राजीव थपलियाल

अंतत: वही हुआ जिसका अंदेशा था। उत्तराखंड के तीन सौ करोड़ से भी अधिक के एनएच-74 घोटाले में जिन बड़े अधिकारियों व नेताओं पर कार्रवाई की गाज गिरनी थी, उन्हें बचाने का पूरा इंतजाम कर लिया गया। सीबीआई जांच की संस्तुति खारिज हो चुकी है और एसआईटी की पड़ताल कछुए की गति से आगे बढ़ रही है। घोटाले में नामजद कई आरोपी भूमिगत हो चुके हैं और कुछ के तो विदेश भाग जाने की भी सूचना है। ऐसे में भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति सवालों के घेरे में है। साथ ही यह भी साफ हो गया है कि केंद्रीय मंत्री की जिद के सामने प्रदेश के मुख्यमंत्री ने घुटने टेक दिए हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़ने का आह्वान करने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से बड़ा झटका लगा है। रामनगर से सितारगंज तक एनएच-74 के प्रस्तावित चौड़ीकरण के लिए जमीन अधिग्रहण में हुए तीन सौ करोड़ रुपये के खेल में कुमाऊं के मंडलायुक्त की सिफारिश पर छह अफसरों को निलंबित करते हुए सीबीआई जांच की सिफारिश की गई थी। मंडलायुक्त की जांच में पाया गया था कि करीब चार वर्षों तक हुई इस जालसाजी में एसडीएम व तहसीलदार स्तर के अधिकारियों के साथ ही कुछ बड़े अधिकारी और नेताओं की भी भूमिका सामने आ सकती है। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई स्थानीय स्तर पर संभव न होने के कारण सीबीआई जांच की संस्तुति की गई थी। मुख्यमंत्री के आदेश पर शासन ने सीबीआई जांच के लिए केंद्रीय कार्मिक विभाग को खत भी लिख दिया था। सीबीआई को खत लिखने के बाद घटना से संबंधित समस्त दस्तावेज कोषागार के डबल लॉकर में रख दिए गए थे।
एक ओर इस मामले में सीबीआई जांच का इंतजार होता रहा तो दूसरी ओर केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस जांच की आवश्यकता को ही खारिज कर दिया। गडकरी ने तो इस संबंध में उधमसिंह नगर में दर्ज एफआईआर पर भी आपत्ति जताई है। पिछले दिनों देहरादून में एक निजी कार्यक्रम में पहुंचे गडकरी ने साफ कहा कि इस मामले में सीबीआई जांच नहीं होगी। गडकरी का तर्क है कि भूमि अधिग्रहण और मुआवजे का निस्तारण राज्य सरकार के स्तर पर होता है। ऐसे में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के खिलाफ कार्रवाई या जांच उचित नहीं है। गडकरी के इस ऐलान के बाद लगातार सीबीआई की जांच कराने का दावा करने वाले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भी खामोश हो चुके हैं। प्रदेश भाजपा कार्यालय में नौ जनवरी को आयोजित एक कार्यक्रम में सीएम ने भी कह दिया कि घोटाले में एसआईटी जांच ही पर्याप्त है। यानी अब सीबीआई जांच नहीं होगी।
सवाल यह है कि क्या अधिकारियों का मनोबल न गिरे इसके लिए उन्हें किसी भी कार्रवाई की जद से बाहर रखा जाना चाहिए और उन्हें घोटाला करने की छूट दी जानी चाहिए। सीबीआई जांच को लेकर केंद्र व राज्य सरकार के बीच रस्साकसी के कारण पुलिस ने भी अपनी जांच रोक दी। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि इस घोटाले में लाभान्वित होने वाले कई आरोपी भूमिगत हो गए। यही नहीं, काफी देरी से इसकी तफ्तीश के लिए एसआईटी गठित की गई। जब तक एसआईटी कुछ करती तब तक आठ आरोपी उत्तराखंड से अपनी जमीन जायदाद बेचकर फरार हो गए। अब उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया गया है। बेशक एसआईटी इस घटना के 12 आरोपियों को जेल भेज चुकी है पर वे ताकतवर लोग अभी भी कार्रवाई की जद में नहीं आ पाए हैं जिनकी ओर इशारा करते हुए कुमाऊं कमिश्नर ने सीबीआई जांच की जरूरत समझी थी।
तीन सौ करोड़ के खेल में इस बात का अंदेशा है कि इसमें अफसरों और राजस्व अधिकारियों के साथ ही स्थानीय नेताओं की मिलीभगत रही है। स्थानीय नेताओं में दोनों प्रमुख दलों के नेता शामिल हैं। इस कारण प्रदेश सरकार कहीं न कहीं दबाव में है। रही सही कसर नितिन गडकरी के खत ने पूरी कर दी। दरअसल, जिस दिन सरकार ने एसडीएम स्तर के छह अफसरों को निलंबित कर पूरे मामले की जांच सीबीआई को हस्तांतरित करने की बात कही उसी दिन यह अहसास हो गया था कि कहीं न कहीं इस मामले में बड़ी मछलियों को बचाने की तैयारी कर ली गई है। शीशे की तरह साफ इस मामले में सीबीआई जांच के लिए कुछ बचा भी नहीं है। यदि कुछ बचा है तो अब तक बच रहे अधिकारियों व नेताओं के खिलाफ कार्रवाई।

गडकरी ने पत्र में क्या लिखा
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य की सत्ता संभालते ही इस मामले के सीबीआई जांच के आदेश दे दिए थे। इसके बाद नितिन गडकरी ने मुख्यमंत्री को 5 अप्रैल, 2017 को पत्र लिखा था कि एनएच-74 निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण में भ्रष्टाचार का जो मामला बनता है उसमें एनएचएआई के अधिकारियों का कोई संबंध नहीं है क्योंकि जमीन अधिग्रहण राज्य सरकार के अधिकारी कलेक्टर और स्टेट रेवेन्यू डिपार्टमेंट मिलकर देखते हैं। इसमें एनएचएआई के अधिकारियों का कोई रोल नहीं होता है। इसलिए एनएचएआई के अधिकारियों पर इस मामले में जांच से काम पर असर पड़ेगा। दरअसल, गडकरी की चिंता एनएचएआई अधिकारियों को लेकर है। घोटाले के संबंध में पंत नगर थाने में दर्ज एफआईआर में नामदज आरोपियों में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के कुछ अफसरों को भी शामिल किया गया है। अपनी गिरफ्तारी पर इन अफसरों ने हाईकोर्ट से स्टे ले लिया है। गडकरी चाहते हैं कि उनके नाम ही मुकदमे से हटा दिए जाएं। भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए गडकरी अपनी मर्यादा भी भूल गए और धमकी देने पर उतर आए। उन्होंने राज्य सरकार को चेताया कि यदि सीबीआई जांच हुई तो उत्तराखंड में 12 हजार करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली आॅल वेदर रोड पर काम रोक दिया जाएगा। साथ ही उन्होंने यह भी धमकी दी कि एनएच से संबंधित अन्य सभी परियोजनाओं का काम बंद हो जाएगा।

सड़क से सदन तक हंगामा
इस पूरे प्रकरण पर विपक्ष खासकर कांग्रेस पहले दिन से सरकार की घेरेबंदी में लगी हुई है। 8 जून, 2017 को त्रिवेंद्र सरकार के पहले बजट सत्र की शुरुआत से ही कांग्रेस का विरोध जारी है। बजट सत्र के पहले दिन एनएच-74 घोटाले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर सदन में नियम 310 के तहत चर्चा कराने को लेकर कांग्रेस नेताओं ने भारी हंगामा किया था। जबकि सदन के बाहर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सड़क पर धरना दिया। नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश ने सदन में कहा था कि एनएच घोटाले को सरकार दबाना चाहती है। जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली भाजपा सरकार ने घोटाले का पर्दाफाश करने वाले कुमाऊं के कमिश्नर डी. सेंथिल पांडियन को पद से हटाकर अपनी नीयत में खोट दर्शा दिया है। यदि जांच के बीच ही पांडियन का स्थानांतरण रूटीन मान भी लिया जाए तो भी नितिन गडकरी के पत्र के तत्काल बाद उनकी रवानगी को उससे क्यों न जोड़ा जाए। करीब छह माह पूर्व सदन में कही गई इंदिरा हृदयेश की यह बात आज सही साबित हो रही है।

शासन के आला अफसर और खुद सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत अच्छी तरह समझते हैं कि लंबे समय से हो रहे इतने बड़े घोटाले को बगैर किसी बड़े संरक्षण के अंजाम नहीं दिया जा सकता। इसके बावजूद उनके खिलाफ कार्रवाई तो दूर, कमिश्नर की जांच में उन नामों का खुलासा तक नहीं हुआ। लगभग नौ महीने की जांच के बाद भी ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से यह साफ है कि कमिश्नर ने सीबीआई जांच की संस्तुति क्यों की थी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और खुद मुख्यमंत्री भी कहते हैं कि एनएच घोटाले के पैसे कांग्रेस के कुछ मित्रों के खाते में भी गए हैं। सवाल यह है कि यदि सीएम और भाजपा नेता इस हकीकत को जानते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। सूत्रों का दावा है कि यदि जांच निष्पक्ष हुई तो भाजपा के दामन भी दागदार होंगे। इस कारण मामला गोल-गोल घूम रहा है।
कुमाऊं के कमिश्नर डी. सैंथिल पांडियन की जांच के बाद शासन के आदेश पर अपर जिलाधिकारी प्रताप शाह ने 10 मार्च, 2017 को थाना पंत नगर में धारा 167, 218, 219, 420, 409, 466 ,468, 471, 474, 120 बी और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद एसआईटी जांच शुरू हुई। एसआईटी ने कई उपजिलाधिकारियों, कर्मचारियों, किसानों के बयान दर्ज किए। बाद में पुलिस ने नवंबर 2017 में निलंबित एसडीएम भगत सिंह फोनिया, निलंबित संग्रह अमीन अनिल कुमार, ततकालीन प्रभारी तहसीलदार मदन मोहन पडलिया, जसपुर के रिटायर तहसीलदार भोले लाल, जसपुर के अनुसेवक तहसीलदार रामसमुझ, स्टाम्प वेंडर जीशान, किसान ओम प्रकाश और चरण सिंह को गिरफ्तार किया। मुख्य आरोपी डीपी सिंह व तीन अन्य को बाद में गिरफ्तार किया गया। पुलिस का कहना है कि आरोपियों ने तत्कालीन एसएलएओ डीपी सिंह की मिलीभगत से नियमों की अनदेखी कर पिछली तारीख से एनएच-74 में आने वाली भूमि की प्रकृति बदल दी और करोड़ों रुपये का अवैध मुआवजा प्राप्त कर लिया। 