प्रियदर्शी रंजन

बिहार की राजनीति में दो बड़े राजनीतिक घराने हैं। एक लालू यादव का घराना है तो दूसरा रामविलास पासवान का। नंबर एक का तमगा लालू यादव के परिवार के पास है तो बहुत कम मार्जिन के साथ रामविलास पासवान का परिवार दूसरे नंबर पर कायम है। दोनों घरानों की एकता की मिसाल देश भर के राजनीतिक घरानों में दी जाती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुलयाम सिंह यादव के परिवार में चाचा शिवपाल सिंह यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच घमासान मचा था तो उसे शांत कराने के लिए बिहार के इन्हीं दो राजनीतिक घरानों का उदाहरण देकर समझाने-बुझाने का प्रयास किया गया था। लालू यादव ने तो मुलायम परिवार को एक रखने के लिए बकायदा हस्तक्षेप भी किया था। यह बात और है कि परिणाम उनकी उम्मीद के मुताबिक नहीं आया। बिहार के इन्हीं दो राजनीतिक घरानों का उदाहरण देकर तमिलनाडु के राजनीतिक घराने के दिवंगत करुणानिधि के परिवार में पुरानी कलह को थामने का प्रयास होता रहा है। लेकिन अब तक कलहमुक्त रहे बिहार के इन दो राजनीतिक घरानों में भी घमासान छिड़ गया है।
लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव कभी ट्वीट कर राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा करते हैं तो कभी परिवार में हो रहे अपने अपमान को फेसबुक के माध्यम से बाहर लाते हैं। यह बात और है कि बाद में इसे विरोधियों की हरकत करार देकर इससे वे मुकर जाते हैं। चर्चा तो यह भी है कि तेज प्रताप अपनी पत्नी समेत भाजपा का दामन थाम सकते हैं। लालू परिवार में तेज प्रताप की वही स्थिति बताई जा रही हैै जो मुलायम परिवार में उनके दूसरे बेटे प्रतीक और अपर्णा का है। पासवान परिवार में छिड़ा घमासान तो आर-पार की कगार पर है। रामविलास पासवान की बड़ी बेटी आशा पासवान ने अपने पिता के खिलाफ हाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। वहीं उनके दामाद और आशा के पति अनिल साधु ने उनके बेटे चिराग के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बना लिया है।

लालू परिवार में तीन केंद्र
तेज प्रताप यादव की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। महागठबंधन की सरकार में लालू का बड़ा बेटा होने के बाद भी छोटे बेटे तेजस्वी यादव के मुकाबले छोटा मंत्रालय मिलने और बाद में छोटे बेटे को ही विधानसभा में विपक्ष के नेता की कुर्सी मिल जाने की वजह से तेज प्रताप की नाराजगी कई बार सार्वजनिक हो चुकी है। पिछले महीने राजद की अहम बैठक से तेज प्रताप ने खुद को अलग रखा तो कुछ दिनों पूर्व ट्वीट कर उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान भी कर दिया था। असल में यादव परिवार के भीतर तीन राजनीतिक केंद्र बन गए हैं। पहला और दूसरा केंद्र दोनों भाई का है तो तीसरा केंद्र लालू की बड़ी बेटी और राज्यसभा सदस्य मीसा भारती का है। तीनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा इस कदर टकरा रही है कि यादव परिवार में टूट की खबरें गाहे-बगाहे हिलोरें लेती रहती हैं। राजनीतिक जानकार धीरेंद्र झा की मानें तो तेजस्वी ने यादव परिवार के सिरमौर का ताज धारण कर लिया है जिसे तेज प्रताप और मीसा पचा नहीं पा रहे हैं। कहा जा रहा है कि तेज की राजनीतिक महत्वकांक्षा ऐश्वर्या राय से शादी के बाद कुछ ज्यादा ही परवान चढ़ गई है। खुद ऐश्वर्या की भी राजनीतिक महत्वकांक्षा है। राजद से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, ऐश्वर्या 2019 के लोकसभा चुनाव में छपरा सीट से किस्मत आजमाना चाहती हैं। ऐश्वर्या ही तेज की राजनीति को संचालित कर रही हैं। वे चाहती हैं कि उनके पति के साथ न्याय हो। लालू यादव का बड़ा बेटा होने के नाते तेज को पार्टी में अहमियत मिले। वैसे लालू परिवार में बेटियों का खेमा भी खूंटा ठोक राजनीति करने को आतुर है जिससे यादव घराने में छिड़ी भितरखाने की रार दिलचस्प हो गई है।
लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती सक्रिय राजनीति में हैं। मीसा अपनी ससुराल से ज्यादा समय मायके में ही गुजारती हैं। मीसा के लिए लालू ने रामकृपाल यादव जैसे अपने वफादार को भी किनारे करने में संकोच नहीं किया। पिछले लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र सीट से राजद के स्वाभाविक उम्मीदवार रामकृपाल थे लेकिन मीसा ने इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की तो टिकट उन्हें दे दिया गया। चुनाव में हार के बाद भी मीसा परिवार में अहम बनी रहीं। पार्टी ने बाद में उन्हें राज्यसभा भेज दिया। मीसा के पति शैलेश की भी इच्छा राजद की टिकट पर चुनावी मैदान में भाग्य आजमाइश की है। वे पाटलिपुत्र लोकसभा या दानापुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। लालू की दो अन्य बेटियों रागिनी यादव और चंदा यादव ने भी अगले लोकसभा चुनाव में अपने लिए सीट की मांग परिवार में रख दी है। टिकट की उम्मीद में दोनों मायके में डेरा डाल चुकी हैं।
पासवान परिवार में बगावत
लालू परिवार की तर्ज पर रामविलास पासवान के परिवार में भी घमासान मचा हुआ है। रामविलास पासवान की पहली पत्नी की बड़ी बेटी और दामाद ने बगावात का झंडा बुलंद कर दिया है। इस परिवार में झगडेÞ की चिंगारी चिराग पासवान की वजह से उठी है। चिराग के उभार के बाद पासवान परिवार की एकता में दरार आने लगी है। लोजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो चिराग को पासवान परिवार सुपर बॉस मानने को तैयार नहीं है। जबकि रामविलास पासवान पूरी तरह अपने पुत्र के साथ खड़े हैं। चिराग को नापंसद करने वालों की सूची लंबी है। रामविलास के दोनों भाइयों बिहार सरकार में पशुपालन मंत्री पशुपति पारस और सांसद रामचंद्र पासवान से चिराग के मतभेद भी हैं और मनभेद भी। बिहार में पार्टी की कमान संभालने वाले पशुपित पारस और चिराग में एक दूसरे का पर कतरने का खेल परिवार और पार्टी में कई रंग दिखा चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते पारस दो अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ना चाहते थे। संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष होने के नाते चिराग ने प्रदेश अध्यक्ष की इस मंशा पर अपना वीटो लगा दिया था। नतीजतन पारस एक सीट से ही चुनाव लड़े और हार गए। पारिवारिक सूत्रों की मानें तो पारस ने अपनी हार के लिए चिराग को जिम्मेवार ठहराया था। विधानसभा चुनाव के बाद पासवान परिवार की रार सार्वजनिक हो गई थी और पारस ने इशारों में लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से मुक्त होने की इच्छा जाहिर की थी।
आशा पासवान की बगाावत के पीछे भी चिराग को जिम्मेवार माना जा रहा है। आशा देवी के मुताबिक, ‘मेरे पिता पुत्र मोह में पड़ गए हैं। अगर मुझे राजद से हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से टिकट मिलता है तो मैं पिता के खिलाफ चुनाव लडूंगी।’ आशा देवी का यह बयान पासवान परिवार में कलह पर मुहर है। राजनीतिक जानकार और अंग्रेजी अखबार द हिंदू के स्थानीय संपादक अमरनाथ तिवारी के मुताबिक, ‘आशा देवी और उनके पति अनिल साधु का विरोध पासवान परिवार पर भारी पड़ेगा। पशुपति पारस, रामचंद्र पासवान, चिराग पासवान या परिवार के अन्य सदस्यों ने रामविलास के केंद्र में ही अपनी राजनीति को सीमित किए रखा जबकि अनिल साधु ने अपनी अलग पहचान कायम की है। साधु की राजनीतिक विरासत भी काफी मजबूत है। उनके पिता पुनित राय पांच बार विधायक रहे हैं। साधु भी 1990 के दशक से ही राजनीति में सक्रिय हैं। उन्होंने दलित सेना में अहम योगदान दिया। लोजपा ने उन्हें ईनाम के तौर पर तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका दिया। पहली बार राजगीर से उन्हें टिकट दिया गया। राजगीर में मिली असफलता के बाद उन्होंने विधानसभा क्षेत्र बदल लिया और बोचहा से भाग्य आजमाइश की, मगर सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं पर चुनाव हराने का आरोप लगाया। इसी साल उन्होंने पारिवारिक पार्टी से बगावत करते हुए राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम लिया। साधु के विरोध को पासवान परिवार हल्के में कतई नहीं लेगा।’
माना जा रहा है कि अनिल साधु की ललकार के पीछे राजद का हाथ है। पासवान परिवार में छिड़े घमासान को हवा राजद की ओर से दी जा रही है। राजनीतिक जानकार देवांशु मिश्रा कहते हैं, ‘अनिल साधु को ढाल बनाकर राजद ने रामविलास को कमजोर करने की चाल चली है। लालू के तमाम अहसानों को हवा में उड़ा देने वाले पासवान से अनिल साधु के बहाने राजद हिसाब चुकता करने में जुटी है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में लोजपा का सूपड़ा साफ होने के बाद रामविलास को संजीवनी देते हुए राजद ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया था लेकिन पासवान ने पाला बदलते हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए का दामन थाम लिया। तेजस्वी के नेतृत्व वाली नई राजद गलतियों को माफ करने वाली नहीं है। हालांकि राजनीति में बदला चुकता करने का कोई प्रचलन नहीं रहा है। सभी दल अपने सियासी फायदे के लिए गठबंधन में हेरफेर करते हैं। लेकिन राजद चाह रही है कि 2019 में होने वाले आर-पार की लड़ाई में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को कमजोर किया जाए। चाहे इसके लिए भावनाओं का ही खेल क्यों न खेलना पड़े। अनिल साधु राजद के लिए रामविलास के खिलाफ हथकंडा हैं।’ हालांकि राजद के मुख्य प्रवक्ता मनोज झा का इस पूरे प्रकरण पर मानना है कि अनिल साधु का बयान राजद का नहीं है। चुनाव के समय नेताओं की ओर से ऐसे बयान आते रहेंगे। इसी क्रम में शायद आशा देवी ने यह बयान दिया होगा। उनके पति राजद से जुडेÞ हुए हैं लेकिन लोजपा या रामविलास पासवान के परिवार पर किए गए किसी भी बयानबाजी को राजद का नहीं समझा जाना चाहिए। जाहिर है राजद भले ही अनिल साधु के बयान से कन्नी काट रही हो मगर इतना तय है कि बगावत की जो राह अनिल और आशा ने पकड़ी है उसके बाद संभावना बढ़ गई है कि पासवान के कई और अपने बागी हो सकते हैं।