उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ सकता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने पूछा है कि योगी आदित्यानाथ और केशव मौर्य एक साथ दो पदों पर कैसे रह सकते हैं। कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी को समन भेजकर उनसे जवाब मांगा है। कोर्ट ने समाजसेवी संजय शर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया। मामले की अगली सुनवाई 24 मई को होगी।
संजय शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अब तक सांसद पद से इस्तीफा नहीं दिया है। सांसद होने के नाते दोनों नेता सरकारी सुविधाओं और वेतन का लाभ ले रहे हैं। जबकि बतौर मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री भी दोनों वेतन और सरकारी सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं। याचिका में सवाल उठाया गया है कि एक व्यक्ति दो-दो पदों पर कैसे रह सकता है और दोनों पदों के लिए वेतन और सुविधाओं का लाभ कैसे उठा सकता है।
याचिकाकर्ता ने संसद अधिनियम 1959 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा है कि सांसद किसी राज्य का मंत्री नहीं बन सकता। यह संविधान के अनुच्छेद 10(2) का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री और मौर्य को उप मुख्यमंत्री पद के लिए अयोग्य ठहराया जाना चाहिए क्योंकि दोनों अब भी सांसद हैं।योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से और केशव मौर्य फूलपुर सीट से सांसद हैं।
माना जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य ने जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने के लिए अपनी अहर्ता बरकरार रखने को लेकर सांसद पद से इस्तीफा नहीं दिया है। उनकी पार्टी भाजपा भी चाहती है कि राष्ट्रपति चुनाव तक दोनों सांसद बनें रहें क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार के लिए एक-एक सांसदों का वोट कीमती है। ऐसे में कोर्ट के सख्त रुख से दोनों नेताओं को संसद की सदस्यता छोड़नी पड़ सकती है। हालांकि पूर्व रक्षा मंत्री और राज्यसभा सांसद रहे मनोहर पर्रिकर ने गोवा के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ दिनों के भीतर ही राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
छह महीने के अंदर बनना होता है विधायक
गौरतलब है कि किसी भी विधायक दल का नेता चुने जाते समय विधायक होने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि सीएम, डिप्टी सीएम या मंत्री पद की शपथ लेने के छह महीने के भीतर उन्हें किसी भी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर सदन में आना होता है। यदि राज्य में विधान परिषद है तो उसका सदस्य निर्वाचित होकर भी सदन में पहुंचा जा सकता है।