ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

हरियाणा के यमुनानगर जिले का एक छोटा सा गांव है कनालसी। पांच हजार की आबादी वाले इस गांव से नदियों को प्रदूषण मुक्त करने की जो मुहिम निकली, अब वह एक अभियान के रूप में सामने है। परिणाम अच्छे आए तो ग्रामीण भी उत्साहित हुए। इसी का नतीजा है कि गांव के पास से गुजरने वाली एक छोटी सी नदी थपाना आज प्रदूषण मुक्त है। कम पानी होने के बाद भी नदी में आठ किस्म की मछलियां जिसमें महासेर भी शामिल है, केकड़े, सांप, मेंढक और कछुएं आदि जलचर हैं। 32 किस्म की वनपस्तियां पानी के अंदर और किनारों पर हैं। इस पर 70 अलग अलग प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा है। ग्रामीणों की कोशिश है कि इस नदी को हेरिटेज का दर्जा मिले। इसके लिए वे प्रयासरत हैं।
थपाना नदी यमुना से निकल कर 15 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद सोमनदी में मिल जाती है। इस सफर में यह नदी सात गांवों से होकर गुजरती है। हर ग्रामीण नदी के प्रति आस्था रखता है। यही वजह है कि इस नदी में कोई भी मछली पकड़ने या जलचर को मारने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। ऐसा नहीं है कि मछलियों को मारने की कोशिश नहीं हुई। कुछ घटनाएं हुई, फिर ग्रामीणों ने तय किया कि नदी की सुरक्षा स्वयं करेंगे। अब खेतों में रात में रहने वाले ग्रामीण नदी की भी पहरेदारी करते हैं। इससे शिकार की घटनाएं बंद हो गई।

कैसे हुई शुरुआत
सिर्फ जागरूकता से, यमुना जियो अभियान के सदस्य राणा किरण पाल तपाक से जवाब देते हैं। उनका कहना है, ‘हमारे पास कुछ नहीं था। न ज्यादा पैसा न संसाधन और न ही तकनीक। थी तो सिर्फ हिम्मत, नदियों के प्रति ग्रामीणों की आस्था और खुद पर विश्वास। अपने देसी तरीके हमारी मजबूती थे। प्रदूषण की वजह से खराब हुए यमुना के पानी से हर कोई आहत था लेकिन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि इस पानी को साफ सुथरा रखने में उनकी क्या भूमिका हो सकती है। बस सोचते ही रहते थे कि इस बारे में क्या किया जाए। नदी इतनी खराब हो रही थी कि मवेशी भी पानी में जाने से बचने लगे थे। तब यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के एक अभियान के तहत यहां आए। नदियों को साफ और सुरक्षित रखना जरूरी है। तब समझ में आया कि यमुना तभी साफ सुथरी रह सकती है जब इसमें शुद्ध पानी आएगा। यह तभी संभव होगा जब इसकी सभी सहायक नदियों और पोखर का पानी साफ सुथरा होगा। यमुना का सारा पानी हथनी कुंड बैराज में रोक दिया जाता है। आगे का पानी यमुना की छोटी छोटी सहायक नदियों का ही रह जाता है। ग्रामीणों ने एक सभा की और तय किया कि यमुना में आने वाली नदियों को साफ सुथरा रखने की दिशा में काम किया जाए। इस तरह से थपाना नदी को चिन्हित किया गया। इस काम में अब मंडौली व कन्यवाला गांव के लोग भी हमारा साथ देते हैं।’

मैनेजमेंट से सुधरी हालत
पांच साल पहले की बात है। तब नदी की हालत खराब थी। संजय राणा और राम कुमार ने बताया कि बरसात में इसमें बाढ़ आ जाती थी और गर्मियों में पानी सूख जाता था। इससे नदी के किनारे खेती करने वाले किसानों को खासी दिक्कत आती थी। किसान इस नदी से परेशान थे। तय किया गया कि नदी का एक मैनेजमेंट सिस्टम बनाया जाए। इसके लिए क्या करना होगा। फिर निर्णय लिया गया कि नदी के किनारे पौधा रोपण किया जाए। आस पास के गांवों के किसानों से भी बातचीत हुई। कुछ किसान राजी हुए। यह भी तय किया गया कि पौधे ऐसे लगाए जाएं जिससे किसानों को कुछ आमदनी भी हो। इसके तहत नदी के किनारे पोपलर और इमारती लकड़ी के पौधे लगाए गए। इससे नदी के किनारों के आस पास खेती बंद हो गई। पौधा रोपण होने से हरियाली बढ़ गई। बड़ा परिणाम तब सामने आया जब हरियाली तेजी से बढ़ने लगी। इससे पहले हो यह रहा था कि खेती होने से नदी किनारे उगने वाले प्राकृतिक पौधे खत्म हो जाते थे। खेती बंद होने और पौधारोपण होने के बाद उन्हें उगने का समय मिलने लगा। इसका फायदा यह हुआ कि गर्मियों में नदी का पानी अब कम सूखने लगा।

नदी में न कीटनाशक डालेंगे, न खाली डिब्बे
कनालसी निवासी राजकुमार राणा और अनिल शर्मा ने बताया, ‘पहले नदी लोगों के लिए एक डपिंग प्वाइंट की तरह थी। जो भी कचरा होता था सीधे नदी में डाल दिया जाता था। यहां तक कि कीटनाशक दवा के खाली डिब्बे, प्लास्टिक, पॉलिथीन सब नदी में डाला जाता था। पहले नदी की साफ सफाई की गई फिर यह तय किया गया कि अब ऐसा कुछ भी इसमें नहीं डाला जाएगा। यह काम मुश्किल था क्योंकि ऐसा करना लोगों की आदत बन चुकी थी, इसे दूर करना था। लोगों से लगातार बातचीत की गई। कुछ लोग राजी हुए। देखते ही देखते दूसरों ने भी ऐसा करना बंद कर दिया। इससे नदी में कचरा खत्म हो गया।’ अब एक बड़ी दिक्कत यह थी कि नदी के किनारे खेती करने वाले किसान फसल में रसायनिक खाद और कीटनाशक डालते थे। उन्हें कैसे रोका जाए। होता यह था कि कीटनाशकों का असर नदी में आता था। बरसात में प्रदूषित पानी नदी में आने से जलचर को नुकसान पहुंचाता था। पंडित सुशील शर्मा ने बताया कि तब इलाके में थोड़ा-थोड़ा जैविक खेती के प्रति रूझान बढ़ रहा था। बस इसी को आधार बना नदी के तट पर खेती करने वाले किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया। किसान शीशपाल ने बताया कि देसी बीजों से खेती शुरू हुई। ग्रामीणों ने इसकी मार्केटिंग करनी शुरू की। तैयार उत्पाद का पैसा भी ठीक मिलने लगा। इस तरह से नदी के किनारों पर रसायनों का खतरा भी टल गया।
नदी परिवार का सदस्य
इस दौरान कई मुश्किलें आर्इं पर उनका हल भी ग्रामीणों ने सूझबूझ से निकाला। कनालसी की महिला सरपंच मंजू देवी ने बताया, ‘कदम-कदम पर परेशानी थी। सबसे बड़ी परेशानी तो यह थी कि नदी में महासेर मछली तेजी से बढ़ रही थी। इससे शिकारियों का नदी की ओर ध्यान बढ़ा। रात में वे मछली चोरी करने लगे। शिकार के दौरान दूसरे जलचर भी मारे जाते थे। पानी कम होने की वजह से उन्हें छुपने की जगह ही नहीं मिल पाती थी। लगातार शिकार होने लगे। मछलियां गायब हो रही थी। फिर रात में पहरे की व्यवस्था की गई। इस काम के लिए आस पास के ग्रामीणों की मदद ली गई। फिर भी परिणाम सुखद नहीं थे।’ यमुना मित्र मंडली के सदस्य किरण पाल राणा ने बताया कि ऐसे में उन्होंने तय किया कि इस नदी को एक परिवार के सदस्य के तौर पर स्थापित किया जाए। नदी का जन्मदिन मनाना शुरू किया गया। इसके लिए सितंबर माह के आखिरी इतवार को जन्मदिन मनाने और सामूहिक भोज का आयोजन किया जाने लगा। आस पास के ग्रामीणों से इसके लिए अनाज और पैसा लिया गया। इससे लोगों में नदी के प्रति आस्था पैदा हुई। यूं भी ग्रामीण प्रकृति को अपना अराध्य मानते हैं। पानी और मछली की पूजा होती रही है क्योंकि किसानों और ग्रामीणों की जीविका इसके इर्दगिर्द ही घूमती है। इस नदी से तो ग्रामीणों को फायदा ही हो रहा था। किनारे पर खेती करने वाले किसानों का जहां वाटर लेवल मेंनटेन हो रहा था वहीं उन्हें लकड़ी से भी आमदनी होने लगी। इसके साथ ही गर्मियों में जहां यह उजाड़ क्षेत्र बन जाता था अब यहां साल भर हरियाली बनी रहती है। इससे हर ग्रामीण अपना यह दायित्व मानता है कि नदी में शिकार न होने पाए। एक दो बार शिकारियों ने मछली पकड़ने की कोशिश की लेकिन वे पकड़े गए। अब उनकी हिम्मत नदी की ओर आने की नहीं होती।

क्या शुद्धता के पैमाने पर नदी खरी उतरती है
निश्चित। यह कहना है यमुना मित्र मंडली कनालसी के सदस्य और पर्यावरणविद भीम सिंह का। उन्होंने बताया, ‘नदी का अपना एक सिस्टम होता है। आप यदि यह सिस्टम बना दें तो नदी खुद ब खुद प्रदूषण मुक्त हो जाती है। नदी एक जीवनचक्र की तरह है। इसका एक हेल्थ इंडेक्स होता है जिसमें नदी का पानी कितना शुद्ध है, कितनी वैजिटेशन है, किनारों पर कितने पेड़ हैं, नदी में कौन-कौन से जलचर हैं, सब एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। इस नदी के हेल्थ इंडेक्स का आकलन किया गया जिस पर यह खरी उतर रही है।’ भीम सिंह के मुताबिक, नदी को साफ रखने के लिए वाटर ट्रिटमेंट प्लांट बनाने की जरूरत नहीं है। नदियों को उनके प्राकृतिक तरीके से ही साफ सुथरा रखा जा सकता है। नदियों के किनारे रहने वाले ग्रामीणों, किसानों को जागरूक करना होगा। थपाना नदी इसका एक परिणाम है। 