कलिखो पुल की आत्महत्या पर उठ रहे सवाल

गुलाम चिश्ती/ एसएम महाराज।

उच्चतम न्यायालय की ओर से अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ किए जाने और कांग्रेस सरकार बहाल होने के कई हफ्ते बाद वहां के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल की आत्महत्या रहस्य बनी हुई है। इस विषय पर जितने लोग उतनी बातें सामने आ रही हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि उन्होंने अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए विधायकों को पैसे दिए थे, उसमें वे कई करोड़ रुपए के कर्जदार हो गए थे। अब जब ईटानगर में उनकी सरकार नहीं है तो उस उधार को लौटाना उनके लिए संभव नहीं था। ऐसी स्थिति में उन्होंने अपनी इहलीला को समाप्त कर लेना ही बेहतर समझा। कहा जा रहा कि उन्होंने अपनी मौत से पूर्व सुसाइड नोट भी छोड़ा था, जिसे पेमा सरकार सार्वजनिक नहीं कर रही है। पुल की लिखी 80 पन्नों की ‘माई लाइफ’ शीर्षक डायरी पुलिस को सौंपी गई है। लोगों ने आशंकाएं जतार्इं कि इससे कई रहस्यों से पर्दा उठ सकता है।

इस संबंध में मुख्य सचिव शकुंतला डोले गामलिग से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पुलिस सभी बिंदुओं पर सूक्ष्मता से गौर कर रही है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी मौत की जांच में कोई गड़बड़ी नहीं हो। गामलिन ने पुल की ओर से छोड़े गए कथित सुसाइड नोट पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

दूसरी ओर असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवब्रत सैकिया का आरोप है कि पुल भाजपा की कुटिल राजनीति का शिकार हो गए। सैकिया का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की गैर लोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल को खुदकुशी करनी पड़ी। उन्होंने पुल की खुदकुशी की घटना की जांच की मांग की। उन्होंने कहा कि श्री पुल एक साधारण व्यक्ति थे। उन्होंने कुछ बड़ी पार्टियों की तरह छल और नीतियां नहीं अपनाई थीं। वह भाजपा की गैरलोकतांत्रिक नीतियों के शिकार हुए हैं। श्री सैकिया ने श्री पुल की खुदकुशी के लिए सीधे तौर पर भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा, ‘भाजपा अपनी अति महत्वाकांक्षी नीतियों के कारण कांग्रेस को अस्थिर करना चाहती थी और इसके लिए पूर्वोत्तर भारत में आया राम, गया राम की नीतियां अपनार्इं। श्री पुल तथा हमारे कुछ साथी कुछ समय के लिए भटक गए थे लेकिन अंतत: वापस आ गए।’ उन्होंने कहा कि श्री पुल के भाजपा से संबंध उनकी खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण है।
असम विधानसभा में कांग्रेस के उपनेता रकिबुल हुसैन ने श्री पुल की खुदकुशी की जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि हम लोग इस मामले की निष्पक्ष जांच चाहते हैं कि क्या यह वाकई खुदकुशी है या इसके पीछे कोई और चाल है।

उधर पुल के समर्थक मुख्यमंत्री पेमा खांडू और उपमुख्यमंत्री चौना मीन को उनकी आत्महत्या का कारण मानते हैं। उल्लेखनीय है कि पुल की मौत की खबर फैलते ही उनके समर्थकों एवं शुभेच्छुओं ने नीति विहार इलाके में मुख्यमंत्री पेमा खांडू के बंगले का घेराव किया और इस ‘अप्राकृतिक’ मौत की जांच की मांग की।

पुल समर्थकों ने मीडिया से कहा कि वे पुल के पार्थिव शरीर को उनके ईएसएस सेक्टर स्थित बंगले से बाहर नहीं ले जाने देंगे। उन्होंने उनका अंतिम संस्कार परिसर के भीतर ही करने की मांग की। भीड़ ने बाहर से लाए गए ताबूत को मीडिया के सामने तोड़कर आग के हवाले कर दिया। समर्थकों के एक समूह ने उपमुख्यमंत्री चौना मीन के आधिकारिक आवास की ओर बढ़ते हुए बाहरी दीवार को और परिसर में खड़े कम से कम 10 वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया। उनका आवास लगभग 100 मीटर की दूरी पर है। जानकार बताते हैं कि राज्य के उपमुख्यमंत्री चौना मीन एक दबंग किस्म के इंसान हैं। इसलिए राज्य के कई कांग्रेसी विधायक भी मीन को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के खिलाफ थे। देश के एक नामचीन अंग्रेजी दैनिक ने तो यहां तक लिख दिया कि खांडू अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) सुप्रीमो सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से सलाह लिए बिना ही मीन को राज्य का उपमुख्यमंत्री बना दिया।

ऐसे में कहा जा सकता है कि कलिखो पुल की आत्महत्या के क्या प्रमुख कारण थे, उस पर से फिलहाल पर्दा नहीं उठा है, परंतु पर्दा उठने के बाद राज्य को एक बार फिर बड़े भूचाल का सामना करना पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि एक बढ़ई के रूप में करियर शुरू करने वाले कलिखो पुल अति भावुक इंसान थे। चीन की सीमा से सटे अरुणाचल प्रदेश के सुदूरवर्ती अनजाव जिले के रहने वाले कालिखो पुल ने अपने राजनीतिक जीवन में राज्य का आठवां मुख्यमंत्री बनने तक लंबी दूरी तय की। हालांकि वह केवल छह महीनों के लिए इस पद पर रहे। लकड़ी का सामान बनाने वाले से अपने करियर की शुरुआत करने वाले पुल गार्ड भी रहे और इसके बाद गेगांग अपांग, मुकुट मिथी और दिवंगत दोरजी खांडू सहित विभिन्न मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में राज्य का सबसे लंबे समय तक वित्तमंत्री बनने का गौरव हासिल किया। पुल को अरुणाचल प्रदेश के सबसे कम समय के मुख्यमंत्री के रूप में याद किया जाएगा। उन्होंने दो महीने के राजनीतिक संकट के बाद इस साल 19 फरवरी को राज्य की कमान अपने हाथ में ली थी लेकिन पिछले महीने उच्चतम न्यायालय ने उनकी सत्तारूढ़ सरकार को अपदस्थ कर दिया और आदेश दिया था कि अरुणाचल में कांग्रेस की सरकार बहाल हो। दिसंबर 2015 तक कांग्रेस के साथ रहे पुल ने पार्टी से बगावत की और फरवरी में भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने इस नियुक्ति को अवैध करार दिया। बाद में नबाम तुकी को बहाल किया गया जिसके बाद पेमा खांडू 10वें मुख्यमंत्री बने। बीस जुलाई 1969 में अंजाव जिले के हवाई सर्किल के अंतर्गत वाल्ला गांव में ताइलुम पुल और कोरानलु पुल के घर में जन्मे पुल ने लोहित जिले के तेजू के इंदिरा गांधी सरकारी कालेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उनकी राजनीतिक पारी 1995 में शुरू हुई जब वह हायुलियांग सीट से विधायक निर्वाचित हुए और वह मुकुट मिथी सरकार में वित्त राज्यमंत्री बने। इसके बाद पुल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह लगातार पांच बार जीते और बिजली, वित्त और भूमि प्रबंधन जैसे विभाग संभाले। इतना प्रतिभाशाली व्यक्ति आत्महत्या को कैसे बाध्य हो गया, यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर सभी चाहते हैं। परंतु फिलवक्त सच्चाई से पर्दा उठना भविष्य के गर्भ में है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *