अजय विद्युत।

दुनिया में सिकंदर कोई नहीं बस वक्त सिकंदर होता है। वक्त ठीक न चल रहा हो तो एक एक कर सब साथ छोड़ देते हैं। बरसों से बॉलीवुड पर राज कर रहे धर्मंेद्र यानी देओल परिवार के बॉबी के पास पिछले काफी समय से कोई फिल्म नहीं थी। केवल दिलासे थे। निर्माता मुंह मोड़ चुके थे। बड़े भाई सनी से भी उम्मीद टूटी तो आखिर काम की तलाश उन्हें मुंबई से दिल्ली ले आई। हालांकि तेज म्यूजिक और जलती-बुझती रोशनी में तमाम लोग झूम रहे थे लेकिन कुछ आंखें नम भी थीं। बड़े परदे पर जिस बॉबी देओल की शुरुआत देखकर लगता था कि देओल परिवार का यह सितारा काफी आगे जाएगा, वह 29 जुलाई की रात दिल्ली के आरएसवीपी क्लब में पहली बार डीजे के रूप में परफार्म कर लोगों के लिए म्यूजिक बजा रहा था, नचा रहा था।

बॉलीवुड में बॉबी अपने बड़े भाई सनी से पहले ही बाल कलाकार के तौर पर एंट्री कर चुके थे। 1977 में आई धर्मवीर में उन्होंने धर्मंेद्र के बेटे का रोल किया था। तभी तमाम लोगों ने कह दिया था कि धर्मंेद्र का यह बेटा कमाल करेगा। फिर 1995 में ‘बरसात’ से बतौर हीरो एंट्री मारी। 2007 में उनकी आखिरी रिलीज फिल्म थी ‘शाकालाका बूम बूम’। लेकिन शुरुआती कामयाबियों के बाद उनके पैर तेजी से फिसले और एक के बाद एक फ्लॉप का सिलसिला शुरू हुआ तो थमने का नाम नहीं लिया। निर्माताओं की जो मंडली शाम के न्योते भेजती थी उसने कन्नी काट ली। लंबे समय से कोई काम नहीं मिलने से बॉबी काफी परेशान थे। कभी उनके डिप्रेशन में जाने की खबरें भी आती रहीं।

लेकिन जिंदगी आगे बढ़ाने के लिए कुछ काम तो ढूंढना ही पड़ता है। सो दिल्ली के एक क्लब में डिस्क जॉकी के रूप में गाने बजाते और नाचते लोगों की फरमाइश पर कभी बेस तो कभी आवाज बढ़ाते बॉबी को देखना एक सुकून भी देता है। सिनेमा ही क्यों, आज कारपोरेट की दुनिया में भी अर्श से फर्श पर आते देर नहीं लगती। काम छूटने के बाद तमाम नौजवानों को नशे की गर्त में जाते या सांसों की डोर तोड़ते हम सबने देखा है। ऐसे में बॉबी का डीजे अवतार यह सुखद अहसास कराता है कि विपरीत परिस्थितियों को स्वीकार करते हुए मिले अवसर से जीवन को आगे बढ़ाना सबसे जरूरी है। समय का यह घूमता पहिया फिर ऊपर जाएगा। बस घूमता रहे। शुक्रिया बॉबी, नई पीढ़ी को सही राह दिखाने के लिए! 