बीपेद्र कुमार सिंह

असहिष्णुता के मुद्दे  पर कितने ही कलाकार, बुद्धिजीवी और साहित्यकार अपना पुरस्कार सरकार को वापस कर चुके हैं। इस कड़ी में अब महाराष्ट्र के किसानों का भी नाम जुड़ गया है। राज्य के विदर्भ  क्षेत्र के पुरस्कार लौटाने वाले किसानों का कहना है कि सरकार की  किसान विरोधी नीति और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें नहीं लागू करने के खिलाफ उन्होंने यह कदम उठाया है।

दोनों किसानों का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा किसानों की समस्या न सुलझाने के कारण वे संतप्त हैं। पुरस्कार लौटाकर वे सरकार को बताना चाहते हैं कि किसानों को बचाने के लिए व उनकी आत्महत्याएं थामने के लिए खेती को लाभदायी व्यवसाय बनाने के कदम सरकार को उठाने चाहिए।

महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के वाढोणा गांव के मोरेश्वर झाड़े और इसी तहसील के सावरगांव निवासी हेमंत शेंदरे ने नागपुर के जिलाधिकारी को अपना सम्मान-पत्र और मैडल वापस किया। दोनों किसानों  का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा किसानों की समस्या न सुलझाने के कारण वे संतप्त हैं। पुरस्कार लौटाकर वे सरकार को बताना चाहते हैं कि किसानों को बचाने के लिए व उनकी आत्महत्याएं थामने के लिए खेती को लाभदायी व्यवसाय बनाने के कदम सरकार को उठाने चाहिए। सरकार किसानों का कर्ज खत्म करे। उनकी उपज का उचित दाम दे, 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराए। स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को लागत के पचास फीसदी मुनाफे के बराबर दाम कृषि उपज के लिए देने की सिफारिश की है।

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उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव के पहले किसानों के लिए कई घोषणाएं की थी लेकिन इन घोषणाओं पर अमल नहीं किया गया। किसानों की हालत दिन पर दिन खराब हो रही है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ़ में राष्ट्रव्यापी राष्ट्रीय मृदा सेहत कार्ड का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि एक तरफ तो प्रधानमंत्री का कहना है कि वंदे मातरम राष्ट्रगीत के सुजलाम-सुफलाम भूमि बनाने का सपना पूरा करने के लिए मिट्टी के नियमित परीक्षण और उसका पोषण करना जरूरी है और किसानों के सपने पूरा करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है । इस योजना का मुख्य उद्देश्य देशभर के किसानों को स्वॉइल हेल्थ कार्ड दिए जाने के लिए व फसल बीमा योजना के लिए राज्यों को सहयोग देना है। मगर मेरा मानना है कि किसान बचेगा तो ही खेती होगी।

नागपुर जिले के उमरेड गांव के तक्षक लोखंडे का कहना है कि मेरे पांच एकड़ खेत में कपास के बीजों को मौसम ने जमीन से ऊपर आने ही नहीं दिया। अब आसमान की ओर मुंह बाये खेत को देखता हूं लेकिन धरती मानसून की फुहारों का इंतजार करते करते फट जाती है। धीरे-धीरे साहूकार और बैंक का कर्ज बढ़ता जा रहा है।

महाराष्ट्र सरकार ने किसान मोरेश्वर झाड़े को 1988 में शेतीनिष्ठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। फिर 2002 में उन्हें कृषि भूषण पुरस्कार से नवाजा गया था। पुरस्कार के तौर पर गोल्ड मैडल के नाम पर पॉलिश किया हुआ मैडल दिया था। वहीं किसान हेमंत शेंदरे को भी सरकार ने साल 2004 में शेतीनिष्ठ पुरस्कार व 2010 में कृषि भूषण पुरस्कार के साथ दस हजार रुपये का चेक व मैडल दिया था। उनका कहना है कि इस पुरस्कार को लौटाकर वे सरकार के सूखे का समाधान न निकालने और फसल को उचित मूल्य नहीं मिलने का विरोध कर रहे हैं।

प्रकृति की मार और सरकार की अनदेखी के चलते विदर्भ के किसान अपने हाल पर आंसू बहाने को मजबूर हैं। इस बार जहां सोयाबीन, धान व कपास की फसल ने किसानों को निराश किया तो तुअर की फसल ने भी उनकी कमर तोड़ दी है। अब तो हाल यह है कि फसल लगाने के लिए उन्हें घर के गहने गिरवी रखने और बैल बेचने के साथ-साथ साहूकारों से कर्ज तक लेना पड रहा है। मौसम की दगाबाजी से ऐसी नौबत आ गई है कि उत्पादन खर्च ज्यादा और उत्पादन कम होने से खेती घाटे का सौदा बन गया है। दूसरी तरफ कर्ज वसूली के लिए बैंक का दबाव बढ़ने से किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। हर रोज किसान मौत को गले लगा रहे हैं।

सरकार की गलत कृषि नीति के चलते किसानों पर से संकट के बादल छंटने का नाम नहीं ले रहे। हर साल सूखे से निपटने की जिम्मेदारी नौकरशाही पर थोप दी जाती है। इसके लिए मिलने वाले धन सरकारी अमला मालामाल हो जाता है। योजना को लागू करना हो या अनुदान का वितरण, पीड़ितों को मिलने की बजाय बिचौलियों के बीच ही खत्म हो जाता है। नेताओं के लिए भी यह कमाई का अवसर बन जाता है। सरकार कोई भी हो किसान याचक ही बना रहता है।