नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर की आजादी के नाम पर हिंसा को बढ़ावा देने वाले अलगाववादियों की सुविधाएं अब बंद हो सकती हैं। उनकी सुरक्षा पर पिछले पांच वर्षों में 506 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार हुर्रियत और अलगाववादियों को दी जा रही सरकारी सुविधाओं पर रोक लगा सकती है। लगातार मांग उठ रही है कि सुविधाएं बंद की जाएं। अब केंद्र सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर सकती है। अलगाववादियों को मिलने वाले हवाई टिकट,  कश्मीर से बाहर जाने पर होटल और वाहनों जैसी सुविधाएं वापस ली जा सकती हैं। सरकार ने साफ कर दिया है कि कश्मीर में शांति लाना प्राथमिकता है लेकिन आतंकवाद से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उधर, राजनाथ सिंह ने मंगलवार को नरेंद्र मोदी से करीब एक घंटे मुलाकात की और शांति बहाली के मकसद से कश्मीर गए ऑल पार्टी डेलिगेशन की तमाम बैठकों का ब्योरा दिया। कश्मीर में डेलिगेशन की अलगाववादियों और हुर्रियत नेताओं से बात नहीं हो पाई थी। गिलानी ने मेंबर्स को खिड़की से ही लौटा दिया था। इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में गृह मंत्री ने तल्ख लहजे में कहा था, ”बातचीत के लिए हमारे दरवाजे ही नहीं, रोशनदान तक खुले हैं।”

अलगाववादियों की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों को भी वापस लिए जाने की मांग उठी है, लेकिन इस पर फैसला जम्मू-कश्मीर सरकार को लेना है। फिलहाल अलगाववादियों की सुरक्षा के लिए 900 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार के सूत्रों के मुताबिक अलगाववादियों पर हो रहे खर्च का कुछ हिस्सा केंद्र उठाता रहा है। केंद्र अब इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है। जम्मू-कश्मीर सरकार कुल खर्च का लगभग दस प्रतिशत उठाती है।

एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट पर भरोसा करें, तो पिछले पांच सालों में जम्मू कश्मीर सरकार ने अलगाववादियों की सुरक्षा पर 506 करोड़ रुपये खर्च किए। सरकार ने पांच सालों में इन लोगों को होटलों में ठहराने पर ही लगभग 21 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इन्हीं खर्चों को देखते हुए अलगाववादियों को दी जा रही सरकारी सुविधाएं बंद किए जाने की मांग उठ रही है।