देश को श्रीकृष्ण जैसा नेतृत्व चाहिए- पवन सिन्हा

अजय विद्युत

 पवन सिन्हा : श्रीकृष्ण केवल उपदेश नहीं दे रहे हैं वह, क्रिया और विधियां भी बता रहे हैं

पवन सिन्हा : श्रीकृष्ण केवल उपदेश नहीं दे रहे हैं वह, क्रिया और विधियां भी बता रहे हैं

आध्यात्मिक गुरु और मानवतावादी पवन सिन्हा का मानना है कि आज भारतवर्ष को दुनिया का सरताज बनाना है तो हमें श्रीकृष्ण के योगेश्वर स्वरूप को जानना होगा। कौशल, चातुर्य, बुद्धि, शौर्य और प्रजातांत्रिक मूल्यों की स्थापना से धर्म व राष्ट्र को दुनिया में अग्रणी बनाने के लिए आज श्रीकृष्ण जैसे नेतृत्व की ही जरूरत है। फिर इस साल तो जनमाष्टमी और स्वतंत्रता दिवस साथ साथ हैं। चारों तरफ चुनौती का माहौल हमारे पुरुषार्थ के लिए एक अवसर भी है, तो हमें कृष्णार्पित होना बहुत आवश्यक है।

कृष्ण दुनिया में सबसे ज्यादा लोकप्रिय भारतीय भगवान

जन्माष्टमी पर कैसा लगता है? श्रीगुरु पवन जी कहते हैं, ‘जन्माष्टमी पर पूरा देश श्रीकृष्णमय हो जाता है। श्रीकृष्ण से ज्यादा लोकप्रिय कोई भारतीय भगवान नहीं है पूरी दुनिया में। लेकिन हमने श्रीकृष्ण के साथ न्याय नहीं किया। श्रीकृष्ण जो थे वह हम गाते नहीं, श्रीकृष्ण ने जो किया वह हम समग्रता से बताते नहीं… और श्रीकृष्ण ने जो हमसे चाहा कि हम करें, वह हम करते नहीं।

वह दुख से कहते हैं, ‘हमारा भला हो, हमारे समाज का भला हो, उसके लिए उन्होंने जितने सिद्धांत दिए, जितना अध्ययन किया, हम वैसा श्रीकृष्ण के लिए कुछ नहीं करते। बस नाच लिए, गा लिए, श्रीकृष्ण के भजन हो गए, लल्ला की पैजनिया बज गई, और रही-सही कसर राधा-श्रीकृष्ण के सम्बन्ध निकाल देते हैं। ये तो अपूर्ण से भी अपूर्ण श्रीकृष्ण हैं।’

युवाओं के श्रीकृष्ण

देश की दो तिहाई आबादी युवा है उसके लिए श्रीकृष्ण की क्या उपयोगिता है? पवन जी बताते हैं, ‘युवाओं के लिए श्रीकृष्ण का यही संदेश है कि जो काम हाथ में लिया है उसे सर्वश्रेष्ठ करो। यह नहीं कि बस पास होने के लिए पढ़ रहे हैं। मत पढ़ो। जिस काम में जाना चाहते हो, उस काम में चले जाओ। लेकिन पढ़ रहे हो तो खूब अच्छे से पढ़ो। अपनी तरफ से अपना सर्वश्रेष्ठ दो। अपने दिमाग का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल करो और यह भी बता रहे हैं कि कैसे करो। केवल उपदेश नहीं दे रहे हैं वह, क्रिया और विधियां भी बता रहे हैं। ऐसे श्रीकृष्ण की पूजा करने की जरूरत है।’Krishna Add Images

राष्ट्र में धर्म की स्थापना

राष्ट्र, समाज और धर्म को लेकर श्रीकृष्ण का क्या योगदान है- इसे स्पष्ट करते हुए श्रीगुरु पवन बताते हैं, ‘श्रीकृष्ण ने अपना पूरा जीवन बहुत संघर्ष से काटा और अपने लिए नहीं मेरे-आपके लिए काटा। राष्ट्र सर्वोपरि, धर्म सर्वोपरि- यह श्रीकृष्ण का मूलमंत्र है। राष्ट्र में धर्म की स्थापना हो। और धर्म क्या ‘धर्मेव धार्यति’ वाला धर्म। यानी कर्त्तव्यनिष्ठा, ईश्वर कार्य, उनकी स्थापना राष्ट्र में होनी चाहिए। राष्ट्र शक्तिशाली हो, वहां शांति हो, प्रजा खुशहाल हो और राष्ट्र आततायियों के हाथ में कभी नहीं होना चाहिए। आज के नेताओं को यह सीखना चाहिए श्रीकृष्ण से।’

राजा प्रजा के लिए, प्रजा राजा के लिए नहीं

पवन जी ने बताया, ‘श्रीकृष्ण का दुनिया को एक और बहुत बड़ा योगदान है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि राजा देवताओं के प्रति उत्तरदायी नहीं है, प्रजा के प्रति उत्तरदायी है। जनतंत्र का इससे बड़ा और सिद्धांत भला क्या है? जनतंत्र का तो मूल ही यह है। श्रीकृष्ण ने ऐसे राज्य की स्थापना की थी जहां राजा प्रजा को उत्तरदायी है, ईश्वर को नहीं। राजा ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है, इस सिद्धांत का ही खंडन कर दिया उन्होंने। इसलिए वह राजा को कर्त्तव्योन्मुख मानते हैं। आपको लगातार कर्त्तव्य करना है। आप प्रजा के लिए हैं, प्रजा आपके लिए नहीं है। राजा का अपना कुछ भी नहीं है, उसका सब कुछ प्रजा को समर्पित है। इस तरह जो प्रजा को समर्पित है, वही ब्रह्म को समर्पित है।

उन्होंने कहा, ‘प्रजा को संतुष्ट और खुशहाल रखना राजा का कर्त्तव्य है। उसे राज्य में शांति की स्थापना करनी है, शक्ति की स्थापना करनी है। शक्तिहीन राज्य की स्थापना के लिए श्रीकृष्ण ने कभी भी नहीं कहा। देखिए, कितना ज्यादा योगदान है श्रीकृष्ण का भारत देश और पूरी मानवता के लिए।’

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *