BJP

किशनगंज से सिर्फ एक बार छोड़, कोई गैर मुस्लिम लोकसभा चुनाव जीत नहीं सका. जबकि अररिया और कटिहार से 1998 से 2009 तक भाजपा उम्मीदवार ही जीतते रहे. 2014 में मोदी की प्रचंड लहर के बावजूद सीमांचल में मात खाने वाली भाजपा 2019 में पुरानी रणनीति पर लौटने लगी है.

भारतीय जनता पार्टी सीमांचल की जंग हिंदुत्व के सहारे जीतने की राह पर है. वह इस बात को अच्छी तरह समझ रही है कि सीमांचल और कोसी में डूबी नैया हिंदुत्व के सहारे ही पार लगाई जा सकती है. हिंदुत्व के मुखर प्रवक्ता एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की सभा के जरिये मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल में चुनाव अभियान की शुरुआत करके भाजपा ने अपनी रणनीति के संकेत दे दिए हैं. पिछले माह पूर्णिया के रंगभूमि मैदान में आयोजित सभा में योगी आदित्य नाथ ने कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल पर जमकर निशाना साधा. संकेत साफ है कि सीमांचल एवं कोसी की छह में से पांच लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाए कांग्रेस और राजद से 2019 में उक्त सीटें छीनने के लिए भाजपा हिंदू मतदाताओं की गोलबंदी की रणनीति पर काम कर रही है. नीतीश कुमार के जदयू से दोस्ती भाजपा की जीत आसान बना सकती है. सीमांचल की राजनीतिक उलझन समझने के लिए हमें 2014 के लोकसभा चुनाव और 2018 के अररिया लोकसभा उपचुनाव के नतीजों को समझना होगा. सीमांचल के चार संसदीय क्षेत्रों में 35 से 60 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है. 2014 में तीन सीटों पर मुस्लिम सांसद चुने गए. यानी लोकसभा में बिहार का प्रतिनिधित्व करने वाले तीनों मुस्लिम सांसद इसी इलाके से जीते. किशनगंज से सिर्फ एक बार छोड़, कोई गैर मुस्लिम लोकसभा चुनाव जीत नहीं सका. जबकि अररिया और कटिहार से 1998 से 2009 तक भाजपा उम्मीदवार ही जीतते रहे. 2014 में मोदी की प्रचंड लहर के बावजूद सीमांचल में मात खाने वाली भाजपा 2019 में पुरानी रणनीति पर लौटने लगी है.

किशनगंज में मुस्लिम आबादी 60 प्रतिशत है, जबकि अररिया, कटिहार एवं पूर्णिया में हिंदुओं की आबादी अधिक है. भारतीय जनता पार्टी मान रही है कि अगर इस इलाके में हिंदू मतदाताओं की गोलबंदी सुनिश्चित हो जाए, तो चार में से तीन सीटों पर एनडीए की जीत पक्की है. पिछले लोकसभा चुनाव में सीमांचल में भाजपा की हार की मुख्य वजह नीतीश कुमार से अलगाव भी था. अररिया और कटिहार में जदयू उम्मीदवारों ने लड़ाई त्रिकोणात्मक बना दी, नतीजतन भाजपा दूसरे नंबर पर आ गई. जबकि पूर्णिया में जदयू ने भाजपा को पछाड़ कर बाजी मार ली. भाजपा की जदयू से दोस्ती के बाद 2018 में हुए अररिया लोकसभा उपचुनाव का नतीजा भी भाजपा की सोच के विपरीत रहा. अररिया के सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन से रिक्त सीट पर 2018 में हुए उपचुनाव में भाजपा-जदयू गठबंधन उम्मीदवार प्रदीप सिंह के राजद उम्मीदवार सरफराज आलम से मात खाने के बाद भाजपा 2019 के लिए चौकन्नी है. वह समझ चुकी है कि सिर्फ नीतीश कुमार की दोस्ती के भरोसे सीमांचल की नैया पार नहीं लगने वाली. हिंदू मतदाताओं की गोलबंदी ही सीमांचल फतह का बेहतर रास्ता है. सीमांचल को राजद भी अपने लिए काफी उर्वर राजनीतिक जमीन मान रहा है. राजद भाजपा की राजनीतिक चाल अच्छी तरह समझ रहा है. इसलिए अपनी जमीन बचाने के लिए  वह भाजपा से पहले ही सीमांचल में चुनावी बिगुल फूंक चुका है. अररिया में तीन माह पहले कद्दावर मुस्लिम नेता मरहूम तस्लीमुद्दीन की याद में आयोजित कार्यक्रम हकीकत में तेजस्वी यादव की चुनावी कार्यक्रम था. राजद 2014 के चुनाव की पुनरावृत्ति के लिए सीमांचल में एमवाई समीकरण मजबूत बनाए रखने की नीति पर काम कर रहा है. तेजस्वी यादव का मंसूबा नाकाम करने के लिए ही भाजपा ने हिंदुत्व कार्ड खेला है.