पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र

1 नवंबर को चित्रगुप्त जी की पूजा और भैया दूज है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा की जाती है। कायस्थ समाज के साथ सभी लोग प्रसन्नता से मनाते हैं।

इसी दिन यमद्वितीया अर्थात भैया दूज है। इस दिन यमुना में स्नान कर यमुना जी और यमराज की पूजा की जाती है। इन दोनों की पूजा से अकाल मृत्यु का डर नहीं रहता।

इस दिन हर भाई अपनी बहन के यहां दोपहर बाद जाए। बहन से तिलक आदि लगवा कर भोजन करे। साथ ही उपहार आदि प्रदान करे। बहन प्रसन्न होकर भाई को शुभकामनाएं देती है। अपनी बहन न होने पर मामा,  काका की बेटी या मित्र की बहन के यहां भोजन करना भी अच्छा रहता है। इससे बहन के सुहाग की भी रक्षा होती है।

व्यापारी आदि दिन में बही खाता और तुला आदि का करते हैं। पूजा सुबह 8 बजे से 10 बजे तक और कुंभ लग्न दोपहर 2 बजे से 3 बजकर 25 मिनट तक कर सकते हैं। जहां उनका कार्यालय, फैक्टरी होती है वहां के मुख्य दरवाजों के साथ की दीवालों पर गणेश जी के पुत्रों-शुभ और लाभ के नाम लिखते हैं और स्वास्तिक चिन्ह को अंकित करते हैं।

इसके साथ ही ओम-चिन्ह सिंदूर आदि से लिखते हैं। फिर ओम देहलीविनायकाय नमः कहते हुए रोली और फूल आदि से पूजा करते हैं। ऐसे ही नई स्याही युक्त दवात को, जिसे महाकाली का रूप माना जाता है, जल छिड़ककर शुद्ध कर लें और मौली लपेट दें। फिर पुष्‍प और अक्षत-चावल से उसे स्थापित कर दें और श्री महाकाली को नमस्कार करें। नया पेन या लेखनी आदि को जल छिड़क कर शुद्ध कर लें और मौली बांधकर उसे लक्ष्मी पूजन के स्थान पर पुष्‍प और अक्षत से उसकी पूजा करें।

बहीखाता और तुला आदि पर जल छिड़कें और उन्हें लाल कपड़े पर पुष्‍प और अक्षत से स्थापित कर लें। बही खाते के पहले पन्ने पर स्वास्तिक का चिन्ह रोली या चंदन से अवश्‍य बनाएं। तुला पर रोली या चंदन से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और मौली आदि बांध कर पुष्‍प आदि से पूजा करें।