तेज की लालू शैली

प्रियदर्शी रंजन

चारा घोटाले के विभिन्न मामलों में दोषी करार दिए जाने के बाद बेटे तेज प्रताप यादव की शादी एक मौका बना जब लालू प्रसाद यादव ने अपनी राजनीतिक क्षमता का बड़ा प्रदर्शन किया, वो भी अपने खास अंदाज में। 15 हजार से भी अधिक बाराती, शाही इंतजाम, बारात में प्रदेश के बडेÞ नेताओं की मौजूदगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, शरद यादव जैसे दिग्गज नेताओं का बाराती के तौर पर उपस्थित रहना शादी का खास आकर्षण रहा। बावजूद इसके, शादी में लोगों का सबसे अधिक ध्यान दूल्हे तेज प्रताप यादव ने ही खींचा। तेज का हजारों की भीड़ के बीच बग्घी पर आना, शाही पहनावा, वरमाला के बाद राजनीतिक मंच की तरह लोगों से हाथ जोड़ कर प्रणाम करना और समर्थकों का तेज प्रताप यादव जिंदाबाद के नारे से शादी समारोह को गुंजायमान करना, एक अलग ही अंदाज बयां कर रहा था। देश के बड़े राजनीतिक घरानों की शादियों में ऐसा पहले शायद ही कभी देखा गया हो। कुछ राजनीतिक व सामाजिक जानकरों ने इसे भौंडा प्रदर्शन करार दिया तो कुछ का मानना है कि लालू की तर्ज पर तेज प्रताप ने भी लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़नी शुरू कर दी है।
दरअसल, लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप का अंदाज अनोखा है। लालू की राजनीति भी अपनी विचारधारा से कहीं अधिक अपने अनोखे अंदाज और कार्यशैली के लिए जानी जाती रही है। जनता से सीधे संवाद में उनके अंदाज का कोई सानी नहीं है। तेज प्रताप की संवाद शैली भी अपने पिता के समान ही दिख रही है। शादी में तेज का अंदाज तो एक बानगी भर थी। हाल के उनके कुछ बयान, कार्य और तस्वीरें इस बात की पुष्टि करती हैं कि भले ही लालू ने तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया हो मगर उनके अंदाज में राजनीति करने की शैली तेज प्रताप में ही है। चाहे वो सुशील मोदी को बेटे की शादी में तोड़फोड़ करने की धमकी देना, नीतीश कुमार पर सीधे हमलावार होना, आरएसएस के मुकाबले डीएसएस का गठन करना, गांधी मैदान की रैली में शंख फूंकना या कृष्ण बनकर जनता के बीच अवतरीत होना हो, तेज ने राजनीति में अपना अलग अंदाज गढ़ लिया है।
एक पुरानी कहावत है कि जब पिता के जूते में पुत्र का पैर समाने लगे तब पिता की नजर में पुत्र जवान हो जाता है। लालू की राजनीतिक शैली को जानने वाले पुराने दिग्गजों को भी लगता है कि तेज प्रताप ने जाने-अनजाने में ही सही, लालू के जूते में अपना पैर डाल दिया है। तेज प्रताप में तेजस्वी के मुकाबले जनता से संवाद करने की बेहतर कला है। राजनीतिक जानकार व द हिंदू अखबार के स्थानीय संपादक अमरनाथ त्रिपाठी के मुताबिक, ‘भले ही लालू ने तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी मान लिया हो मगर अंदाज में तेज प्रताप ही उनके असली उत्तराधिकरी हैं। तेज ने राजद की पिछली महारैली में कहा था कि वे लालू की तरह बनना चाहते हैं। उनके इस बयान को हल्के में नहीं लेना चाहिए। वे सही मायनों में लालू के तय मापदंडों पर ही राजनीति कर रहे हैं। तेज ने अपनी शादी को भी लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ने का मार्ग समझा।’
जाने-माने पत्रकार और बिहार की राजनीति को काफी करीब से जानने वाले सुरेंद्र किशोर का मानना है, ‘लालू प्रसाद की हुबहू नकल करना किसी के लिए भी मुश्किल है लेकिन तेज प्रताप की कार्यशैली और उनकी संवाद शैली कई बार लालू की झलक को सार्वजनिक करती है।’ हालांकि इसके पीछे की वजह बताते हुए सुरेंद्र किशोर कहते हैं, ‘तेज प्रताप और लालू की कार्यशैली में जो थोड़ा बहुत फर्क दिखता है उसके पीछे मूलत: परिवेश का मसला है। लालू प्रसाद यादव गरीबी और संघर्ष से निकले हुए नेता हैं और उनके बेटों का लालन-पालन राजशी माहौल में हुआ है लेकिन फिर भी कुछ अदा खून ही खून को सिखाती है।’ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय तेज प्रताप की कार्यशैली को ढकोसला करार देते हैं। उनका कहना है, ‘लालू के दोनों बेटों के बीच अघोषित रूप से लालू की राजनीतिक विरासत पर कब्जा करने की लड़ाई शुरू हो चुकी है। इसी क्रम में उनके लड़के एक तरह से नौटंकी का वो पार्ट अदा कर रहे हैं जिसमें उनके समर्थक उनमें से किसी एक को लालू का अवतार स्वीकर कर लें। अब जमाना काफी आगे निकल चुका है और लालू के दोनों बेटे बिहार को घसीट कर पीछे ले जाने पर उतारू हैं। नए जमाने का नौजवान उनकी कार्यशैली और संवाद शैली से इत्तेफाक नहीं रखता।’
हालांकि तेज प्रताप की राजनीति को इतने पर ही खत्म नहीं किया जा सकता है। पिता की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए तेज प्रताप ने वर्ष 2014-15 में धर्म निरपेक्ष सेवक संघ (डीएसएस) का गठन किया था। डीएसएस का गठन तेज प्रताप द्वारा आरएसएस को दिया जाने वाला जवाब था। अधिवक्ता शिवनंदन भारती इस संगठन के अध्यक्ष हैं जबकि तेज प्रताप इसके संरक्षक हैं। इस संगठन का मूल उद्देश्य बिहार में धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा को मजबूत करना है। राजद की राजनीति को जानने वाले लोग डीएसएस को तेज प्रताप की पार्टी पर पकड़ बनाने और बढ़ाने की मुहीम के तौर पर देखते हैं। इसके पीछे की वजह चाहे जो भी हो, इसमें कोई शक नहीं कि तेज प्रताप लालू यादव की तरह ही अपनी राजनीति की लकीर को अपने हिसाब से खींचना चाह रहे हैं।

जब तेज लीला ने सुर्खियां बटोरी
तेज प्रताप के खास अंदाज का आगाज तब हुआ जब वे बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने। मंत्री बनने के बाद एक के बाद एक उनका अंदाज जनता के सामने आया। वर्ष 2016 का दिसंबर महीना, प्रशासन पूरी मुस्तैदी से गुरु गोविंद सिंह के 350वें प्रकाशोत्सव की तैयारियों में जुटा हुआ था। राज्य के मुखिया ने हर मंत्री के कांधे पर जिम्मेदारी दे रखी थी। सब अपना काम निपटाने में लगे थे। लेकिन तेज प्रताप का यह अंदाज ही था कि प्रकाशोत्सव के काम को अंजाम देते हुए मथुरा पहुंच गए। अपने अराध्य देव कृष्ण की भक्ति में तेज प्रताप का खास अंदाज सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। तस्वीर में तेज प्रताप कृष्ण रूप में दिख रहे थे। पहली बार बिहार की सत्ता का एक चेहरा प्रचलित राजनीतिक चेहरे से अलग कोई दूसरा रूप पेश कर रहा था। उनकी वह तस्वीर कितनी वायरल हुई इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रकाशोत्सव में शिरकत करने के लिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना आए तो उन्होंने तेज प्रताप का हाल चाल पूछते हुए कहा कि ‘और कैसे हैं कन्हैया जी’। तेज प्रताप भगवान कृष्ण के अनन्य उपासक हैं। वे भगवान कृष्ण की तरह बांसुरी भी बजाते हैं। हाल ही में पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के एक कार्यक्रम में उन्होंने जमकर बांसुरी बजाई और लोगों से तारीफें पाई। कृष्ण भक्ति से जुड़े संस्थान इस्कॉन से भी उनका पुराना रिश्ता है। लोगों को 1990 के दशक की वो तस्वीर याद होगी जिसमें लालू के करिश्माई व्यक्तित्व को उनके समर्थकों ने भगवान कृष्ण के साथ जोड़ा था। इसी तरह 26 जनवरी, 2017 को गणतंत्र दिवस के मौके पर एक तस्वीर में तेज प्रताप जलेबी बनाते हुए दिखे। पहले तो लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ कि मंत्री जी खुद जलेबी बना रहे हैं लेकिन बाद में यह सच साबित हुई। 1 फरवरी, 2107 को वसंत पंचमी के मौके पर एक बार फिर तेज प्रताप की एक और तस्वीर वायरल हुई। उस तस्वीर में मंत्री महोदय एक पूजा पंडाल में बैठकर सरकारी फाइल निपटाते हुए दिखे। इसमें उनके पिता का वो अक्स झलक रहा था जिसमें लालू जहां बैठ जाते थे वहीं दफ्तर खुल जाता था। वह तस्वीर इस नौजवान नेता की उस जोश को भी झलका रहा था जिससे दुनिया को यह बताया जा सके कि काम करने के लिए सोच और जोश होना चाहिए, माहौल खुद ब खुद तैयार होता है। तेज प्रताप का यह अंदाज, उनकी कार्यशैली और उनका अल्हड़पन उनको अपने पिता के करीब ले जाता है।
बात अक्टूबर 2016 की है। तेज प्रताप की शादी के लिए लड़कियों का प्रस्ताव आ रहा था। मां राबड़ी देवी ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि इस बार मैं छठ पर्व नहीं करूंगी। मेरे घर अब मंगल गीत मेरे बेटे की शादी के वक्त ही गाया जाएगा। तेज प्रताप की शादी की बात पर भाजपा के दिग्गज नेता सुशील मोदी ने सोशल मीडिया पर चुटकी ली तो तेज प्रताप ने पलटकर जवाब दिया। जवाब थोड़ा तीखा था, उन्होंने कहा, ‘मोदी जी अपने बेटे की शादी की चिंता करें मेरी नहीं, उनका लड़का नपुंसक है क्या।’ एक बार तेज प्रताप का गुस्सा मीडिया पर भी फूटा था। पार्टी के एक कार्यक्रम में मीडियाकर्मी ने उनकी एक वीडियो बनाई। हालांकि उसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था लेकिन उन्होंने उस वीडियो को दिखाने की जिद की, मंच पर ही मामला बढ़ा और मंच से ही मीडियाकर्मी को उन्होंने धमकी दे डाली। उस कार्यक्रम में लालू भी मौजूद थे। पहले तो वे देखते रहे फिर मंच से ही बेटे को राजनीति में मीडिया का महत्व समझाया।
जदयू के महागठबंधन से अलग होने के बाद 27 अगस्त, 2017 को राजद की महारैली में देशभर के भाजपा विरोधी बड़े नेताओं की मौजदूगी में तेज प्रताप ने शंखनाद किया और गंवई अंदाज में पगड़ी भी बांधी। महारैली में उन्होंने पगड़ी बांधते हुए अपनी जाति पर गर्व करते हुए कहा था, ‘हम अहीर हैं न और अहीर का उ पगड़ी बांधना न पड़ेगा, तबे न बजेगा शंख।’ उसके बाद उन्होंने भाजपा की चुटकी लेते हुए कहा, ‘भाजपा का कोई नेता शंख बजा सकता है, नहीं बजा सकता है, हार्ट अटैक आ जाएगा।’ तेज के इस संबोधन पर खूब तालियां भी बजी। तेज प्रताप ने अपने अंदाज में जनता से सीधे संवाद करते हुए कहा, ‘पूरा जन सैलाब उमड़ गया है, देख के सीना चौड़ा हो गया रे भईवा।’
इसी दौरान तेज ने अपने छोटे भाई तेजस्वी को अर्जुन और खुद को कृष्ण बताया था। शादी के बाद पहली बार तेज प्रताप ने अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ इंस्टाग्रम पर एक फोटो पोस्ट की। शादी के चर्चे अभी खत्म भी नहीं हुए थे कि शादी के बाद की पहली तस्वीर से लोगों के दिल थम गए। तस्वीर में दोनों पति-पत्नी एक साइकिल पर बैठे एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले दिखे। उनकी यह हालिया फोटो भी सोशल मीडिया पर खूब पसंद की गई। 

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