नई दिल्ली।

पत्रकारिता या मीडिया एक ऐसा सूरज है जो हमें अंधकार से प्रकाश में लाता है। उसी के जरिये सूचनाएं हम तक पहुंचती हैं। यही नहीं, लोकतंत्र के तीन स्‍तंभ व्‍यवस्‍थापिका, कार्यपालिका और न्‍यायपालिका यदि फेल हो जाते हैं तो मीडिया ही लोकतंत्र को बचाता है। इसीलिए उसको लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। पिछले कुछ सालों में मीडियाकर्मियों पर लगातार हमले होते रहे हैं। इसी कड़ी में बेंगलुरु की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या भी जुड़ गई है।

गौरी लंकेश की हत्या

गौरी लंकेश पत्रिका की संपादक की पिछले 5 सितंबर को उनके ही घर में हत्या कर दी गई। बदमाशों ने उन पर 7 राउंड गोलियां बरसाई थीं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। बेंगलुरु की गौरी एक वरिष्ठ पत्रकार थीं और कई अन्य प्रकाशनों की मालकिन थी। एक मानहानि के मामले में वह दोषी पाई गई थीं। गौरी की हत्या के बाद पक्ष-विपक्ष की ओर से इस हत्या की आलोचना तो की गई, लेकिन तुरंत राजनीति भी होने लगी।

गौरी लंकेश की हत्या पर भाजपा को निशाने लेते हुए राहुल गांधी ने कहा कि खास विचारधारा को थोपने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि कुछ लोगों को तथ्यविहीन मुद्दों पर राजनीति करने की आदत पड़ चुकी है।

बता दें कि गौरी लंकेश हत्या मामले में इस तरह की खबरें आने लगी हैं कि दक्षिणपंथी संगठनों ने उन्हें धमकी दी थी। दरअसल, इसके पीछे ये आधार बनाया गया कि भाजपा सांसद प्रहलाद जोशी ने गौरी लंकेश पर मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था,  जिसमें उन्हें कोर्ट ने दोषी माना था। कर्नाटक सरकार ने पत्रकार हत्याकांड को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए पूरे मामले की जांच एसआइटी को सौंप दी है।

पत्रकारों की हत्या के अन्‍य मामले

बिहार के सीवान में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के लिए काम करने वाले पत्रकार राजदेव रंजन की भी 13 मई 2016 को दफ्तर से लौटते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। देश के प्रमुख हिंदी न्यूज चैनलों में एक आजतक के विशेष संवाददाता अक्षय सिंह की भी मध्य प्रदेश में झाबुआ के पास मेघनगर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी।

मध्य प्रदेश के ही बालाघाट में 19 जून 2015 में एक खोजी पत्रकार संदीप कोठारी का अपहरण कर लिया गया था। उन्‍हें बदमाशों ने जिंदा जला दिया। 1 जून 2015 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया। आंध्र प्रदेश के एक वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की 26 नवंबर 2014 को अज्ञात लोगों ने लोहे की रॉड से जमकर पिटाई की, जिसके एक दिन बाद शंकर की मौत हो गई।