ड्रग्स के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाले शशिकांत किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। पंजाब कैडर के 1977 बैच के आईपीएस अधिकारी शशिकांत पंजाब पुलिस के डीजीपी रह चुके हैं। उनकी छवि विद्रोही के तौर पर ज्यादा है। ड्रग माफिया के खिलाफ वे हाई कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। पेश है निशा शर्मा से उनकी बातचीत के अंश:

ड्रग्स का मुख्य केंद्र पंजाब ही क्यों है?
ड्रग्स में हेरोइन की तस्करी का सबसे बड़ा केंद्र पंजाब है। इसकी वजह पंजाब का विभाजन है। जब विभाजन हुआ तो पूर्वी पंजाब भारत के हिस्से आया और पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में चला गया। लेकिन दोनों में समानता आज भी है। दोनों इलाके संपन्न हैं। संपन्न होने की वजह से यह पहले गोल्डन रूट कहलाता था। उसके बाद यह व्हाइट रूट यानी ड्रग रूट में बदला। इसके लिए बड़ी मात्रा में पैसा जरूरी है जो इस इलाके में पहले से ही था। थोड़ा बहुत राजस्थान के बिकानेर जैसी जगहों से भी तस्करी होती है।

पंजाब के कौन-कौन से रास्ते हैं जो ड्रग्स तस्करी के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं?
पंजाब में दो रास्ते से ड्रग्स आता है। एक लैंड रूट है। सीमा पर जो कटीली तारें लगीं हैं उसके ऊपर से पैकेट एक-एक करके फेंक दिए जाते हैं या फिर पीवीसी के ज्यादा गोलाई वाले पाईप के बीच में ड्रग्स के पैकेट भर दिए जाते हैं और उसे बिजली दौड़ती तारों के बीच से इस पार सरका दिया जाता है। पीवीसी के पाईप में करंट भी नहीं लगता। दूसरा वह क्षेत्र है जो हमेशा से उपेक्षित रहा है, जहां कटीली तारें नहीं लगी हैं। गुरूदासपुर जिले से होकर सबसे ज्यादा ड्रग्स आता है। इसी तरह ड्रग्स माफिया के लिए एक रास्ता है फिरोजपुर जहां से आसानी से ड्रग्स की तस्करी होती है। पठानकोट में हुए हमले के बाद इस ओर थोड़ी चौकसी बढ़ी है। इसके अलावा और भी रास्ते हैं जैसे कोलकाता में ड्रग्स थोड़ी सस्ती है। पंजाब जो ट्रक ड्राइवर कोलकाता जाता है वहां से ड्रग्स ले आता है। थोड़ा वह खुद इस्तेमाल करता है थोड़ा बेच देता है। एक और नया रूट नेपाल है जहां से ड्रग्स बिहार के बक्सर, यूपी के गोरखपुर, बहराइच होते हुए पंजाब पहुंचता है।

सीमा पार से देश में ड्रग्स लाने के लिए किस तरह के सुरक्षित तरीके अपनाए जाते हैं?
सीमावर्ती इलाकों की जमीनें राजनीतिज्ञों ने बेनामी तौर पर खरीद रखा है। इसका इस्तेमाल ड्रग्स की तस्करी के लिए सुरक्षित तौर पर होता। सीमा पार से आए ड्रग्स को चार-पांच दिन के लिए इन्हीं जगहों पर छिपा दिया जाता है। कुछ ड्रग्स बीएसएफ वाले पकड़ लेते हैं। कुछ निकाल देते हैं और कुछ का उन्हें पता ही नहीं लगता है।

पंजाब में ड्रग्स की मौजूदगी कब से है?
एक समय में पंजाब में ड्रग्स स्मगलर थे जो विदेशों में भी ड्रग सप्लाई करते थे। उन्हें हवाला से पैसा मिलता था। आज भी हवाला से पैसा मिलता है। लेकिन उस समय पैसे को स्मगलर तक पहुंचने में समय लगता था। पैसे मिलने में देरी की वजह से स्मगलरों ने हेरोइन को पंजाब में ही बेचना शुरू कर दिया ताकि जल्दी से पैसा मिल सके। 1980 से पंजाब में ड्रग्स की बिक्री शुरू हो गई थी जो नब्बे के दशक तक परिपक्व होकर स्थापित हो गई। 2006 के आसपास पता चला कि सिंथेटिक ड्रग पंजाब में आने लगी है। सिंथेटिक ड्रग्स मतलब जो केमिकल, दवाइयां बनाने में इस्तेमाल होता है उनका प्रचलन शुरू हो गया। इसके बाद फार्मास्युटिकल ड्रग्स यहां बिकने लगीं। वर्तमान में भुक्की (अफीम निकालने के बाद सूखे फूल को पीसकर बनाया गया चूरा) का इस्तेमाल ज्यादा है। अब कोकीन भी आनी शुरू हो गई है।

राज्य सरकार का इस गंभीर मसले पर क्या रुख है?
मेरा ऐसा मानना है कि राजनतिज्ञों (सभी नहीं) का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ड्रग्स स्मगलिंग से संबंध है। पंजाब पुलिस भी इसमें शामिल है। 2007 में मैंने मुख्यमंत्री को ड्रग्स माफिया की लिस्ट दी थी लेकिन आज तक उस पर काम नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिसंबर 2015 में ‘मन की बात’ में ड्रग्स का मुद्दा उठाया था। लेकिन उसके बाद प्रधानमंत्री ने उस पर क्या किया मुझे यह जानना है। मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि हमारे देश की राजनीति अपराध के आस-पास ही घूमती है।

ड्रग्स की तस्करी रोकने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
पहला कदम यह है कि चेन आॅफ सप्लाई को खत्म करना होगा। ये काम पुलिस और इंटेलिजेंस का है। छोटी मछलियों को पकड़ने से कुछ नहीं होगा बड़ी मछली के लिए जाल बिछाना होगा। दूसरा जो भी सरकारी कर्मचारी नशे को बढ़ावा देता है उन पर धारा 311 लगा कर उन्हें नौकरी से बाहर निकाला जाए। तीसरा हेल्थ डिपार्टमेंट को चाहिए की ऐसे उपाए करे की नशा छोड़ने वाले को उपचार के लिए सुविधाएं मिल सके। चौथा स्कूलों में ड्रग्स के नुकसान पर पाठ पढ़ाया जाना चाहिए ताकि उन्हें स्वास्थ्य के प्रति सतर्क किया जा सके। पांचवा तरीका रोजगार का है। युवाओं को सुरक्षित भविष्य का भरोसा दिया जाए।