अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है कांग्रेस

अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली। कांग्रेस इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। लेकिन इससे उबरने के लिए पार्टी आलाकमान को जो कार्य करना चाहिए वह नहीं कर रही। कांग्रेस में कई नेता हैं, लेकिन अगर देखा जाए तो यहां असल में कोई प्रभावी नेता नहीं है। राहुल गांधी से इतर भी कई अच्छे नेता हैं इस दल में। उसे आगे लाने में गांधी परिवार को पहल करनी होगी। यह सही है कि ऐसा करना आपकी परंपरा के ख़िलाफ़ है। लेकिन राहुल के मोह में कांग्रेस को स्वाहा होने से बचाने के लिए कठोर फैसले तो लेने ही पड़ेंगे।

अगर देखा जाए तो जिन राज्यों में कांग्रेस की सत्ता गई वहां वापसी की राह मुश्किल हो रही है। तमिलनाडु, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में देखा जा सकता है। इस पार्टी की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती,बल्कि गुटबाज़ी और सत्ताधारी दल के ख़िलाफ़ कोई मज़बूत नेता न होना कांग्रेस का दोहरा संकट है। गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर है, लेकिन इसका फ़ायदा तो तभी मिलेगा जब विपक्षी दल इसके लिए तैयार हों? मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह,सिंधिया और कमलनाथ की तिकड़ी है, तो गुजरात में शंकर सिंह वाघेला और शक्ति सिंह गोहिल की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा।

चुनाव से पहले कहीं शक्ति सिंह गोहिल भी वाघेला की तरह नया रास्ता चुन लें, तो कोई आश्चर्य नहीं। चुनाव से पहले विधायकों का पाला बदलना कोई नई बात नहीं है। एक समय जब कांग्रेस अपराजेय थी, तब छोटे दलों के विधायकों कांग्रेस में जाते थे। अपने विधायकों को दूसरे पाले में जाने से बचाने की ज़िम्मेदारी पार्टी की होती है। कांग्रेस को समीक्षा करने की ज़रूरत है। केवल आरोप-प्रत्यारोप और सदन में हंगामा करने से टीवी पर चेहरा तो दिख सकता है, लेकिन जनता का समर्थन और वोट नहीं मिल सकता। महात्मा गांधी और नेहरू जी के प्रताप से कई दशकों तक कांग्रेस ने शासन किया।

लेकिन जितना ज़ल्दी हो यह समझ लेना कांग्रेस के लिए फ़ायदेमंद है कि सूचना एवं तकनीकि प्रधान युग में सभी चीज़ों पर असर पड़ा है। हमारी राजनीति, मतदाताओं की सोच और जनता की अपेक्षाएं सबों में बदलाव आया है। आज नहीं तो कल कांग्रेस के अंदर से यह मांग ज़रूर उठेगी कि पार्टी की कमान नेहरू-गांधी के बरक्स किसी दूसरे को सौंपा जाए। पार्टी के नेता यह मांग करें,उससे बेहतर होगा कि सोनिया गांधी इस बाबत ख़ुद निर्णय लें। कई लोगों का तर्क हो सकता है कि अगर कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के हाथों से निकली तो पार्टी में बिखराव पैदा हो जाएगा। इस तर्क में कोई दम नहीं है। कांग्रेस कई राज्यों में इससे पहले भी टूट चुकी है। राहुल गांधी और सोनिया के नाम पर अगर मौजूदा कांग्रेसी 132 वर्ष पुरानी पार्टी को इतिहास बनाना चाहते हैं तो उनकी मर्जी।

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