उत्तराखंड- अफसरों की चौकसी

राजीव थपलियाल ।

उत्तराखंड में सरकार के मुखिया से ज्यादा चर्चा उनके अधिकारियों की होने लगी है, जो पिछली सरकारों के दौरान हुए कामकाज की बखिया उधेड़ने में जुट गए हैं। बदली सरकार के साथ अधिकारियों का रुख भी बदलता दिख रहा है। शासकीय स्तर पर एकाएक तत्परता और गति देखने को मिल रही है। राज्य में जिस नौकरशाही की नादिरशाही और विभागीय अनियमितताओं को पकड़ने में सक्रियता का अभाव देखा जाता था, वहां कई फैसले और उठाए गए कदम चौंका रहे हैं। जिस नौकरशाही के बारे में कहा जाता था कि वह देहरादून में घेरा डाल कर बैठी है इससे बाहर झांकने की वह जरूरत नहीं समझती, उसी की ओर से कुछ विभागीय स्तर पर ऐसी कार्रवाइयां की गई हैं जो बदले समय का संकेत देती हैं। आखिर इस नौकरशाही द्वारा एचएच भूमि घोटाले, पिटकुल के ट्रांसफार्मर घोटाले के मामले में जिस तरह बडेÞ स्तर पर कार्रवाई करने के अलावा स्कूलों के फर्जी डिग्री वाले शिक्षकों को तलाशने के साथ ही रोडवेज में डीजल घोटाले और अवैध खनन पर जिस तरह ताबड़तोड़ कार्रवाइयां की हैं, वह राज्य में नौकरशाही के स्तर पर एकदम बदला हुआ रूप है।

राज्य के लोग अफसरों की चौकसी से चौंके हुए हैं। राजधानी देहरादून के निवासी राजिंदर विजन बॉबी ने आश्चर्यमिश्रित खुशी जताते हुए कहा, उत्तराखंड की स्थापना के बाद आधिकारिक स्तर पर इतनी सक्रियता पहली बार देखी जा रही है। अमूमन यहां की नौकरशाही अपनी लापरवाही और नकारापन के लिए बदनाम रही है। राजनीतिक पार्टियों के स्तर पर सामाजिक संगठनों के स्तर पर या आरटीआई कार्यकर्ताओं के जरिये अलग-अलग समय पर कई धांधलियों को उठाया गया। इसमें खनन से लेकर खाद्यान्न तक हर विभाग शामिल रहा था, लेकिन कभी भी लोगों को शासकीय स्तर पर आश्वस्त करने जैसा कदम नहीं लगा। यही माना गया कि राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर हर मामले पर लीतापोती कर दी जाती है। कुछ दिन सुर्खियों में रहने पर हर मामला कहीं न कहीं दबा दिया जाता था। इससे उत्तराखंड में लोग किसी धांधली या घोटाले की खबर आने पर उसे जानने की कोशिश तो करते थे लेकिन उसमें किसी जवाबदेह अधिकारी या व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की अपेक्षा नहीं रखते थे। यहां तक कि राज्य बनने के बाद किसी घटनाक्रम में ऐसा कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया जैसे हाल में एनएच 74 घोटाले में संलिप्त के दोषी पीसीएस अफसरों को निलंबित करके किया गया। इस तरह अलग-अलग स्तर पर कार्रवाई होने से कुछ उम्मीद जगी है।

उत्तरकाशी निवासी पत्रकार हरीश थपलियाल ने कहा कि उत्तराखंड के निर्माण के बाद यहां भ्रष्टाचार काफी पनपा। राजनीतिक स्तर पर अस्थिरता के चलते शासन के साथ प्रशासन भी बेलगाम हुआ। कोई क्षेत्र नहीं बचा जिसमें धांधली न हुई हो। ऐसा नहीं कि ये सब पर्दे के पीछे रहा हो, राजनीतिक स्तर पर या प्रशासनिक स्तर पर घोटाले सामने आते रहे लेकिन ऐसा विश्वास बन गया कि इन पर कहीं कोई कार्रवाई नहीं होती है। और ऐसा हुआ भी। इससे प्रशासन में ऊपर से नीचे तक कई भ्रष्ट अधिकारियों के लिए पैसा कमाने का जरिया बन गया। अफसोस यह रहा कि जब भी ऐसे घोटाले सामने आए तो विपक्षी दलों के नेताओं ने भी कोई आवाज नहीं उठाई। इसे हमेशा इसी परिप्रेक्ष्य में देखा गया कि राजनीतिक भले अलग-अलग दल के हों लेकिन कई मामलों में उनके काम साझा स्तर पर होते हैं। डेढ़ दशक में कहीं भी कभी भी ऐसा बड़ा आंदोलन नहीं देखा गया या किसी मामले को उठाते हुए नहीं देखा गया। हर दौर में मित्र विपक्ष के सबसे अच्छे उदाहरण उत्तराखंड में ही देखे गए। इस पूरे मंजर ने नौकरशाहों अधिकारियों को अकूत पैसा दिलाया।

सत्ता में बदलाव या स्थितियों का फर्क कहिए, यही नौकरशाही और प्रशासनिक अधिकारी जब फंसते नजर आ रहे हैं तो यह सवाल सबके मन में कौंध रहा है कि यह सब अचानक कैसे। यह सब एकाएक कैसे। इस राज्य में यह नजर नहीं आता था कि किसी मामले में छह पीसीएस अधिकारी नप जाएं। एनएच-74 में हुए 150 करोड़ रुपये से भी अधिक के घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है। इधर, जिला प्रशासन ने अपने स्तर पर पटवारी से लेकर नायब तहसीलदार जैसे 24 कर्मचारियों को चिन्हित किया है। शासन के स्तर पर इस मामले में लिप्त छह पीसीएस अधिकारियों को पहले ही निलंबित किया जा चुका है। जांच में पाया गया है कि इन कर्मचारियों ने जमीनों के मुआवजे में अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए जमकर पैसा कमाया। जमीन के मामले में कृषि भूमि बाजार भूमि का जमकर घालमेल किया गया। जिस तरह जसपुर, बाजपुर, गदरपुर में इस घोटाले को अंजाम दिया गया उसमें विभागीय स्तर पर इन कर्मचारियों के खिलाफ विभाग कार्रवाई करने की ठान चुका था। यह एक बड़ा घोटाला है। नई सरकार के आते ही शुरुआती फैसलों में इसे भी देखा गया। लेकिन गतिविधियां प्रशासकीय स्तर पर ही तेजी से संचालित हुई हैं।

जसपुर से खटीमा के बीच एनएच चौड़ीकरण करीब छह पर्ष पहले शुरू हुआ था। अधिकारियों को भूमि मुआवजे के तौर पर यह धन अर्जित करने की काफी संभावना दिखी। उन्होंने विश्वासपात्र कर्मचारियों के साथ मिलकर अपनी युक्ति निकाली और किसानों की जमीन को बदले रूप में दिखाकर बड़ा पैसा हथिया लिया। इसी तरह एनएच-87 का मामला भी सामने आया है।

लगे हाथ परिवहन निगम में भी डीजल घोटाले में तीन अधिकारियों पर गाज गिरी है। डीजल खत्म होने के कारण आए दिन परिवहन निगम की बसें रास्तों में खड़ी हो जाया करती थीं। बड़े अफसरों ने जब तहकीकात की तो डीजल का घपला सामने आया। पता चला कि निगम की हरिद्वार स्थित कार्यशाला में बडेÞ पैमाने पर धांधली की जा रही थी। जीएम स्तर पर समीक्षा में पाया गया कि फरवरी में ही 1,414 लीटर डीजल की गड़बड़ी थी। विभागीय स्तर पर जांच करके दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।

अवैध खनन को रोकने के लिए एक छापामारी के दौरान अवैध उपखनिज पर रामनगर में एक करोड़ 20 लाख का जुर्माना भी चर्चा में आया है। खनन विभाग और प्रशासन की तरफ से संयुक्त रूप से इस कार्रवाई को भी इसी तरह देखा जा रहा है। जबकि, इससे पूर्व तक तमाम शिकायतों को विभागीय स्तर पर नजरअंदाज किया जाता था। कभी कभार दिखाने के लिए छापे मारे जाते थे लेकिन छामामारी में बड़े स्तर पर जुर्माना लगने के बाद अवैध खनन वाले थोड़ा सहमे हुए हैं। जैसे ही राज्य में खनन बंद करने का कोर्ट का आदेश हुआ अवैध खनन को लेकर मोर्चा खोल दिया गया। लालकुंआ में छह क्रेशरों पर 3 करोड़ 12 लाख रुपयों का जुर्माना लगाया गया।

अब खनन प्रकरण के मकड़जाल की जांच पर हमेशा से चुप्पी साधे रहने वाला वन विभाग अपने स्तर पर गोपनीय ढंग से जांच करा रहा है। इससे कई परतें खुलने की संभावना है। इसी तरह एससी एसटी छात्र छात्राओं को दिए जाने वाले लैपटाप को बाजार मूल्य से अधिक दिखाने पर आईटी सचिव दीपक गैरोला को भी कार्यमुक्त किया जा चुका है। इस बीच शिक्षा विभाग में फर्जी डिग्री के बल पर शासकीय और अशासकीय स्कूलों में टीचरों की नियुक्ति का मामला सामने आया है। शैक्षणिक दस्तावेजों के आधार पर फिलहाल 79 शिक्षकों को पकड़ा गया है। जानकारों के मुताबिक जांच जारी है और इन फर्जी प्रमाणपत्र से सरकारी नौकरी पाने वालों की संख्या पांच हजार से अधिक होने की संभावना है।

इसी प्रकार ऊर्जा विभाग के तहत पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन लिमिटेड ‘पिटकुल’ में घपले दर घपले के आरोप लगते रहे। आरटीआई कार्यकर्ताओं ने कई बार दस्तावेजों के साथ शासन से गुहार भी लगाई, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। सत्ता परिवर्तन के साथ पिटकुल प्रबंधन भी सक्रिय हुआ और मुख्य अभियंता सहित चार अन्य अधिकारियों पर निलंबन की गाज गिर गई। पिटकुल ने एक कंपनी से नियमों को ताक पर रख कर करोड़ों की रकम के ट्रांसफार्मर खरीदे थे। कैग की आडिट रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ था। कैग ने अपनी रिपोर्ट में माना कि पूरी प्रक्रिया में पिटकुल की तरफ से लापरवाही बरती गई। आरटीआई कार्यकर्ता सुनील गुप्ता ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से भी कई बार ऊर्जा विभाग में हो रहे घोटालों की शिकायत की गई, लेकिन उन्होंने उल्टे उन अधिकारियों पर कृपा बरसाई जिन पर आरोप लगे थे।

अधिकारियों की सक्रियता पर भाजपा के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता बृजभूषण गैरोला ने कहा कि सरकार किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार नहीं सहेगी। उन्होंने पूर्व की कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचारियों को प्रश्रय देने का आरोप लगाते हुए कहा कि अब ऐसे लोगों के दिन लद गए जो सेंटिंग-गेटिंग के दम पर अपनी कुर्सी बचाए रखते थे। गैरोला ने दावा किया कि भाजपा सरकार में ईमानदारी को दुलार तो बेईमानी को दुत्कार मिलेगी। हालांकि कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप भट्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपियों को गले लगाकर मंत्री बनाने वाली भाजपा की असलियत कुछ ही दिनों में जनता के सामने होगी। राजनीतिक दल कुछ भी कहें। राजिन्दर विजन बॉबी ने कहा, फिलहाल राज्य की तस्वीर सुहानी लगती है। देखना होगा कि शासन-प्रशासन की यह सक्रियता हकीकत में जारी रहती है या फिर नई सरकार की नजरों में छवि निखारने की कवायद तक ही यह अधिकारियों की सक्रियता सीमित रह जाती है।

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