लगता है, भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव के नतीजों से कोई सबक नहीं लिया. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव सिर पर होने के बावजूद पार्टी के अंदरखाने कलह थमने का नाम नहीं ले रहा. इसके ठीक विपरीत कांग्रेस ने हाईकमान की हिदायत के मद्देनजर अपना रवैया सुधार लिया है. 

लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर हाल की ताजा घटनाओं पर नजर डालें, तो यह बात पुख्ता हो गई है कि वसुंधरा राजे ने भाजपा पर पूरी तरह पकड़ बना ली है. बीते महीने केंद्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाते हुए सचेत कर दिया था कि अब सूबे में युवा सक्रिय भूमिका का निर्वाह करेंगे. इसलिए वह अपने स्तर पर चुनावी रणनीति गढऩे की कोशिश न करें. लेकिन, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह वसुंधरा का यह जवाब सुनकर सन्न रह गए कि न तो लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहती हूं और न उसके लिए कोई बड़ा बदलाव चाहती हूं. उन्होंने कहा कि प्रतिकूलता में अवसर तलाश करना उन्हें बखूबी आता है. राजे के बारे में कहा जाता है कि वह खुद अपनी सियासी सलाहकार हैं. इसलिए प्रदेश के प्रभारी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की भूमिका उम्मीदवारों को लेकर केंद्रीय नेताओं को वस्तुस्थिति से अवगत कराने तक सीमित रही है. जिताऊ उम्मीदवारों को पैमाने पर पररखने का काम पूरी तरह वसुंधरा की मुट्ठी में है.

राजे पर पुत्र मोह हावी

राजे के लिए सबसे बड़ी चुनौती झालावाड़-बारां और कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र हैं. झालावाड़-बारां सीट पर बेटे दुष्यंत के लिए उन्होंने पूरी तरह कमान संभाल रखी है. बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा इस संसदीय क्षेत्र की चार में से तीन सीटें हार चुकी है. राजे अब तक डेढ़ दर्जन मंडल स्तरीय बैठकें कर चुकी हैं. बारां में श्रीकृष्ण पाटीदार, श्रीचंद कृपलानी एवं बाबू लाल वर्मा मोर्चा संभाले हुए हैं, जबकि झालावाड़ में राजे के सबसे विश्वस्त युनूस खान एवं कद्दावर नेता प्रह्लाद पंवार. बारां में ज्यादा फोकस की वजह कांग्रेस सरकार में खनन मंत्री प्रमोद भाया की गहरी पकड़ है. यहां से भाया की बीवी उर्मिला जैन कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. विश्लेषकों का कहना है कि झालावाड़ में अंतर बढ़ाकर ही बारां पर फतह पाई जा सकती है. विधानसभा चुनाव में यह फासला 15 से 22 हजार के बीच रहा था. राजे कोटा-बूंदी संसदीय सीट पर भी अपनी नजरें गड़ाए हुए हैं. वह यहां से कोटा राजवंश के वारिस इज्यराज सिंह को चुनाव लड़ाना चाहती हैं. लेकिन, पिछले दो बार से इस सीट पर जीतते आए ओम बिरला को दरकिनार करना उनके लिए आसान नहीं होगा. अमित शाह से बिरला की निकटता भी राजे का मंसूबा कामयाब नहीं होने देगी. कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र जिस तरह आंतरिक गुटबाजी में फंसा हुआ है, उससे निपटना आसान नहीं है.

एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं

विश्लेषकों की मानें, तो भाजपा की राह इन दोनों संसदीय सीटों पर सहज नहीं है. यही वजह है कि रणनीति में बदलाव करते हुए बूथ स्तर तक के नेताओं से संपर्क किया जा रहा है, शक्ति सम्मेलनों का मकसद भी यही है. राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों के लिए मतदान 29 अपै्रल और ०6 मई को दो चरणों में होंगे. कंाग्रेस ने 25 सीटों पर 50 नामों का पैनल तय कर लिया है. चुरू सीट पर फिलहाल मुस्लिम उम्मीदवार की चर्चा है, लेकिन मुस्लिम उम्मीदवार की जीत आसान न होने के चलते ऐन वक्त पर दूसरा उम्मीदवार भी उतारा जा सकता है. लेकिन, भाजपा मुस्लिम उम्मीदवार के मामले में 2014 की कहानी दोहराती आ रही है. उसने अब तक जो संभावित नाम छांटे हैं, उनमें एक भी मुस्लिम नहीं है. दिल्ली में हुई भाजपा की कोर कमेटी की बैठक में नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया, प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी एवं प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर ने अपने पसंदीदा उम्मीदवारों की साझा सूची पेश कर दी है. राजे ने अपने उम्मीदवारों की सूची सबसे आखिर में पेश की, जिस पर मंथन का दौर लंबा चला. सूत्रों के अनुसार, सर्वे और रायशुमारी के बाद 55 नाम छांटे गए हैं. अलबत्ता बैठक में 12 सांसदों को फिर से चुनाव में उतारने पर सहमति बन गई है, जिनमें केंद्रीय मंत्री राज्यवद्र्धन सिंह, अर्जुन राम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, दुष्यंत सिंह, ओम बिरला एवं सुभाष बहेडिय़ा मुख्य हैं. इन नामों पर अंतिम मुहर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की सहमति के बाद लगेगी. सूत्रों का कहना है कि ओम बिरला, गजेंद्र सिंह शेखावत एवं अर्जुन राम मेघवाल को लेकर राजे राजहठ के तेवर दिखा सकती हंै. भाजपा की सूची में जयपुर राजवंश की सदस्य दीया कुमारी का नाम चर्चा में भी नहीं है, जबकि राजे उनकी पैरोकारी में पूरी ताकत लगा चुकी हैं.लेकिन, सूत्र कहते हैं कि दीया का नाम जयपुर शहर, राजसमंद एवं टोंक-सवाई माधोपुर यानी तीन सीटों से पैनल में है. बड़े नेता उन्हें टिकट तो देना चाहते हैं, लेकिन अभी कोई सीट तय नहीं है. दीया को वहीं से चुनाव लड़ाया जाएगा, जहां से वह जीत सकती हों. भाजपा में सबसे ज्यादा पेंच अजमेर, दौसा, अलवर, भरतपुर, करोली-धौलपुर, सीकर, झुंझनू, श्री गंगानगर, बाड़मेर, नागौर एवं बांसवाड़ा सीटों पर फंसा है. पार्टी को सबसे ज्यादा चिंतित करने वाली सीटें अलवर, अजमेर और दौसा हैं. दौसा के सांसद हरीश मीणा कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, इसलिए वहां कोई नया नाम तलाशना आसान नहीं होगा.

एक-दूसरे से भिड़ रहे नेता

चुनाव तैयारियों में जुटी भाजपा के दिग्गज नेताओं के बीच कड़वाहट पार्टी नेतृत्व को उलझन में डाल रही है. अमित शाह ने कड़ी हिदायत दी है कि विरोध की विभाजन रेखा तत्काल मिटाएं. लेकिन, उनकी कोशिश कामयाब होती नजर नहीं आ रही. केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और बीकानेर से सात बार विधायक रह चुके खांटी नेता देवी सिंह भाटी के बीच कड़वाहट इस कदर गहराई कि भाटी ने पार्टी छोड़ दी. उनकी नाराजगी का असर यह हुआ कि अर्जुन राम की सीट बदल गई. अब उन्हें श्री गंगानगर से चुनाव लड़ाने पर विचार किया जा रहा है. लेकिन, अर्जुन राम का कहना है कि यह उनके राजनीतिक विरोधियों द्वारा फैलाई गई अफवाह है, वह बीकानेर से ही चुनाव लड़ेंगे. उधर जिस उत्साह से करोड़ी लाल मीणा ने भाजपा में वापसी की थी, वह गायब हो चुका है. राजे ने मीणा की वापसी पर कहा था, मेरा शक्तिमान भाई मेरे साथ आ गया है. मीणा का जवाब था, आपका यह भाई आप जो कहेंगी, वही करेगा. मीणा के इन्हीं शब्दों में राजे की मुश्किलों का इलाज छिपा था. नतीजतन, जब उन्हें राज्यसभा भेजा गया, तो वह इल्तिजा करते रह गए, मुझे इस उम्र में घर से अलग मत करिए. अपने विरोधियों की रुखसती का राजे का यह अलग दांव था, सो मीणा के आग्रह पर वह पसीजती भी क्यों? राजे की राजनीति मीणा को अब जाकर समझ में आई है, जब दौसा से उनकी उम्मीदवारी का जिक्र तक नहीं होने दिया गया. नतीजतन मीणा अपनी भड़ास निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे कि पार्टी से तो उनका जुड़ाव सदैव रहेगा, लेकिन वसुंधरा के नेतृत्व में वह कभी काम नहीं करेंगे. विश्लेषक कहते हैं कि राजे चाहतीं तो मीणा को सहेजा जा सकता था. गुर्जरों की शिकायत है कि कांग्रेस में तो गुर्जर पार्टी अध्यक्ष हैं और मंत्री भी. लेकिन, भाजपा कोर कमेटी में एक भी गुर्जर नहीं है. इस पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन लाल का जवाब था कि उन्होंने गुर्जरों को टिकट दिए, लेकिन कोई गुर्जर चुनाव नहीं जीता.

काम आई हाईकमान की फटकार

कमोबेश यही फिसलन भरी काई कांग्रेस की राह में भी जमी नजर आ रही थी. लेकिन, हाईकमान की सख्त ताकीद के बाद असमंजस का अंधेरा छंटता नजर आ रहा है. हाईकमान के निर्देश हैं कि लोकसभा चुनाव भी विधानसभा चुनाव की तरह मिल-जुल कर लड़ा जाए. संभवत: इसी का असर है कि सत्ता और संगठन के बिखरे नेता पार्टी अध्यक्ष की मंशा के मुताबिक परस्पर तालमेल बैठाने में कामयाब रहे हैं. नतीजतन, कांग्रेस ने राज्य की 25 लोकसभा सीटों के लिए सिंगल नामों पर पैनल को अंतिम रूप दे दिया. हालांकि, छह सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा के बाद पुनर्विचार की संभावनाओं का विकल्प खुला रखा गया है. सूत्रों का कहना है कि इन सीटों पर उम्मीदवार बदलने की नौबत आई, तो मंत्री लाल चंद कटारिया, रघु शर्मा, हरीश चौधरी, प्रमोद भाया एवं विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को भी चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है. आखिरी फेरबदल के लिए कांग्रेस को भाजपा की सूची का इंतजार है.