…जब साठ मिनट चंडीगढ़ पर चली सियासी कवायद

चंडीगढ़। एक घंटे में क्या क्या हो सकता है? सोचने की बात है। क्या एक शहर  की किस्मत पलटी जा सकती है। क्या कोई बड़ी राजनीतिक घटना हो सकती है। बिना प्लानिंग के, बस एक घंटा, यानी साठ मिनट। साठ मिनट चंडीगढ़ के लिए उस समय खासे भारी पड़ गए, जब उसका भाग्‍य बदलने के लिए सियासी कवायद चलती रही और चुनाव के मद्देनजर एक अहम फैसला वापस ले लिया गया। यह शहर हरियाणा और पंजाब के प्रशासकों से मुक्त होने जा रहा था। हो ही गया था। बस एक घंटा मात्र यह शहर हरियाणा और पंजाब के प्रशासक से मुक्त हो पाया। इस एक घंटे में कितने आरोप लगे। हरियाणा और पंजाब के सीएम नए नए बयानों के साथ सामने आए। विपक्षी भी सक्रिय। … और फिर बस सब चुप हो गए। क्योंकि चंडीगढ़ का प्रशासक अलग नहीं होगा। पंजाब का राज्यपाल ही इस शहर का प्रशासक होगा।

केंद्र सरकार ने केरल के पूर्व नौकरशाह और अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता के जे  अल्फोंस को केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में उनकी नियुक्त करने का लगभग निर्णय ले लिया था। सब तैयारी हो चुकी थी। बस अल्फोंस के आने की देरी थी। लेकिन जैसे ही यह खबर पंजाब और हरियाणा को लगी तो सियासी हलकों में जैसे आफत सी आ गयी हो। पंजाब के सीएम के सरकारी बंगले से तुरंत दिल्ली पीएमओ आफिस में काल गयी। बताया गया कि अगले साल पंजाब में चुनाव है। पंजाब का राज्यपाल चंडीगढ़ का प्रशासक नहीं हुआ तो विपक्ष को बैठे बिठाए मुद्दा मिल जाएगा। बस फिर क्या था। पीएमओ को लगा कि अनजाने में ही कुछ गलत हो गया। सो तुरंत यह गलत ठीक करने की मुहिम शुरू हुई। और फिर जिस तेजी से यह खबर आई कि चंडीगढ़ का अपना प्रशासक हो, इतनी ही तेजी से यह खबर आयी कि पंजाब के राज्यपाल ही चंडीगढ़ के प्रशासक होंगे। तकरीबन 32 साल पहले जब पंजाब में आतंकवाद का दौर था। तब चंडीगढ़ को भी डिस्टर्ब का टैग लगा कर पंजाब के राज्यपाल के हवाले कर दिया गया था। यह सिलसिला चलता आ रहा है। इस साल अगस्त में टूटने वाला था। मगर टूट नहीं पाया।

18 अगस्त को दिल्ली में राज्यपालों को शपथ दिलाई गई

दोपहर 12:15 बजे खबर आई कि पूर्व आईएएस अफसर भाजपा नेता अल्फॉन्स चंडीगढ़ के प्रशासक होंगे। 32 साल बाद चंडीगढ़ को अपना प्रशासक मिलने जा रहा था। बताया गया कि पीएम मोदी ने उनका नाम फाइनल कर लिया है। अल्फॉन्स ने भी पुष्टि कर दी। कहा कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें बता दिया है। अगले हफ्ते वे चंडीगढ़ में चार्ज ले लेंगे। न्यूज साइट्स पर उनके इंटरव्यू भी आने लगे। इसमें वे चंडीगढ़ को लेकर अपनी प्राथमिकताएं बता रहे थे। साढ़े बारह बजे कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष  कैप्टन अमरिंदर, आप के भगवंत मान ने फैसले का विरोध करते हुए शिअद को कठघरे में खड़ा कर लिया। शिअद के सुखदेव सिंह ढींढसा ने भी इस फैसले को पंजाब विरोधी बताया। फिर सवा  एक बजे यह खबर आने लगी कि चंडीगढ़ का कोई प्रशासक नहीं है। पंजाब की सारी पार्टियां इस फैसले के खिलाफ हो गईं। अकाली दल ने आगे की रणनीति बनाने के लिए कोर कमेटी की बैठक बुला ली। अकाली नेता खुलकर बयान देने लगे। भाजपा वाले पसोपेश में रहे और बोले क्या? क्योंकि पंजाब के इस मुद्दे पर वे केंद्र का साथ नहीं दे सकते थे।  रात 8:30 बजे डिप्टी सीएम सुखबीर बादल ने भी घोषणा की और  कहा कि राजनाथ सिंह से उनकी बात हो गई है। चंडीगढ़ के प्रशासक की जिम्मेदारी वीपी सिंह के पास ही रहेगी।

केंद्र शासित प्रदेश का स्टेट्स और मजबूत होता

चंडीगढ़ का यदि अपना अलग प्रशासक होता तो केंद्र शासित प्रदेश का स्टेट्स और ज्यादा मजबूत होता। प्रशासक की नियुक्ति से तीन दशक से चली रही यह व्यवस्था बदलती और और चंडीगढ़ में पंजाब राजभवन की दखल खत्म हो जाती। अभी ब्यूरोक्रेसी में पंजाब और हरियाणा की दखल है। पंजाब और हरियाणा दोनों ही चंडीगढ़ पर दावा जताते रहे हैं। अलग प्रशासक होते ही शहर के  मुद्दे सीधे चंडीगढ़ के प्रशासक देखते। फाइलें तेजी से मूव होतीं। कोई भी फैसला पंजाब नहीं, चंडीगढ़ की जरूरतों के हिसाब से होता। भाजपा के वरिष्ठ नेता संजय टंडन ने कहा कि चंडीगढ़ के लोग तो यहीं चाहते हैं। यह बड़ी बात है। चंडीगढ़ के कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा ने कहा कि यह पहल तो कांग्रेस के समय में ही शुरू हो गयी थी। ऐसा होना ही चाहिए था। दरअसल चंडीगढ़ के निवासी चाहते हैं कि इस शहर का अलग ही प्रशासक हो। इसकी बड़ी वजह यह है कि पंजाब या हरियाणा का प्रशासक होने की वजह से चंडीगढ़ के प्रशासनिक कामों में देरी होती है। एक तरह से शहर के लोगों को लगता है कि वे क्या चंडीगढ़ के या पंजाब या हरियाणा के हिस्से।

फिर पंजाब व हरियाणा को दिक्कत क्या 

दोनों राज्यों के लिए चंडीगढ़ एसवाईएल नहर की तरह सियासी मसला भर है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। क्योंकि पंजाब व हरियाणा दोनोंं ही चंडीगढ़ पर अपना हक जता रहे हैं। यदि अलग प्रशासक होता तो जाहिर है  चंडीगढ़ पर दोनों राज्यों  का अपने अपने हक का दावा कुछ कम होता। लेकिन ऐसा न तो हरियाणा चाहता और न पंजाब। पंजाब में तो अगले साल चुनाव भी होने हैं। जिस तरह से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक दम से शिरोमणि अकाली दल पर हमलावर हुए, उससे लगने लगा था कि यह सबसे बड़ा मुद्दा हो गया। विपक्ष यह साबित करने की पुुरजोर कोशिश करने लगा कि पंजाब का चंडीगढ़ का अलग प्रशासक यानी पंजाब का सब कुछ गंवा दिया गया।  यहीं वजह रही कि पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल व डिप्टी सीएम सुखबीर बादल ने अलग प्रशासक की नियुक्ति को टालने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। हरियाणा के लिए भी चंडीगढ़ बहुत मायने रखता है। इसका अंदाजा सीएम के उस बयान से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा कि अब चंडीगढ़ के प्रशासक का पद हरियाणा को मिलना चाहिए। क्योंकि अभी तक तो यह पद पंजाब के पास है। रोटेशन के आधार पर अब इस पर हरियाणा का हक बनता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई राजनीतिक मसला तो नहीं है, पर क्योंकि जो सिस्टम है। इसी में चलना चाहिए और अब हरियाणा के राज्यपाल को चंडीगढ़ का प्रशासक नियुक्त किया जाना चाहिए।

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