नई दिल्ली।
सिंगापुर में 12 जून को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के बीच वार्ता होनी है। इस बैठक में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन भी शामिल हो सकते हैं। यह तीन दिवसीय बैठक दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही उत्तर कोरिया के लिए भी मायने रखती है क्योंकि इसके जरिये उत्तर कोरिया अभावों से उबर सकता है।
इसी सिलसिले में उत्तर कोरिया के एक वरिष्ठ अधिकारी किम योंग-चोल न्यूयॉर्क जा रहे हैं। वह 2000 के बाद ख़ुफ़िया विभाग के पूर्व प्रमुख रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इसकी पुष्टि भी की है। ट्रंप ने कहा कि बातचीत के लिए ‘साथ मिलकर एक बेहतर टीम’ बनाई गई है।
जब से किम जोंग उन ने उत्तर कोरिया की सत्ता संभाली है, उन्होंने बार-बार अपने देश के लिए अभावों से मुक्त भविष्य का वादा किया है। किम जोंग ने संकल्प व्यक्त किया कि उनके देशवासियों को फिर से 1994 से 1998 तक चले अकाल के दौर का फिर से सामना नहीं करना पड़ेगा। पिछले साल उन्होंने इसके लिए माफी भी मांगी थी कि वह अपने वादे को पूरा नहीं कर सके।
इस साल किम जोंग ने दावा किया कि उनका देश नाभिकीय शक्ति संपन्न बन गया है और अब देश को समृद्धि की राह पर ले जाने का काम किया जाएगा। हाल के समय में उनके तानाशाही तेवरों में जिस तरह कमी आई और उन्होंने दुनिया के साथ कूटनीतिक संबंध कायम करने की दिशा में कुछ कदम बढ़ाए हैं उससे पता चलता है कि वह उत्तर कोरिया की जनता की बढ़ती अपेक्षाओं को पूरा करने को लेकर दबाव का सामना कर रहे हैं।
त्रिपक्षीय सम्मेलन का प्रस्ताव 27 अप्रैल को सीमावर्ती कोरियाई गांव पनमुनजोम में मून और किम जोंग ने ही प्रस्तावित किया था। मून ने रविवार को एक बार फिर इस बैठक के होने की उम्मीद जताई। इससे पहले रविवार को मून और किम जोंग ने अपनी दूसरी और औचक मुलाकात की थी।
डोनल्ड ट्रंप ने कुछ संदेह जताते हुए प्रस्तावित मुलाक़ात को पिछले हफ़्ते रद्द कर दिया था, जिसके बाद इस पर संशय बढ़ गया था, लेकिन अब दोनों देश मिलकर शिखर सम्मेलन की तैयारी कर रहे हैं। शिखर सम्मेलन से उत्तर कोरिया क्या चाहता है, जनरल किम योंग-चोल उन मुद्दों को रखेंगे। इन्हीं पर सम्मेलन को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है।
ऊर्जा का संकट
दक्षिण कोरिया जितनी बिजली का उत्पादन करता है, उसका महज पांच प्रतिशत ही उत्तर कोरिया उत्पादित कर पाता है। उत्तर कोरिया में यात्रियों को घंटों ट्रेनों में फंसना रहना पड़ता है, क्योंकि बिजली संकट के कारण ट्रेनें जहां की तहां खड़ी हो जाती हैं।
भोजन की समस्या
उत्तर कोरिया में 41.8 करोड़ लोग भोजन के लिए सरकारी राशन पर निर्भर हैं। ये सभी खाद्य असुरक्षा और कम पोषण के शिकार है। वैश्विक भूख सूचकांक में उत्तर कोरिया का स्थान अच्छा नहीं है। 2016 में इस आधार पर 118 देशों की सूची जारी की गई थी। इसमें उत्तर कोरिया 93वें स्थान पर था।