महागठबंधन में शामिल होने या न होने का फैसला अब कांग्रेस को करना है, क्योंकि प्रमुख घटक राजद ने ‘लालू फॉर्मूले’ की शक्ल में गेंद उसके पाले में डाल दी है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने तेजस्वी यादव को साफ-साफ बता दिया है कि इस बार लोकसभा चुनाव की जंग किस रणनीति और किस एजेंडे के तहत लड़ी जाएगी.
महागठबंधन में सीट बंटवारे की पटकथा का अंतिम सीन दिल्ली में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की मुलाकात में लिख लिया गया है. अब इंतजार केवल कांग्रेस की हामी का है. अगर राहुल गांधी लालू प्रसाद के फॉर्मूले पर तैयार हो जाते हैं तो फिर ठीक, नहीं तो कांग्रेस को अपनी सवारी दूसरे रास्ते पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. राजद नेतृत्व की ओर से कांग्रेस को इसका साफ -साफ इशारा कर दिया गया है. मुलाकात में तेजस्वी ने बता दिया कि मायावती ,जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा एवं मुकेश सहनी का साथ लालू प्रसाद को चाहिए, इसलिए उनके लिए सम्मानजनक सीटें छोडऩे के बाद ही कांग्रेस की अतिरिक्त इच्छा पूरी की जाएगी. इस संदेश के साथ गेंद राहुल गांधी के पाले में डाल दी गई है और अब इस पर जल्द से जल्द फैसला लेना कांग्रेस की मजबूरी हो गई है. दरअसल, तेजस्वी यादव इस बार दिल्ली जाने सेे ठीक एक दिन पहले लालू प्रसाद से मिले और इसी मुलाकात में लालू प्रसाद ने तेजस्वी के सामने सीट बंटवारे का पूरा खाका खींच दिया. तेजस्वी को यह बता दिया गया कि राजद को नए वोट बैंक की जरूरत है. केवल ‘माय’ से ही राजद का चुनावी बेड़ा पार नहीं हो सकता. कुशवाहा, रविदास, मांझी एवं मल्लाहों के वोट अगर ‘माय’ के साथ जुटते हैं, तो चुनाव परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं. इसलिए लालू प्रसाद ने तेजस्वी से साफ कह दिया कि हम, बसपा, रालोसपा और वीआईपी पार्टी को पहले उनकी जमीनी ताकत के हिसाब से संतुष्ट करना जरूरी है. हां, उनकी अनाप- शनाप मांगें नहीं माननी हैं, यह बात भी कह दी गई है.
जानकार बताते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए लालू प्रसाद ने जो खाका खींचा है, उसमें उन्होंने राजद के लिए 20 से 22 सीटों पर मुहर लगाई है. इतना कह दिया है कि 20 से नीचे राजद नहीं जाएगा. तय की गई सीटों में अधिकतर वे सीटें हैं, जो परंपरागत रूप से राजद की रही हैं. जानकारी के अनुसार, राजद ने छपरा, महाराजगंज, मधेपुरा, अररिया, हाजीपुर, भागलपुर, बांका, मुंगेर, पाटलिपुत्र, वैशाली, बक्सर, पूर्णिया, जहानाबाद, दरभंगा, झंझारपुर, मधुबनी, आरा, उजियारपुर, खगडिय़ा, पश्चिम चंपारण, सीवान और नवादा को अपनी ए-वन सीटें माना है. इनमें दो सीटें ऐसी हैं, जिन पर महागठबंधन के हित में राजद दोबारा सोच-विचार कर सकता है. पहली सीट है दरभंगा, जिस पर कीर्ति आजाद के लिए लालू प्रसाद दोबारा विचार कर सकते हैं. दूसरी सीट है पूर्णिया, जहां से उदय सिंह के लिए रास्ता साफ किया जा सकता है. कीर्ति आजाद कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और उदय सिंह लगातार कांग्रेस के संपर्क में हैं. लालू प्रसाद ने कांग्रेस के लिए जो सीटें छोडऩे का फैसला किया है, उनमें सुपौल, सासाराम, औरंगाबाद, समस्तीपुर, पटना साहिब, कटिहार, वाल्मीकि नगर, बेगूसराय, किशनगंज एवं शिवहर शामिल हैं. इनमें सुपौल सीट कांग्रेस को तभी मिलेगी, जब वहां से उम्मीदवार बदला जाएगा. लालू प्रसाद पप्पू यादव एवं रंजीत रंजन को दोबारा दिल्ली नहीं जाने देना चाहते. कांग्रेस आलाकमान को भी इस बारे में बता दिया गया है.
राजद को लगता है कि पप्पू यादव एवं रंजीत रंजन का जीतना तेजस्वी यादव की भावी राजनीति के लिए ठीक नहीं है. इसके अलावा राजद ने अनंत सिंह और पप्पू खान जैसे नेताओं से भी कांग्रेस को परहेज करने के लिए कहा है. उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट, सीतामढ़ी एवं मोतिहारी सीट देना तय हुआ है. बसपा को जमुई एवं गोपालगंज सीट मिल सकती है. जीतन राम मांझी को गया एवं नालंदा सीट ऑफर की गई है. मुकेश सहनी को मुजफ्फपुर सीट से लडऩे के लिए कहा गया है. लालू प्रसाद ने महागठबंधन के लिए सीट बंटवारे का यही खाका तैयार किया है और उम्मीद की जा रही है कि एकाध फेरबदल के साथ इसी सूची पर अंतिम मुहर लग जाएगी. दरअसल, राजद के रणनीतिकार पार्टी के ‘माय’ वोट बैंक के साथ कुछ नए वोट जोडऩे का प्रयोग इस लोकसभा चुनाव में करना चाहते हैं. उनका मानना है कि लोकसभा में एक-दो सीट आगे-पीछे होने से कुछ बनने-बिगडऩे वाला नहीं है. असली चुनौती 2020 की जंग है, जिसके लिए राजद और तेजस्वी यादव को पूरी तरह तैयार करना है. लोकसभा चुनाव में नए वोट जोडऩे का प्रयोग अगर सफल रहा, तो आगे की राजनीति के लिए तेजस्वी को एक मजबूत आधार मिल जाएगा.
लालू प्रसाद जान रहे हैं कि दोनों ही चुनावों में उनका मुकाबला मोदी, पासवान और नीतीश की संयुक्त ताकत से है, इसलिए लड़ाई आसान नहीं रहने वाली है. कांग्रेस को भी यह बात समझाई जा रही है कि उत्तर प्रदेश में चोट खाने के बाद अब बिहार में भी झटका न लगे, इसलिए लालू प्रसाद का फॉर्मूला मान लेने में ही भलाई है. बेवजह 15 से 20 सीटों की मांग कांग्रेस को नुकसान के अलावा कुछ नहीं देगी. अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में साथ रहने में ही भलाई है. अगर बहकावे या फिर गलत राजनीतिक आकलन के चलते अलग हुए, तो फिर कांग्रेस का भगवान ही मालिक है. यही वजह थी कि गांधी मैदान की रैली में राहुल गांधी ने राजद के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया. लेकिन, कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेता बढ़-चढ़ कर दावे करने लगे हैं, जिसे राजद कोई तवज्जो नहीं दे रहा है. बताया जा रहा है कि तेजस्वी ने राहुल के साथ अपनी हालिया बैठक में साफ कर दिया कि साथ रहना है, तो लालू फॉर्मूले को मानना होगा, वरना आप अपना रास्ता अलग कर सकते हैं. राजद अपने प्लान बी के तहत बसपा और रालोसपा को खास तवज्जो देना चाहता है. खासकर मायावती के रविदास वोट बैंक का पूरा फायदा तेजस्वी उठाना चाहते हैं. किसी वजह से अगर कांग्रेस इस महागठबंधन में नहीं शामिल होती है तो बसपा, रालोसपा एवं हम को कुछ और सीटों का फायदा हो सकता है. ऐसे में कुछ सीटें राजद की भी बढ़ जाएंगी. लेकिन, लालू प्रसाद की इच्छा है कि कांग्रेस को मना लिया जाए और साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाए.
लालू नहीं चाहते कि महागठबंधन में फूट का रत्ती भर फायदा भी एनडीए को मिले. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही कांग्रेस भी लालू फॉर्मूले पर हामी भर देगी, क्योंकि वह यह सोच कर संतुष्ट हो जाएगी कि उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी नरेंद्र मोदी के लिए रेड कारपेट नहीं बिछा है. कांग्रेस को ज्यादा सीट मिले न मिले, लेकिन अगर एनडीए को नुकसान होता है, तो राष्ट्रीय राजनीति के मद्देनजर उसे राहुल की रणनीतिक जीत ही माना जाएगा. सीट बंटवारे के साथ ही लालू प्रसाद ने अपनी तरफ से चुनाव का एजेंडा भी तय कर दिया है. माना जा रहा है कि महागठबंधन आरक्षण बढ़ाने, बेरोजगारी, धर्मनिरपेक्षता, किसानों की कर्ज माफी और संविधान बचाओ जैसे मुद्दे आगे कर चुनावी अखाड़े में कूदेगा. तेजस्वी यादव आरक्षण और बेरोजगारी के मुद्दे को जोर-शोर से उठाएंगे. इसके अलावा यह भी तय हुआ कि सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी और नीतीश सरकार की विफलताएं उजागर की जाएंगी. मायावती और प्रियंका गांधी की रैलियां ज्यादा से ज्यादा हो सकें, यह प्रयास किया जाएगा. लालू प्रसाद के रिकॉर्ड भाषण प्रचार वाहनों के जरिये प्रसारित होंगे. देखा जाए, तो राजद ने अपने हिसाब से सब ‘सेट’ कर दिया है, अब बारी कांग्रेस की है. अगर साथ आई तो सब ठीक, नहीं तो फिर राजद का प्लान बी तैयार ही है.
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