rajnath-singh-uma-bharti-534bb92dac641_exlstओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

चुनाव के अंतिम चरण करीब आने के साथ ही यूपी में सरकार बनाने के आत्मविश्वास में भरी भाजपा में सीएम पद के लिए लाबिंग फिर से तेज हो गई है। राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, केशव मौर्या, उमा भारती, दिनेश शर्मा, मनोज सिन्हा जैसे तमाम अगड़े पिछड़े नाम इस रेस में शामिल बताए जा रहे हैं। पहली बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने संभावित मुख्यमंत्री को लेकर ओपिनियन पोस्ट से खुलकर बात की है कि भाजपा की सरकार बनी तो कौन मुख्यमंत्री हो सकता है और कौन नहीं।

1-15 मार्च के ओपिनियन पोस्ट में छपी स्टोरी के अनुसार जब उनसे पूछा गया कि सरकार बनी तो क्या पिछड़े वर्ग का कोई मुख्यमंत्री होगा। ‘’जवाब था कि चुनाव के बाद तो गवर्नेंस की बात होगी। महाराष्ट्र, हरियाणा का उदाहरण सामने है।‘’

क्या कोई सांसद भी मुख्यमंत्री हो सकता है या केवल विधायकों में से ही कोई मुख्यमंत्री होगा। जवाब- ‘’ऐसा कोई बंधन नहीं है।‘’

तो क्या राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री हो सकते हैं। ‘’वे केंद्र में गृहमंत्री हैं। कैबिनेट में नम्बर दो हैं और राज्य की राजनीति में लौटना नहीं चाहते।‘’

yogi-adityanathअगला सवाल गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के संबंध में था। योगी जिस तरह के भाषण दे रहे हैं और पार्टी जिस तरह से उन्हें घुमा रही है,वह क्या ध्रुवीकरण की कोशिश नहीं है। अमित शाह की भृकुटी थोड़ा तन गई। बोले ‘’योगी हमारे पांच बार के सांसद हैं। उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ वहां से नौ बार सांसद और विधायक रहे, वह पार्टी के लिए प्रचार क्यों नहीं करेंगे। अपना सांसद अपनी पार्टी का प्रचार करे तो ध्रुवीकरण कैसे हो गया। योगी पुरुषार्थ कर रहे हैं। रोज छह सभाएं और दो रोड शो कर रहे हैं। उनको सुनने लोग बड़ी संख्या में आते हैं।‘’

इस मसले पर आखिरी सवाल था कि मुख्यमंत्री का फैसला करते समय केवल प्रशासनिक क्षमता देखी जाएगी या नेता की लोकप्रियता को भी ध्यान में रखा जाएगा। जवाब फिर एक ही लाइन का आया। ‘’निश्चित रूप से लोकप्रिय नेता होना चाहिए।‘’

यहां एक बात बताना जरूरी है। यह बात भी उनकी बताई हुई नहीं है। अमित शाह का गोरक्षनाथ पीठ से बहुत पुराना संबंध है। महंत अवैद्यनाथ बहुत साल पहले एक धर्म संसद में शिरकत करने गुजरात गए थे। वहां विश्व हिंदू परिषद ने उनके सहायक के रूप में अमित शाह को तैनात किया। वे महंत अवैद्यनाथ से बहुत प्रभावित हुए। तब से उनका गोरक्षपीठ से संबंध है। शायद यही कारण है कि चुनाव समिति का सदस्य न होने के बावजूद पहली बार टिकट वितरण में उनसे सलाह ली गई और सबसे प्रभावी प्रचारक के तौर पर उनका उपयोग किया गया।