सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सभी आरोपियों को बरी किए जाने के बाद जहां कांग्रेस और डीएमके इसे न्याय की जीत बता रहे हैं वहीं भाजपा इस फैसले को निराशाजनक बता रही है। अदालत के फैसले से हैरान सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील व स्वराज इंडिया के संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण का कहना है कि इतने बड़े घोटाले में आरोपियों का बच जाना न्यायपालिका में बेईमानी का उदाहरण है। इस मसले पर अभिषेक रंजन सिंह की उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश :

विशेष अदालत ने जो फैसला सुनाया है वह जांच एजेंसियों और न्यायपालिका के लिए कितना बड़ा सबक है?
सीबीआई कोर्ट का यह फैसला जांच एजेंसियों और न्यायपालिका के लिए अच्छा संदेश नहीं है। मैं इस फैसले से अचंभित हूं। इस केस में सीबीआई ने अपनी तरफ से अच्छी कोशिश की थी। कोर्ट में उसने कई अहम सबूत भी दिए थे। मैं एक वकील हूं और इस केस से जुड़ी बातों से वाकिफ हूं। मुझे यकीन था कि 2स्पेक्ट्रम के आवंटन में गड़बड़ी करने वाले राजनेताओं और अधिकारियों को सजा मिलेगी लेकिन इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी। देश की जनता भी इस फैसले से आश्चर्यचकित है। इससे यह संकेत मिलता है कि प्रभावशाली लोग देश की न्यायिक प्रणाली के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। इस फैसले पर अगर कांग्रेस जश्न मना रही है तो उसे थोड़ी बहुत शर्म भी आनी चाहिए। सीबीआई को इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करनी चाहिए। मैं समझता हूं कि वह ऐसा करेगी। निचली अदालतों के कई फैसले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बदले गए हैं। जांच एजेंसियों को इससे सबक तो लेना ही चाहिए ताकि भ्रष्टाचार से जुड़े अन्य मामलों में आरोपियों को सजा मिल सके।

इस फैसले के क्या राजनीतिक असर होंगे?
मैं फिर कहना चाहूंगा कि फैसला निराशाजनक है। लेकिन अब चूंकि फैसला आ चुका है तो संबंधित पक्षकार जिन्हें इससे राहत मिली है वे तो खुशी मनाएंगे। कांग्रेस और डीएमके इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले की वजह से कांग्रेस को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर जनसभाओं में इनका जिक्र करते थे। अब जबकि 2जी मामले में सभी आरोपियों को अदालत ने दोष मुक्त करार दिया है तो कांग्रेस को घेरने का भाजपा का यह मुद्दा खत्म हो गया है। भाजपा के लिए यह किसी झटके से कम नहीं है लेकिन राजनीतिक रूप से यह भाजपा के लिए फायदेमंद भी साबित हो सकता है। भाजपा अगले लोकसभा चुनाव में डीएमके के साथ चुनावी गठबंधन करने को इच्छुक है। इस फैसले के बाद शायद दोनों दलों के बीच कोई तालमेल हो।

इस निर्णय से संवैधानिक और कानूनी असर क्या हो सकते हैं?
अपने फैसले में स्पेशल कोर्ट ने कहा कि सीबीआई आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश करने में नाकाम रही। मैं फिर से अपनी बात दोहराना चाहूंगा कि सीबीआई ने 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुई गड़बड़ियों को लेकर आरोपियों के खिलाफ कई सबूत पेश किए। बावजूद इसके फैसले आशा के अनुरूप नहीं रहे। मुझे कहने में तनिक भी गुरेज नहीं है कि देश की अदालतों में बेईमानी होती है। यह सही संकेत नहीं है क्योंकि अगर न्यायपालिका भ्रष्ट हो जाएगी तो देश की आम जनता का इस पर से भरोसा उठ जाएगा। तब राजनीति से जुड़े लोग और बेखौफ होकर भ्रष्टाचार को अंजाम देंगे। मैं समझता हूं अगर यह परिपाटी शुरू हो गई तो लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाएं ध्वस्त हो जाएंगी।

आप भी इस मामले में पक्षकार थे, क्या आपकी पैरवी में कहीं कोई कमी रह गई?
फैसला उम्मीदों के अनुरूप नहीं आया तो लोग यही कहेंगे कि सही तरीके से केस की पैरवी नहीं हुई। जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे आधारहीन हैं। 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में धांधली हुई थी, घोटाला हुआ था, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। सीबीआई ने अपने स्तर से पर्याप्त सबूत अदालत को दिए। इस मामले में उचित पैरवी भी हुई कहीं कोई त्रुटि नहीं थी लेकिन अदालत ने उसे पर्याप्त नहीं माना।

क्या सरकार की लापरवाही या गलती तो नहीं है?
इस मामले में अदालत अपना फैसला सुना चुकी है। इसलिए अब यह कहना व्यर्थ है कि किसने क्या गलती की या लापरवाही। सीबीआई ऊपरी अदालत में अपील करने को स्वतंत्र है। जिन पक्षों की तरफ से कोई गलती या लापरवाही हुई है तो उसे सुधार सकते हैं।