प्रदीप सिंह/प्रधान संपादक।
आदित्य नाथ योगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं यह बात बहुत से लोगों के गले नहीं उतर रही। उन्हें काम करने का मौका दिए बिना उनके बयानों और उनकी विचारधारा को निशाना बनाया जा रहा है। उनके सत्ता संभालने के साथ ही भविष्यवाणियां की जा रही हैं कि कैसे प्रदेश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ेगा। इसी उम्मीद से एक न्यूज चैनल ने गोरखपुर में एक मुसलमान से पूछा कि योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद आप लोगों को परेशानी होगी। उसने कहा नहीं क्यों परेशानी होगी। संवाददाता ने उसे योगी के बयानों की याद दिलाई। उसका सपाट सा जवाब था कि वह मंच की बात है। हम लोग तो पहले भी काम लेकर जाते थे योगी जी करते थे और अब भी करेंगे। विघ्न संतोषी बेचैन हैं। जो लोग योगी को केवल उनके बयानों से जानते हैं उनके लिए उससे परे योगी के बारे में कोई और कल्पना करना कठिन है। पर जो लोग उनके काम को जानते हैं और गोरखनाथ पीठ के अतीत और उद्देश्य को जानते हैं उन्हें बड़े बदलाव की उम्मीद है। योगी के विरोधियों के पास उनके खिलाफ दो ही मुद्दे हैं। एक उनके बयान और दूसरा उनकी जाति। उनके बयानों को संदर्भ से काटकर देखना उनके साथ अन्याय है। रही बात जाति की तो जिस दिन उन्होंने परिवार छोड़ा और संन्यास लिया उनकी कोई जाति नहीं रह गई। जाति की बात करते ही लोग गढ़वाल में उनके परिवार को दिखा रहे हैं। परिवार की आर्थिक हालत ही इस बात प्रमाण है कि वे इन बातों से ऊपर उठ चुके हैं। जो लोग इन दो मुद्दों पर उन पर हमला कर रहे हैं वे दरअसल योगी को और मजबूत कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश का जनादेश एक पार्टी की सरकार जाने और दूसरी पार्टी की सरकार आने का ही मामला नहीं है। यह जनादेश प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति में भी बदलाव का संदेश लेकर आया है। इसका पहला सबक है कि जैसे चल रहा था वैसे नहीं चलेगा। यह जनादेश इस बात की भी मुनादी करता है कि विकास के कामों में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव वाली सरकार नहीं चाहिए। यह भी कि प्रदेश के संधाधनों पर किसी एक जाति या धर्म के लोगों का आधिपत्य नहीं होगा। 2007 में वादा करके भी मायावती उत्तर प्रदेश को गुंडा मुक्त नहीं कर पार्इं। पर योगी राज में लोगों को भरोसा है कि ऐसा होगा। सरकार बने अभी दो हफ्ते भी नहीं हुए हैं पर बदलाव दिखने लगा है। उत्तर प्रदेश का जनादेश मुसलिम परस्त होती जा रही राजनीति को खारिज करने की भी घोषणा है। इस जनादेश ने इस तिलिस्म को तोड़ा है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में, जहां मुसलिम आबादी उन्नीस फीसदी से ज्यादा है, मुसलमानों के समर्थन के बिना पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बन सकती। इस बार भाजपा के पास 1991 जैसा कोई भावनात्मक और धार्मिक मुद्दा भी नहीं था। यह विकास में सबका साथ सबका विकास के नारे को स्थापित करने का भी जनादेश है। देश में धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की राजनीति की विदाई का भी जनादेश है। इस चुनाव में अपने वोट से हिंदू मतदाता ने बताया है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एक खास तरह की राजनीति का अब और समर्थन करने को वह तैयार नहीं है। अब देखना है कि मुसलमान मतदाता कब इस राजनीति से तौबा करता है। क्योंकि उसके सामने मोदी सरकार का करीब तीन साल का काम है और योगी सरकार को भी वह पांच साल देखेगा।
उत्तर प्रदेश में योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब बदलाव दिखाई देगा। भारतीय जनता पार्टी का कोई और नेता मुख्यमंत्री बनता तो उसका वैसा संदेश नहीं जाता जैसा योगी के बनने का। तुलसीदास की एकनिष्ठ रामभक्ति की तरह ही योगी के लिए भी कर्म ही एकनिष्ठ भक्ति है। उनके करीबी लोगों और गोरखपुर में उनके संपर्क में आए अधिकारियों की मानें तो वे सुनते सबकी हैं। सबकी सुनने के बाद तत्काल फैसला करते हैं और उसे लागू भी। सामाजिक समरसता उन्हें नाथ सम्प्रदाय से घुट्टी में मिली है। महाभारत में एक प्रसंग आता है जब युद्ध अवश्यंभावी हो जाता है तो विदुर कुंती से पांडवों को विजयी होने का आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं। कुंती कहती हैं इसका अर्थ आप जानते हैं। इसका अर्थ है कौरवों की मृत्यु मांगना। विदुर कहते हैं कि अब निष्पक्ष रहने का समय निकल गया है। यह समय किसी एक पक्ष में खड़े होने का है। उत्तर प्रदेश के मतदाता को भी शायद यही लगा कि अब निष्पक्ष होने का समय नहीं है। इसीलिए उसने भाजपा को ऐसा प्रचंड बहुमत दिया। अब जिम्मेदारी भाजपा और नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी की है कि वे लोगों की आकांक्षाओं पर खरे उतरें। दूसरे मुख्यमंत्रियों की तरह योगी के पास छोटी सी भी गलती की गुंजाइश नहीं है। उनके विरोधी अपने शस्त्रों पर सान चढ़ा रहे हैं और मौके के इंतजार में हैं। वैसे योगी जिस गति से काम कर रहे हैं उससे लगता नहीं कि उनके विरोधियों को जल्दी कोई मौका मिलने वाला है।