राजनीतिक दबाव और सीबीआई

राजनीतिक दबाव में आकर काम करने की इसकी शैली बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड की जांच के दौरान ही नजर आने लगी थी और जांच ब्यूरो के दो वरिष्ठतम अधिकारियों के बीच हुए घमासान ने यह तो स्पष्ट कर दिया कि इस संस्था में सबकुछ ठीक नहीं है और इसमें व्यापक बदलाव की जरूरत है।
बोफोर्स तोप सौदे की जांच के दौरान जांच ब्यूरो की कार्यशैली में जो दीमक लगना शुरू हुआ उसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील सभी मामलों की जांच में महसूस किया जा सकता है। बोफोर्स तोप सौदा दलाली मामले में प्राथमिकी निरस्त होने के फैसले के सालों बाद उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करना और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी को आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में बरी करने के विशेष अदालत के फैसले को चुनौती न देना और बिहार की नीतीश सरकार द्वारा अपील दाखिल करने के बाद उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाना राजनीतिक दबाव में उसकी कार्यशैली को ही दर्शाता है।
शायद यही वजह रही है कि देश की शीर्ष अदालत ने इस प्रतिष्ठित जांच एजेंसी को ‘पिंजरे में बंद तोते’ की उपाधि से नवाजा था। शीर्ष अदालत की बार बार की प्रताड़ना और फिर न्यायिक व्यवस्था के मद्देनजर इस जांच एजेंसी को राजनीतिक शासक के चंगुल से मुक्त कराने के प्रयासों और इसके निदेशक का न्यूनतम कार्यकाल दो साल निर्धारित करने के बावजूद ‘पिंजरे का तोता’ कभी भी खुले आसमान में उड़ान भरने का साहस नहीं जुटा सका।
बीच बीच में चर्चा में आने वाले सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति फर्जी मुठभेड़ कांड में आरोपी बनाए गए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को आरोप मुक्त करने के आदेश में अदालत ने सीबीआई की कार्यशैली पर प्रतिकूल टिप्पणी की थी और इसे राजनीति से प्रेरित बताया था।
केंद्रीय जांच ब्यूरो के इतिहास में राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील ऐसे अनेक मामले हैं जिनकी जांच में यह एजेंसी पूरी तरह से खरी नहीं उतरी। इस तरह के अधिकांश मामलों में जांच ब्यूरो को किसी न किसी रूप में ऊपर से आदेशों का इंतजार रहा।
बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड के बाद बिहार का बहुचर्चित चारा घोटाला, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से संबंधित आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में विशेष अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती न दिया जाना, समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, उनके पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अन्य परिजनों द्वारा आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोपों की जांच, बसपा सुप्रीमो की आय से अधिक संपत्ति की जांच, टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन प्रकरण, नीरा राडिया टेलीफोन टैपिंग कांड, कोयला खदान आवंटन प्रकरण की जांच से लेकर व्यापम कांड, शारदा पोंजी प्रकरण, आरुषि तलवार और हेमराज हत्याकांड जैसे अनेक मामलों में जांच ब्यूरो की कार्यशैली लगातार सवालों के घेरे में रही है।

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