुरा हिंसा : अधिकारी आउट, पॉलिटिक्‍स इन

Clashes in Mathuraमथुरा हिंसा से निपटने में नाकामी का दोष मढ़ कर दो वरिष्‍ठ अधिकारियों को हटा दिया गया है। दरअसल, नेताओं के ड्रामे का हिस्‍सा बनना अधिकारियों पर कितना भारी पड़ता है इसका एक और उदाहरण मथुरा के जवाहर बाग की हिंसा है जिसकी गाज आखिरकार जिलाधिकारी और वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक पर गिरी। इसी प्रकार मुजफ्फर नगर में भी अधिकारियों को नाप दिया गया था। राज्य सरकार ने ज़िलाधिकारी राजेश कुमार और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राकेश कुमार सिंह का तबादला कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी ने इन अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाया था। अब निखिल चंद्र शुक्ल नए डीएम और बबलू कुमार नए एसएसपी होंगे।मथुरा के जवाहर बाग़ में हुई हिंएसा में डीएम और एसएसपी के बीच तालमेल न होने की बात पर सरकार ने ये क़दम उठाया। अटकलें भी लगाई जा रही थीं कि दोनों अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है। घटना की जांच अलीगढ़ मंडल के आयुक्त चंद्रकांत को सौंपी गई है जिन्होंने रविवार को जांच का काम शुरू कर दिया और कई लोगों के बयान भी दर्ज किए।

गुरुवार को हुई इस घटना में अवैध क़ब्ज़ा हटाने गए पुलिस बल पर उपद्रवियों ने फ़ायरिंग और आगज़नी के अलावा पथराव भी किया था। मथुरा के एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष यादव की मौत हो गई थी। इसके अलावा अवैध कब्ज़ाधारियों के नेता रामवृक्ष समेत उनके 23 साथी भी घटना में मारे गए थे। इसे लेकर उत्तर प्रदेश में राजनीति भी गर्म हो गई है। भारतीय जनता पार्टी ने सोमवार को राज्य के सभी मुख्यालयों में घटना के विरोध में प्रदर्शन किया। भाजपा समेत दूसरे विपक्षी दलों ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। भारतीय जनता पार्टी ने तो सीधे तौर पर राज्य के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव की भूमिका पर सवाल उठाए हैं और उनका इस्तीफ़ा मांगा है।

नरेंद्र मोदी सरकार के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्‍य में नोएडा के सेक्‍टर 27 स्थित कैलाश सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में केंद्रीय संसदीय कार्य राज्‍य मंत्री मुख्‍तार अब्‍बास नकवी ने कहा कि मथुरा का बवाल प्रदेश सरकार की नाकामी का नतीजा है। सब कुछ शासन और प्रशासन की नाक के नीचे चलता रहा और सब आंख बंद किए बैठे थे।

राजनीति से मिलती है रामवृक्ष को आक्सीजन

सोशल मीडिया पर मथुरा कांड छाया है। वरिष्‍ठ पत्रकार मुकेश पंडित लिखते हैं, इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माने जा रहे रामवृक्ष यादव जैसे संकीर्ण धार्मिक ‘वृक्षों’ की जड़ें कौन सींचता है, यह किसी से छिपा नहीं है। वर्ष 2012 में मथुरा में जयगुरुदेव के निधन के बाद उनकी बारह हजार करोड़ रुपये की संपत्ति पर वर्चस्व को लेकर रामवृक्ष यादव, पंकज यादव (जयगुरुदेव का कार चालक) और स्वयंभू संत उमाकांत तिवारी में संग्राम हुआ,  उस वक्त सपा के एक शक्तिशाली नेता ने पंकज यादव को जयगुरुदेव आश्रम का कर्ताधर्ता बनवा दिया था। रामवृक्ष यादव तब जवाहर पार्क में अपने समर्थकों के साथ डेरा बनाकर रहने लगा और तीसरा दावेदार उमाकांत तिवारी मथुरा छोड़कर मध्य प्रदेश के इंदौर में जाकर जयगुरुदेव के नाम पर अपना अलग आश्रम चला रहा है। एक समय जयगुरुदेव का मैनेजर व डाक्टर रहे उमाकांत तिवारी के फोलोवर्स की संख्या काफी है।

बाबा जयगुरुदेव का भक्तों में साधारण आदमी से लेकर बड़े-बड़े खयातिनाम राजनेता भी शामिल रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, यूपी के पूर्व राज्यपाल रोमेश भंडारी, सपा नेता शिवपाल यादव का नाम भी उनके चेलों में शामिल हैं। यह हकीकत है,  देश में जिस भी साधु-संत के समर्थकों की संख्या बढ़ने लगती है, उनकी राजनीतिक पहुंच उतनी मजबूत होने लगती है। राजनेताओं के जाने-आने को लेकर साधु-संत अपने प्रचार और वर्चस्व के लिए जमकर इस्तेमाल करते हैं। भाजपा में साधु-संतों की संखया आज सर्वाधिक मानी जाती है। एक नाबालिक से दुष्कर्म के आरोप में जेल काट रहे आसाराम बापू की भाजपा से काफी नजदकियां रही हैं।

खुद सरकारें-राजनीतिक दल राजनीतिक पहचान के आधार पर वोट बैंक के लिए साधु-संतों को आक्सीजन प्रदान करतीं हैं। उन्हें हर प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। ऐसे में जो वास्तविक संत हैं, वह उपेक्षित रह जाते हैं, जबकि अपना जमीनी आधार तैयार करने वाले संत भीड़ के नाम पर राजनेताओं को अपने दरबार का दरबारी बना कर रखते हैं। हमारे नेता ऐसा करते वक्त यह भूल जाते हैं कि इन हरकतों से उन्हें तात्कालिक लाभ तो मिल जाता है, लेकिन जिस राज्य नामक संस्था का वह प्रतिनिधित्व करते हैं,  उसकी जड़ें खोखली होती चली जाती हैं। भीड़ से डरे नेता लोकतंत्र के महान वृक्ष को निरंतर खोखला करते रहे हैं। मथुरा पर आंसू बहाने वाले राजनेताओं को यह भी सोचना चाहिए कि रामवृक्ष को सींचने वाले वही हैं। मथुराकांड के दोषियों पर तो कार्रवाई होनी चाहिए,  उन “बहादुर” पुलिस वालों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, जो मुसीबत के वक्त अपने अफसरों को छोड़कर भाग जाते हैं।

लखनऊ के चर्चित आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर लिखते हैं-मथुरा की घटना गलत पैसे को हासिल करने की हवस और अनैतिक राजनैतिक शह का ज्वलंत उदहारण है। मेरी समझ के अनुसार इस घटना के सबसे बड़े गुनाहगार श्री शिवपाल सिंह यादव हैं।

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