अरुण पांडेय

क्या कोई कंपनी इतनी बड़ी हो सकती है कि दुनिया के 125 देशों की सालभर की कमाई भी उससे कम हो? या फिर क्या कोई कंपनी इतनी बड़ी हो सकती है कि उसमें पैसा लगाने वाले ही उसे समझाएं कि उसके प्रोडक्ट की लोगों को लत लग रही है इसलिए इससे बचाने के तरीके निकाले। जी हां, इन दोनों सवालों का एक ही जवाब है- आईफोन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी एप्पल। आईफोन लॉन्च करने के पहले यानी 11 साल पहले एप्पल बाजार में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही थी। तभी इसके सीईओ स्टीव जॉब्स को आइडिया आया कि ऐसा मोबाइल फोन उतारा जाए जिसे देखते ही लोगों को प्यार हो जाए, वो हमेशा इसे अपने हाथ में रखना चाहें। 9 जनवरी, 2007 को सैंन फ्रैंसिस्को में पहला आईफोन लॉन्च किया गया।

आईफोन से पहले मोबाइल के डिजाइन पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था लेकिन आईफोन के डिजाइन ने हलचल मचा दी। तब स्मार्टफोन का मतलब ही आईफोन माना जाने लगा। टच स्क्रीन डिस्प्ले, म्यूजिक प्लेयर, इंटरनेट कम्युनिकेशन, डिजिटल कैमरा, अलार्म क्लॉक से लेकर तमाम फीचर फोन में ही मिलने लगे। लेकिन इन सबमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था डिजाइन, जिसने देखते ही देखते एप्पल को जमीन से शिखर पर पहुंचा दिया। पहला आईफोन लॉन्च होने के छह महीने के अंदर 14 लाख फोन बिक गए। दुनिया भर के लोग दीवानों की तरह आईफोन खरीदने लगे। अब तक पूरी दुनिया में करीब 125 करोड़ आईफोन बिक चुके हैं जिससे एप्पल दुनिया की सबसे कीमती, सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनी बन गई है।

दुनिया के आधे देशों की इकोनॉमी से बड़ी कंपनी
एप्पल के सभी शेयरों का भाव लगाया जाए तो यह करीब 900 अरब डॉलर (करीब पांच लाख 73 हजार करोड़ रुपये) होता है। कई जानकार तो कहते हैं कि इसी साल यह 1000 करोड़ डॉलर का जादुई आंकड़ा पार कर लेगी यानी एक लाख करोड़ डॉलर पहुंचने वाली दुनिया की पहली कंपनी बन जाएगी। शेयर बाजार की भाषा में इसे मार्केट कैपिटलाइजेशन कहते हैं। विश्व बैंक के आंकड़ों से तुलना की जाए तो एप्पल का बाजार मूल्य 150 से ज्यादा देशों की अर्थव्यवस्था से ज्यादा है। इनमें स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, सऊदी अरब और नॉर्वे तक शामिल हैं। यहां तक कि एप्पल से अमेरिका का एक साल का बजट घाटा पाटा जा सकता है। एप्पल जब भी नया आईफोन लेकर आती है तो इसकी मार्केट कैप ऊंचाई के नए रिकॉर्ड बना जाती है। एप्पल के पास करीब 300 अरब डॉलर की तो नकदी है। इतनी नकदी से कई देशों का बजट घाटा खत्म हो सकता है।
दुनिया में सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनी एप्पल को आईफोन से करीब 80 फीसदी का मुनाफा होता है। एप्पल ने खुद ही बताया है कि हर मोबाइल फोन पर वो औसतन 160 डॉलर का मार्जिन लेती है। अमेरिकी पत्रिका फोर्ब्स के मुताबिक एप्पल दुनिया का सबसे कीमती ब्रांड है। इस ब्रांड का बाजार वैल्यू ही करीब 180 अरब डॉलर है। दुनिया में इस वक्त टेक्नोलॉजी कंपनियों का ही दबदबा है। दुनिया की पांच सबसे बड़ी कंपनियों में सभी टेक्नोलॉजी की हैं और सभी अमेरिकी हैं। इन सभी में एप्पल ही सबसे आगे है। एप्पल कितनी बड़ी कंपनी है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दूसरे नंबर पर काबिज गूगल (680 अरब डॉलर) से यह करीब 30 फीसदी बड़ी है।

क्या है खासियत
एप्पल का सबसे बड़ा मंत्र यही है कि हर प्रोडक्ट टेक्नोलॉजी में खरा उतरने के साथ-साथ खूबसूरती में भी सबसे आगे होना चाहिए। पूरी तरह ठोक बजाकर लाए जाते हैं प्रोडक्ट। एप्पल हर प्रोडक्ट उतारने से पहले सालों रिसर्च करती है। जानकार कहते हैं कि जब तक हर पैमाने पर प्रोडक्ट खरा नहीं उतरता तब तक उसे बाजार में नहीं उतारा जाता। यही बात एप्पल को खास बना देती है। वैसे तो आईफोन एप्पल का सबसे बड़ा प्रोडक्ट है पर इसके अलावा कंपनी मैकबुक, आईपैड वगैरह भी बनाती है जो स्मार्टनेस के पैमाने पर खरे उतरते हैं। इनमें सॉफ्टवेयर के साथ हार्डवेयर का भी ध्यान रखा जाता है। यही वजह है कि लोग एप्पल के प्रोडक्ट के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने को तैयार रहते हैं। एप्पल ने अपने प्रोडक्ट की इस तरह ब्रांडिंग की है कि ग्राहक खुद इसे प्रतिष्ठा के तौर पर पेश करते हैं। तभी तो आईफोन का हर लॉन्च पूरी दुनिया में बड़ी खबर बन जाता है। एक तरह से हर ग्राहक खुद इसका विज्ञापन अपने-अपने स्तर पर करता है। बच्चों और किशोरों को लत से बचाए एप्पल
दुनिया में आईफोन का दबदबा मुश्किल भी खड़ा कर रहा है। खुद एप्पल के ही दो शेयर होल्डरों ने कंपनी से कहा है कि लोगों खासतौर पर बच्चों में आईफोन की लत दूर करने के तरीके निकाले। बात हैरान करने वाली इसलिए है कि आईफोन बनाने वाली कंपनी को ही कहा जा रहा है कि वो अपने प्रोडक्ट की लोकप्रियता कम करने के तरीके निकाले। नैतिकता के लिहाज से ये बेहद अहम है। अमेरिका के दो पेंशन फंड जेना और केलस्टार ने एप्पल को चिट्ठी लिखकर कहा है कि कंपनी लत दूर करने के लिए एक स्टडी कराए। इसके अलावा ऐसा सॉफ्टवेयर बनाए जिससे मां-बाप बच्चों के फोन पर निगरानी रख सकें और जरूरत पड़ने पर फोन को इस तरह लॉक कर सकें कि उसके ज्यादातर फीचर बच्चों और किशोरों की पहुंच से दूर हो जाएं। उन्होंने कहा है कि कंपनी समाज से इतनी कमाई कर रही है इसलिए वो जिम्मेदारी समझे कि उसकी वजह से नई पीढ़ी बीमारी का शिकार न हो जाए। इन शेयरहोल्डरों का कहना है कि नई पीढ़ी को बचाना कंपनी की जिम्मेदारी है क्योंकि अगर बीमारी बढ़ी तो कंपनी को भी इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। जेना और केलस्टार दोनों एप्पल के बड़े शेयरहोल्डर हैं। ये पहला मौका है जब किसी कंपनी के शेयरहोल्डरों ने ही प्रोडक्ट की वजह से बढ़ते नुकसान को दुरुस्त करने को कहा है।
हालांकि एप्पल ने अभी तक इस पर कोई वादा नहीं किया है लेकिन आईफोन में कुछ ऐसे फीचर हैं जिनसे मां-बाप बच्चों के फोन इस्तेमाल पर कुछ नियंत्रण रख सकते हैं। जैसे कोई भी शॉपिंग करने यानी प्रोडक्ट या सर्विस लेने के लिए बच्चों को मां-बाप की मंजूरी लेनी होगी। इसके अलावा कुछ ऐप हैं जिनके जरिये मां-बाप ये तय कर सकते हैं कि बच्चे क्या देखें। लेकिन इससे लत पर काबू करना मुमकिन नहीं है। इसलिए कंपनी से कहा गया है कि वो ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित करे जिससे मां-बाप की निगरानी बढ़ सके।
बहुत से लोग और मनोवैज्ञानिक इस बात से फिक्रमंद हैं कि मोबाइल फोन इस कदर लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं कि अब यह बीमारी बन गई है। इससे भी ज्यादा परेशानी वाली बात है कि बच्चों और युवाओं में मोबाइल की लत पूरे परिवार पर बुरा असर डाल रही है। दरअसल, स्मार्टफोन की लत को दुनियाभर में बड़ी दिक्कत के तौर पर देखा जा रहा है। सरकारों के साथ सिलिकॉन वैली की कंपनियां भी लोगों के जीवन में स्मार्टफोन के जरूरत से ज्यादा दखल को काबू में करने के तरीके निकालने में जुटी हैं। फ्रांस ने प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में मोबाइल फोन पूरी तरह से बैन कर दिया है। भारत के स्कूलों में भी यह पाबंदी है लेकिन घरों में कोई पाबंदी नहीं है। नई इकोनॉमी और नई टेक्नोलॉजी सहूलियत लेकर आ रही है तो नई चुनौतियां भी लेकर आ रही है। ऐसे में एप्पल पर सबकी नजर है क्योंकि उसके पास इसके लिए संसाधन हैं और सबसे ज्यादा कमाऊ कंपनी होने के नाते उसकी जिम्मेदारी भी सबसे ज्यादा है। 