अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली।

पिछले कई महीनों से डोकलाम मुद्दे पर चला आ रहा भारत और चीन के बीच तनाव कम हो गया। सोमवार को दोनों देशों ने अपने-अपने सैनिकों को वहां से हटाने की घोषणा की। याद रहे इस इलाके में दोनों देशों की सेनाएं जून से तैनात थीं। निश्चित रूप से डोकलाम पर यह समाधान फौरी तौर पर कहा जा सकता है, लेकिन इससे वैश्विक स्तर पर भारत की छवि मजबूत हुई है। भारत सरकार भी लगातार डोकलाम मुद्दे पर कहता रहा है कि वह इस गतिरोध का हल शांतिपूर्ण तरीके से करने के पक्ष में है। हालांकि,चीन इस मामले पर अड़ा हुआ था कि डोकलाम से पहले भारत अपने सैनिकों को अपनी सीमा में बुलाए, तभी कोई सार्थक बातचीत हो सकती है। चीन की बातों को नजरअंदाज करते हुए भारत अपने सैनिकों को वापस बुलाने को राजी नहीं था। भारत का साफ कहना था कि विवादित क्षेत्र से चीन अगर अपने सैनिकों को हटाएगा तभी भारत की सेनाएं भी अपनी सीमा में वापस लौटेगी।

खैर फिलहाल डोकलाम विवाद पर विराम तो लग गया है कि लेकिन चीन का कहना है कि उसके सैनिक उस इलाके में बने रहेंगे, गश्त लगाते रहेंगे, और वहां चीन की संप्रभुता के दावे को जताते रहेंगे। हालांकि, यह स्थिति पहले भी थी। डोकलाम एक विवादित क्षेत्र है और इसपर चीन और भूटान दोनों अपना दावा जताते रहे हैं। लेकिन ताजा विवाद तब पैदा हुआ जब चीन ने वहां सड़क बनानी शुरू कर दी। एक ऐसी जगह जिस पर दो देश लंबे समय से अपना दावा जता रहे हैं। फिर सवाल उठता है कि आखिर एक विवादित स्थान पर किसी प्रकार का स्थायी निर्माण करने का औचित्य क्या है। भूटान को भी चीन की यह हरकत नागवार गुजरा, लिहाजा उसने भारत को अपनी पीड़ा बताई। क्योंकि वह राजनयिक और सुरक्षा संबंधी मामलों में भारत पर निर्भर है। फिर भारत ने वही किया जो डोकलाम में यथास्थिति को बदलने के चीन के प्रयास को रोकने के लिए किया जाना चाहिए था। भारतीय सैनिकों ने चीन की तरफ से हो रहा सड़क-निर्माण का कार्य रोक दिया और वहीं जम गए। तब से कोई सवा दो महीने के दौरान चीन के विदेश मंत्रालय और खासकर चीन के राज्य-नियंत्रित मीडिया ने भारत को डराने-धमकाने वाली बातें बार-बार कहीं।

बहरहाल, भारत और चीन एशिया के दो महत्वपूर्ण और बड़े देश हैं। इन्होंने डोकलाम मुद्दे पर जिस समझदारी का परिचय दिया वह तारीफ योग्य है। हालांकि ब्रिक्स की शिखर बैठक की तारीखें भी नजदीक आ रही थी जो बीजिंग में होनी है। इसमें प्रधानमंत्री मोदी को भी शामिल होना है। वैश्विक रणनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि डोकलाम गतिरोध अभी महीनों खिंच सकता है। ऐसे में क्या यह सिर्फ संयोग है कि ब्रिक्स की शिखर बैठक से कुछ ही दिन पहले गतिरोध दूर हो गया! चीन को अपनी जिद से पीछे हटना पड़ा, इससे उसकी ताकत कम नहीं हो जाती, पर भारत भी दुनिया को, खासकर पड़ोसी देशों को खुद के एक क्षेत्रीय शक्ति होने का अहसास कराने में सफल रहा। अगर इस समाधान से चीन ने खुद को आहत महसूस किया होगा, तो इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह बाद में कहीं कोई और मोर्चा खोल सकता है। इसलिए भारत को सावधान रहना होगा।