हिंसा व तनाव के बीच चुनाव का आलम

गुलाम चिश्ती।

वर्ष 2017 में मणिपुर विधानसभा के चुनाव होने वाले हैंं, इसे देखते हुए राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित अन्य छोटे-बड़े दल सक्रिय हो उठे हैं। इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य की सत्ताधारी कांग्रेस को भाजपा से कड़ी टक्कर मिल रही है। भाजपा ने इस चुनाव को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है। पार्टी के इस अभियान में भाजपा की राष्ट्रीय इकाई भी पूरा सहयोग कर रही है। दूसरी ओर इस चुनाव में आयरन लेडी इरोम शर्मिला का एक राजनेत्री के रूप में उतरना अपने आप में एक इतिहास रचने जैसा है। इन सबके के बावजूद चुनावी तैयारी के ऐन वक्त पर यूनाइटेड नागा कौंसिल (यूएनसी) की ओर से आर्थिक नाकेबंदी और उससे उपजी हिंसा कई तरह के सवाल खड़े कर रही है। इंफाल के एक शिक्षक सुरंंजय सिंह का कहना है कि भले ही इस आर्थिक नाकेबंदी का आयोजक यूएनसी है, पर इसके पीछे एनएससीएन खड़ा है, जो पिछले दिनों नगा बहुल इलाके में पहुंचने पर मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के काफिले पर हमला भी कर चुका है। ऐसे में कुछ महीनों से एनएससीएन और मुख्यमंत्री इबोबी सिंह और राज्य सरकार से छत्तीस का आंकड़ा है।

इस चुनाव में कांग्रेस की ओर से कहा जा रहा है कि यदि एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में नहीं आई तो एनएससीएन का वृहत्तर नगालैंड बनाने का सपना पूरा हो जाएगा। कारण कि इस मामले में एनएससीएन और केंद्र सरकार के बीच पिछले वर्ष पहले एक समझौते का मसौदा बन गया है, परंतु राज्य विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार उसे सार्वजनिक नहीं कर रही है। ऐसे में एनएससीएन को लग रहा है कि वर्तमान सरकार उसकी राह में रोड़ा बन रही है। ऐसे में संभव है कि वह नगालिम के खिलाफ माहौल बनाकर फिर सत्ता में आ जाए। संभवत: इन्हीं कारणों से वह चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करना चाहता है। इस नाकेबंदी के बाद हिंसा के मद्देनजर केंद्र ने राज्य में करीब 4000 अर्द्धसैनिक बलों को भेजा है। पिछले दो दिनों में करीब 1500 अर्द्धसैन्य कर्मी मणिपुर भेजे गए हैं। पिछले सप्ताह राज्य में करीब 2500 अर्द्धसैन्य जवान भेजे गये थे। केंद्रीय नगा परिषद (यूएनसी) की ओर से एक नवंबर से दो राष्ट्रीय राजमार्गों पर की गई आर्थिक नाकेबंदी के बाद हिंसा की पृष्ठभूमि में राज्य में सुरक्षा स्थिति को देखते हुए पूर्वोत्तर राज्य में सुरक्षाकर्मी भेजे गए हैं। यूएनसी ने मणिपुर की जीवन-रेखा एनएच-दो (इंफाल-डिमापुर) और एनएच -37 (इंफाल जिरिबाम) पर आर्थिक नाकेबंदी की है। इंफाल-उखरूल सड़क पर भीड़ के 22 यात्री वाहनों को जलाने और क्षतिग्रस्त करने के बाद यहां अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है। दूसरी ओर नगालैंड के मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग ने मणिपुर की इंफाल घाटी में नगा लोगों के जान माल की सुरक्षा के लिए केंद्र और मणिपुर सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।

जेलियांग ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और मणिपुर के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह को अलग-अलग पत्र लिखकर इंफाल घाटी में फंसे सैकड़ों नगाओं की तकलीफ की ओर ध्यान खींचा और दावा किया कि घाटी स्थित कुछ संगठनों से खतरे के कारण उन्हें पहाड़ों में उनके गांव की ओर जाने से रोका जा रहा है। एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि इस घटना का मुख्य कारण राजनीतिक है। जब से केंद्र और एनएससीएन के बीच वृहत्तर नगालैंड को लेकर समझौते का एक मसौदा बना है, तब से स्थानीय नगाओं को लग रहा है कि वे आने वाले समय में वृहत्तर नगालैंड के सदस्य होंगे, जबकि राज्य का गैर नगा समुदाय इसके खिलाफ है। वह किसी भी हालत में किसी समुदाय विशेष को स्वायत्तता देने या राज्य के विभाजन या राज्य में सुपर स्टेट बनाने का पक्षधर नहीं है। ऐसे में इस मुद्दे पर राज्य में नगा और गैर नगाओं के बीच तानातनी का माहौल है।

पिछले दो-तीन वर्षों से अधिकांश आर्थिक नाकेबंदी का आयोजन यूएनजी की ओर से ही किया जाता है, जिसके पीछे एनएससीएन होता है। ये नाकेबंदी खासतौर पर नगा बहुल इलाके में होती रही हैं, जिनके कारण राज्य में अनाज की कमी होती है। डीजल-पेट्रोल की कीमत प्रति लीटर 150-200 तक पहुंच जाती है, जबकि प्रति सिलेंडर की कीमत 2000 पार कर जाती है। राज्य के अन्य हिस्सों में आयातित सामग्रियां इन्हीं हिस्सों से यहां पहुंचती हैं। ऐसे में अपनी महत्ता बताने के लिए यूएनसी की ओर से आर्थिक नाकेबंदी और बंद बगैरह का आयोजन किया जाता रहता है। दूसरी ओर जब से इरोम शर्मिला ने विशेष सैन्य कानून के खिलाफ जारी अपनी भूख हड़ताल को छोड़कर राजनीतिक गतिविधियां शुरू की हैं, तब से राज्य के कई वामपंथी आतंकी संगठन उनका खुलेआम विरोध कर रहे हैं। उन्हें और उनके समर्थकों को कई तरह की धमकी दे रहे हैं। कुल मिलाकर यहां की स्थिति दिनोंदिन विस्फोटक बनती जा रही है। यदि ऐसी स्थिति जारी रही तो राज्य में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव कराना आसान नहीं होगा। ऐसे में केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को वहां की बिगड़ी स्थिति को सुधारने के लिए आगे आना चाहिए ताकि चुनाव के ऐन मौके पर राज्य को किसी विस्फोटक स्थिति का सामना न करना पड़े। यहां सक्रिय आतंकी संगठनों पर भी विशेष रूप से नजर रखे जाने की जरूरत है, जो माहौल को खराब करने में लगे हुए हैं। 

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