अभिषेक रंजन सिंह

जीएसटी से फीकी नहीं हुई हीरे की चमक
सूरत की पहचान डायमंड और टेक्सटाइल इंडस्ट्री से है जिसका गुजरात के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। 1965 में पहली बार उत्तर गुजरात के पालनपुर के रहने वाले कीर्तिलाल मणिलाल मेहता ने यहां डायमंड फैक्ट्री लगाई। बीते पांच दशकों में सूरत न सिर्फ भारत बल्कि विश्व में हीरे का बड़ा बाजार बन गया। सूरत की हीरे फैक्ट्रियों में पांच लाख से अधिक मजदूर काम करते हैं। भारत में दस फीसदी हीरों का घरेलू कारोबार होता है जबकि नब्बे फीसदी निर्यात होता है। गुजरात के विकास में डायमंड और टेक्सटाइल इंडस्ट्री का बड़ा योगदान है। डायमंड एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बाबूलाल गौदानी जीएसटी और नोटबंदी को देश हित में सही मानते हैं। उनके मुताबिक जीएसटी लागू होने के बाद सूरत में हीरा कारोबारियों ने कोई प्रदर्शन नहीं किया।

विकास कार्यों का मिलेगा इनाम
सूरत में वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु भट्ट कहते हैं, ‘दक्षिण गुजरात में न तो पाटीदार कोई फैक्टर है और न जीएसटी।’ सूरत में विधानसभा की कुल सोलह सीटें हैं जिनमें मांगरोल, मांडवी और महुवा अनुसूचित जनजाति और एक सीट बारडोली अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। पंद्रह पर भाजपा का कब्जा है। एक जदयू (शरद गुट) के पास है। क्या इस बार भाजपा अपनी सीटों को कायम रख पाएगी? इस बारे में हिमांशु भट्ट बताते हैं, ‘सूरत में जीएसटी के खिलाफ कपड़ा कारोबारियों ने ही सबसे ज्यादा विरोध किया था। मजूरा विधानसभा क्षेत्र में टेक्सटाइल ट्रेडर्स की संख्या अधिक है। करीब चालीस हजार मतदाता है जो कपड़ों के कारोबार से जुड़े हैं। जबकि पूरे विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या ढाई लाख है। अगर ये एकमुश्त होकर भी कांग्रेस को वोट देंगे तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दक्षिण गुजरात में विधानसभा की कुल 35 सीटों में 28 पर भाजपा काबिज है। पच्चीस साल पहले इन इलाकों से भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलती थी। आज सत्तर फीसदी सीटों पर भाजपा छाई है। इसकी सबसे बड़ी वजह आदिवासी इलाकों में हुए विकास कार्य और आरएसएस की वर्षों की मेहनत है।

तापी जिले के भाजपा अध्यक्ष जयराम गावित का दावा है कि ‘इस बार भी गुजरात में भाजपा की सरकार बनना तय है। पार्टी को दक्षिण गुजरात में पहले से अधिक सीटें मिलेगी।’ इसके पीछे उनका तर्क है कि ‘भाजपा के शासन में पूरे गुजरात का समग्र विकास हुआ है। कांग्रेस के समय आदिवासी इलाकों में बुनियादी सुविधाएं नहीं थी। लोगों को इलाज के लिए सूरत के अस्पतालों में दाखिल होना पड़ता था। कांग्रेस बेरोजगारी को मुद्दा बना रही है, लेकिन 2016-17 में 67,000 युवाओं को सरकारी नौकरी मिली।’ कांग्रेस उपाध्यक्ष और तापी जिले की व्यारा सुरक्षित सीट से विधायक पूना भाई गामित भाजपा की दलीलों को खारिज करते हुए कहते हैं, ‘ दक्षिण गुजरात में ज्यादातर डैम कांग्रेस की सरकार में बने हैं। यूपीए सरकार में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तुषार चौधरी मनमोहन सिंह कैबिनेट में मंत्री थे। अपने मंत्रित्वकाल में उन्होंने दक्षिण गुजरात के विकास के लिए 400 करोड़ रुपये की कई योजनाएं शुरू कीं। दक्षिण गुजरात में जहां किसानों से जुड़ी कई समस्याएं हैं वहीं बेरोजगारी की वजह से यहां के लोगों का दूसरे शहरों में पलायन हो रहा है।’

उज्जवला योजना से उत्साहित भाजपा
आपने देश में आदिवासी इलाकों में कई ऐसे गांव देखे होंगे जहां आज भी लोगों को बुनियादी सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं। न अच्छी सड़कें हैं और न ही पीने को साफ पानी। लेकिन गुजरात के आदिवासी इलाकों में आपको सभी गांवों में पक्की सड़कें मिलेंगी और हर गांवों में स्कूल। शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां बिजली न पहुंची हो। सूरत जिला मुख्यालय से अस्सी किलोमीटर दूर आदिवासी गांव वांकल मांगरोल विधानसभा क्षेत्र में आता है। आबादी लगभग पांच हजार है। यहां हमारी मुलाकात हुई हीरल गणपत से। बारहवीं पास हीरल सूरत के अस्पताल में नौकरी करती है। उसका भाई रितेश गांव के एक स्कूल में पढ़ता है। हीरल बताती है, ‘उसके इलाके में पहले एक भी कॉलेज नहीं था। लेकिन भाजपा की सरकार बनने के बाद मांगरोल विधानसभा में कई कॉलेज खुले। यहां पढ़ने वाले बच्चों को शहर जाना नहीं पड़ता है। वांकल गांव में लगभग सभी घर पक्के बने हुए हैं।’ शीला को प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत एलपीजी सिलिंडर और चूल्हा मिले छह महीने हुए हैं। शीला बताती हैं कि इस योजना से गांव में ज्यादातर परिवार लाभान्वित हुए हैं। गौरतलब है कि मांगरोल सुरक्षित सीट से भाजपा ने इस बार भी आदिवासी कल्याण मंत्री गणपत भाई वसावा पर दांव लगाया है। वहीं कांग्रेस ने बाबू भाई वसावा को मैदान में उतारा है।

विकास की कहानी बाबेन पंचायत की जुबानी
सूरत से पैंतीस किलोमीटर दूर बारडोली विधानसभा क्षेत्र का स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अहम स्थान है। बारडोली किसान सत्याग्रह आंदोलन के दौरान बल्लभभाई पटेल को स्थानीय लोगों ने ‘सरदार’ की उपाधि दी थी। बारडोली सविनय अवज्ञा आंदोलन का भी केंद्र था। यहां सरदार बल्लभभाई पटेल का आश्रम भी है, जहां महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, मुहम्मद अली जिन्ना समेत स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कई नेता भी आ चुके हैं। बारडोली की पहचान एशिया की सबसे बड़ी चीनी मिल से भी होती है। 1955 में स्थापित यह चीनी मिल गुजरात की पहली सहकारी चीनी मिल है। यहां प्रतिवर्ष 17 लाख टन गन्ने की पेराई होती है जिससे ढाई लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन होता है। इस चीनी मिल में पचास हजार लोग काम करते हैं, जिनमें बारडोली के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के मजदूर भी शामिल हैं। हालिया वर्षों से बारडोली की पहचान में एक और नाम जुड़ गया है बाबेन पंचायत। यह गुजरात की सबसे विकसित पंचायत है और स्वच्छता के मामले में पुरस्कृत भी। पाटीदार बहुल बाबेन पंचायत की आबादी दस हजार हैं। जिनमें बड़ी संख्या एनआरआई की भी है। यहां के ज्यादातर लोग विदेशों में जरूर रहते हैं लेकिन उनका जुड़ाव अपनी जड़ों से है। ये लोग अपने गांव कई मौकों पर आते हैं लेकिन चुनाव के समय तो जरूर आते हैं मतदान करने। बाबेन पंचायत की सरपंच फाल्गुनी बेन का कहना है, ‘दूसरे राज्यों के गांवों को देखें और बाबेन पंचायत को, आपको काफी फर्क नजर आएगा।’ पाटीदारों के लिए अनामत की मांग करने वाले हार्दिक पटेल के आंदोलन को मणिता बेन दिशाहीन करार देती हैं। वह कहती हैं, ‘हम भी पाटीदार हैं और हमें पता है कि आरक्षण नहीं मिल सकता। वैसे भी हमें अनामत की जरूरत इसलिए नहीं है, क्योंकि हमारे पास जमीनें, नौकरी और कारोबार हैं। आरक्षण का लाभ आदिवासी और वंचित समुदायों का मिलना चाहिए।’ 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले यह बारडोली सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी। 2012 के चुनाव में भाजपा के ईश्वर भाई परमार ने कांग्रेस के नितिन राणा को हराया था। 1995 से 2012 तक इस सीट पर तीन बार कांग्रेस का और दो बार भाजपा का कब्जा रहा है। भाजपा ने इस बार भी बारडोली सीट से ईश्वर भाई परमार को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने इस बार तरुण वाघेला पर दांव लगाया है।

रूठे हैं टूटे नहीं
जीएसटी लागू होने के बाद इसके खिलाफ सबसे ज्यादा विरोध सूरत के कपड़ा कारोबारियों ने किया। कई दिनों तक बाजार भी बंद रखे। राहुल गांधी ने सूरत में रैलियां कर जीएसटी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर तल्ख टिप्पणियां कीं। हालांकि जीएसटी को लेकर अब कपड़ा कारोबारियों के रुख में बदलाव आया है। फेडरेशन आॅफ सूरत टेक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सुरेंद्र जैन बताते हैं, ‘कपड़ा पर कभी कोई टैक्स नहीं था। हमें नर्सरी से सीधे कॉलेज में भेज दिया गया है। व्यापारियों को टैक्स से कोई आपत्ति नहीं है। अगर विरोध है तो इसकी प्रक्रिया से। व्यापारी वर्ग भी टैक्स की चोरी नहीं चाहते हैं। जीएसटी को लेकर हमें सरकार की नीयत पर शक नहीं है।’ जीएसटी पर हो रही राजनीति से सूरत स्थित मिलेनियम मार्केट के अध्यक्ष गुरुमुख भाई कोंगवानी बेहद खफा हैं। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहते हैं, ‘राहुल गांधी सूरत में जीएसटी का रोना रोते हैं लेकिन जीएसटी काउंसिल की बैठक में कांग्रेस आपत्तियां क्यों दर्ज नहीं कराती। जब सत्ता पक्ष और विपक्ष ने मिलकर जीएसटी पारित कराया तो उसके लिए सिर्फ भाजपा ही दोषी क्यों हैं?’ कपड़ा कारोबारी रमेश पंजाबी के मुताबिक जीएसटी को लेकर सूरत के टेक्सटाइल ट्रेडर्स भाजपा से रूठे तो जरूर हैं लेकिन टूटे नहीं हैं।

मिस्ड कॉल बना वोटर कॉल
2015 में भाजपा ने मिस्ड कॉल के जरिये व्यापक सदस्यता अभियान चलाकर विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा किया था। सदस्यता अभियान के इस तरीके को लेकर विपक्षी पार्टियों ने भाजपा पर तंज भी कसे थे। लेकिन गुजरात चुनाव में भाजपा का यही मिस्ड कॉल वोटर कॉल में तब्दील हो गया है। भाजपा किस तरह मिस्ड कॉल के जरिए पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने वालों से संपर्क साध रही है, यह देखने को मिला नवसारी के भाजपा सांसद सी.आर. पाटिल के आवास पर। हमारी मुलाकात हुई आशीष सारवा से। आशीष बीजेपी कॉल सेंटर के कोआॅर्डिनेटर हैं। उनकी देखरेख में सौ लोगों की टीम सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक उन लोगों को फोन करती है जिन्होंने 2015 में मिस्ड कॉल के जरिये भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। इस कॉल सेंटर से प्रतिदिन 7,500 लोगों को फोन कर भाजपा के लिए जनसंपर्क करने की अपील की जाती है। पाटिल बताते हैं कि मिस्ड कॉल के जरिये भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वालों का पूरा समर्थन इस बार मिल रहा है। सभी जिलों में बीजेपी कॉल सेंटर बनाए गए हैं।

बाइब्रेंट गुजरात का स्याह पक्ष!
भरूच जिले में अंकलेश्वर एशिया का सबसे बड़ा औद्योगिक शहर है। करीब चार हजार एकड़ में फैले इस औद्योगिक क्षेत्र में दो हजार छोटी-बड़ी केमिकल, टेक्सटाइल, रिफायनरी, इंजीनियरिंग फैक्ट्रियां हैं। इस औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना सत्तर के दशक में कांग्रेस के शासन में हुई थी। बीते एक दशक में यहां 400 औद्योगिक इकाईयां बंद हुई हैं। 1600 फैक्ट्रियां ही चालू हालत में हैं। अंकलेश्वर इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष महेश पटेल वर्ष 2006 में लागू नई पर्यावरण नीति को फैक्ट्रियों के बंद होने की वजह मानते हैं। उनके मुताबिक, ‘नरेंद्र मोदी जब मुख्यमंत्री थे उस वक्त उन्होंने कई एमओयू पर दस्तखत किए थे। लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार की रस्साकशी की वजह से अंकलेश्वर की औद्योगिक इकाइयों को नुकसान पहुंचा।’ बतौर मुख्यमंत्री मोदी ने साल 2003 में बाइब्रेंट गुजरात मिशन शुरू किया। उनकी मंशा थी कि राज्य में बड़े पैमाने कल-कारखाने स्थापित हों। लेकिन 2006 की नई पर्यावरण नीति से उनके इस अभियान को धक्का पहुंचा। नतीजतन 2011 से 2014 के बीच बड़ी संख्या में फैक्ट्रियां बंद हो गर्इं। बंद होने वाली फैक्ट्रियों में सबसे अधिक टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग और केमिकल फैक्ट्रियां थीं। नई पर्यावरण नीति से निराश महेश पटेल बताते हैं, ‘पहले फैक्ट्री लगाने से पहले स्टेट पॉल्यूशन बोर्ड से अनुमति लेनी पड़ती थी। अब सेंट्रल पॉल्यूशन बोर्ड से मंजूरी लेनी पड़ती है। इससे इंस्पेक्टर राज बढ़ा और नए कारखाने लगाने में कई दिक्कतें पेश आर्इं।’ अंकलेश्वर से छाछठ किलोमीटर दूर दहेज में एक नया इंडस्ट्रियल एरिया विकसित किया जा रहा है। इसके लिए यहां स्थानीय किसानों की जमीन अधिगृहीत की गई हैं। पिछले कुछ वर्षों से स्थानीय किसान उचित मुआवजे को लेकर आंदोलन भी कर रहे हैं। किसान हित संरक्षक समिति के अध्यक्ष मान सिंह परमार के मुताबिक, ‘इस बार चुनाव में किसानों से जुड़ी स्थानीय समस्याएं एक बड़ा मुद्दा हैं।’ भरूच जिले में विधानसभा की कुल पांच सीटें हैं क्रमश: जंबुसर, वागरा, झगड़िया (सुरक्षित),भरूच और अंकलेश्वर। चार पर भाजपा का कब्जा है। झगड़िया सीट से जेडीयू (शरद गुट) के आदिवासी नेता छोटू भाई वसावा विधायक हैं। जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां आदिवासी,ओबीसी क्षत्रिय, राजपूत/दरबार, कोली पटेल और मुसलमानों की संख्या अधिक है। भरूच सांप्रदायिक रूप से काफी संवेदनशील जिला है। नब्बे के दशक तक यहां किसी न किसी सवाल पर सांप्रदायिक तनाव पैदा हो जाते थे। निमेश राणा बताते हैं, ‘पच्चीस साल पहले भरूच में अक्सर कर्फ्यू रहता था। लेकिन आज किसी बाईस साल के नौजवान से पूछें कि कर्फ्यू क्या होता है तो वह आपको नहीं बता पाएगा क्योंकि उसने अपने जीवन में कभी कर्फ्यू देखा ही नहीं है।’

छोटू भाई वसावा की राह आसान नहीं!
दक्षिण गुजरात के जाने माने दबंग आदिवासी नेता छोटू भाई वसावा सातवां चुनाव लड़ रहे हैं। अब तक हर बार जीतते आए हैं। इस बार मुश्किल में हैं। राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल को वोट देने के कारण जदयू ने उन्हें निकाल दिया। इस बार जदयू (शरद गुट) से उम्मीदवार हैं। भाजपा के अलावा जदयू प्रत्याशी भी मैदान में है।