अधूरी तैयारी,कालेधन पर भारी

आठ नवम्बर रात आठ बजे से अब तक की स्थिति को आप कैसे देखते हैं?

मेरा मानना है कि नोट बंदी एक बहुत बड़ी चुनौती थी। उसके लिए पूरी तरह से तैयारी किए बिना ही सरकार मैदान में उतर आई। ऐसे में जनसाधारण के सामने समस्याएं आनी ही थीं। वही हो रहा है। हालांकि मैं यह भी कहूंगा कि कालेधन और कालेधन पर आधारित अर्थव्यवस्था को एक धक्का पहुंचाने के लिए यह कदम उठाना जरूरी था। हम कालाधन की बात करते हैं तो कैश में वह सिर्फ छह प्रतिशत है। तो जब आप कैश पर अटैक कर रहे हैं तो केवल छह फीसदी कालेधन पर ही चोट पहुंचा रहे हैं। इसके बावजूद यह एक सकारात्मक कार्य और कदम था। हां इसकी तैयारी में जरूर कुछ कमियां हुई हैं। इसीलिए सारी दिक्कतें आ रही हैं। दूसरी बात यह कि नोटबंदी के ग्रामीण अर्थनीति और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर भी अलग से कोई तैयारी नहीं की गई थी। रबी की बुआई का सीजन है। किसान को बीज, उर्वरक और तमाम और चीजें खरीदनी हैं बाजार से। उसके लिए कैश चाहिए। तो गांवों में भी दिक्कत है। एक हजार और पांच सौ के नोट कुल नकदी का छियासी प्रतिशत थे। वो निकाल लिए। फिर कैश की किल्लत को देखते हुए कुछ लोग कैश होल्ड भी करने लगे हैं आजकल। मुझे लगता है इस माहौल में हमारी अर्थनीति और अर्थव्यवस्था पर एक अल्पकालिक खराब प्रभाव का खतरा तो जरूर खड़ा हुआ है। अभी ही हम देख रहे हैं कि बड़े शहरों में मॉल्स में, छोटे उद्योगों में कारोबार में कमी तो आई ही है। लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव जरूर अच्छे होंगे ऐसा मैं मानता हूं।

क्या कालेधन वालों का अच्छे से भट्ठा बैठ गया है?
इस योजना से वही कालाधन निकल सकेगा जो नकदी के रूप में गोदामों, तहखानों में बंद था। इससे कालाधन बनने के धंधे पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जो दो हजार रुपये आप बैंक से लाए हैं अगर आप उसे किसी ऐसे काम में इस्तेमाल करें जिसकी इकोनॉमिक एक्टिविटी की कोई एकाउंटिंग नहीं है तो वह भी कालाधन बन जाएगा। देखना है कि सरकार अगली योजनाओं पर कितना काम करती है। जैसे इलेक्शन फंडिंग की बात हो रही है। इसमें पूरी तरह से पारदर्शी फंडिंग पैटर्न चालू करें। रियल इस्टेट की बात हो रही है तो उसमें सर्किल रेट को ठीक तरह से मार्केट रेट के स्तर पर लाया जाए। कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री की बात हो रही है। सोने चांदी के बिजनेस की बात हो रही है जिसमें ज्यादातर कारोबार साफ सुथरा नहीं होता। सर्विस सेक्टर की बात है। चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, वकील, डॉक्टर की कितनी आमदनी एकाउंटेड होती है और कितनी एकाउंटेड नहीं होती इसे लेकर भी कई शंकाएं हैं- तो इन तमाम चीजों में भी सरकार को देखना है कि वह इनके काले धंधे को उजागर कर उसे सफेद कर सके। बेनामी संपत्ति पर काम करना होगा।

नोटबंदी से पहले क्या करना चाहिए था?
2300 करोड़ नोट बंद किए गए नोटबंदी में। अगर इसके आधे से भी ज्यादा नोट छापकर चलन में जारी नोट बंद किए जाते तो इतनी समस्या न होती और ऐसी अफरातफरी न मचती। भले उसमें तीन चार महीने या जो भी समय लगता। फिर नोटों की उतनी कमी महसूस नहीं होनी थी जो आज हो रही है और इतनी लंबी कतारें नहीं लगतीं। यह पहली तैयारी थी। दूसरे, एटीएम से नोट निकालने के लिए टेक्नॉलाजी रिकैलिब्रेशन का काम भी पहले करा लेना चाहिए था। अगर ये दो चीजें पहले कर लेते तो मेरे ख्याल से जो कठिनाई हो रही है लोगों को वह कम होती। …अगर आप अचानक चलन से 2300 करोड़ नोट हटा रहे हैं तो एक बड़ी मात्रा में करेंसी को जल्द से जल्द व्यवस्था में लाना जरूरी है। तभी पुरानी एक्टिविटी जल्द लेवल पर आ सकती है।

गोपनीयता बरतते हुए क्या ऐसा करना मुमकिन था?
इतनी बड़ी सरकार है। सालों से सरकारें बजट पेश करती आ रही हैं। तीन चार महीने तैयारी चलती है उसकी। और सरकार बजट में गोपनीयता पूरी पूरी बरकरार रखती है। बजट बनाने में बहुत लोग शामिल होते हैं। तब भी आपने किस साल ऐसा देखा कि कितना आयकर होगा या कितना बिक्रीकर होगा वह बाहर लीक हो गया हो। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि नोटबंदी को लेकर गोपनीयता का कोई ऐसा हौवा था कि केवल तीन चार आदमियों को बताओ और बाकियों को न बताओ। ऐसा करने के लिए एक कोर ग्रुप बनाया जा सकता है। तो तरीके तो हजार हैं और मुझे नहीं लगता कि अगर नोटबंदी के पहले जरूरी व्यवस्थाएं की जातीं तो गोपनीयता के साथ कोई कम्प्रोमाइज होता।

मौजूदा जो भी स्थिति है इसमें क्या किया जा सकता है?
जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा नोट व्यवस्था में लाने चाहिए। हालांकि सरकार ने कई ऐसे कदम उठाए भी हैं। कोर ग्रुप का इस्तेमाल किया है। एटीएम रिकैलिब्रेशन की गति बढ़ गई है। सरकार ठीक रास्ते पर चल रही है लेकिन इसको और भी जल्दी करना है। जैसे हमारे यहां नोट छापने के चार प्रेस हैं और अगर सरकार को लगता है कि उनकी क्षमता कम है तो विदेश से भी नोट छपाकर मंगाए जा सकते हैं। पुराने जमाने में हमने ऐसा किया भी है। यह कोई नई बात नहीं है। एक इमरजेंसी सिचुएशन है और उसे संभालना है तो ये सारे उपाय हमारे सामने हैं। व्यवस्था को लेकर लोगों को सरकार से निराशा हुई है सरकार को आम लोगों से अपने संपर्क या कहें कम्युनिकेशन को ठीक करना होगा। रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया की तरफ से कोई बात लोगों के सामने नहीं आ रही है। सरकार में जैसे इकोनॉमिक अफेयर्स सेक्रेटरी शक्तिकांत दास ही लोगों के सामने कोई बात रख रहे हैं। फाइनेंस सेक्रेटरी बात नहीं कर रहे हैं। केवल एक ही इनसान बात कर रहा है। तो इससे लोगों में आशंकाएं फैलती हैं। लोग सोच रहे हैं कि सिर्फ एक ही आदमी बोल रहा है तो क्या बात है? रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के गवर्नर ने अभी तक कोई स्टेटमेंट नहीं दिया है। कम्युनिकेशन इज द बिगेस्ट थिंग। सरकार को अपने ऊपर पूरा आत्मविश्वास होना चाहिए और लोगों से सीधे संपर्क में आना चाहिए। सरकार यह बताने में ज्यादा तत्पर है कि कोई कठिनाई नहीं हो रही है और लोग इसे अच्छा मान रहे हैं। अभी आप नरेंद्र मोदी के एप या माईगोव डॉट इन में देखिए कि नोट बंदी से लोग बहुत खुश हैं और इसे अच्छा मान रहे हैं। लेकिन आम जनता कोे जो असुविधा हो रही है उसे भी मानना चाहिए। और इस चुनौती को स्वीकार कर लोगों से संपर्क बढ़ाना यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है सरकार के ऊपर। अब ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो वहां के लिए सरकार ने क्या किया है। सरकार ने बीज कंपनियों से कहा है कि वे किसानों से पांच सौ और एक हजार के पुराने नोट ग्रहण कर लें। लेकिन सवाल यह है कि रबी के सीजन में केवल गेहूं के बीज ही सरकारी दुकानों में उपलब्ध हैं। लेकिन आम किसान आजकल केवल गेहूं ही नहीं उगाता वह तमाम सब्जियां भी उगाता है। रबी में बहुत प्रकार की सब्जियां, दाल उगती हैं। और दालों, सब्जियों के बीज सरकारी कंपनियां नहीं देतीं। वे ज्यादातर प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों से मिलते हैं। तो अगर एक किसान गोभी उगाने की कोशिश कर रहा है तो उसके लिए वह कहां जाएगा। उसका बीज सरकारी दुकानों में उपलब्ध नहीं है। ऐसे में वह प्राइवेट सेक्टर के पास ही जाएगा। और वे पांच सौ के पुराने नोट लेंगे नहीं। आपने पुराने पांच सौ और हजार के नोट पेट्रोल पंपों पर तो इस्तेमाल करवा दिया क्योंकि वे शहरी लोग हैं। लेकिन गांवों के लोगों के लिए आपने प्राइवेट सेक्टर की बीज कंपनियों को ऐसा क्यों नहीं किया कि वे भी इन नोटों को लें। आप ऐसा कहकर नहीं बच सकते कि प्राइवेट कंपनियों को कैसे बोलें। क्योंकि जो पेट्रोल पंप हैं वे सरकारी कंपनियों के प्रतिनिधि हैं लेकिन हैं तो प्राइवेट ही। 

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