‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ घोष से गूंजी श्रावस्ती

राकेश चंद्र श्रीवास्तव/ सचिन श्रीवास्तव

श्रीलंका, जापान, तिब्बत, म्यांमार, कोरिया, थाईलैंड, भूटान, चीन आदि देशों के बौद्ध अनुयायियों का जमावड़ा भगवान बुद्ध की तपोस्थली श्रावस्ती में लगा हुआ है। हर तरफ ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ की गूंज। भूटान की राजमाता दोरजी वांगचुक अपनी बेटी सोनम वांगचुक व तीन वर्ष के नाती ट्रुएक वांगचुक सहित 14 सदस्यीय दल के साथ एक जनवरी को नालंदा विश्वविद्यालय (बिहार) और 4 जनवरी 17 को श्रावस्ती के भूटान मंदिर व जेतवन बिहार में पूजन किया। पूजन अर्चन के बाद उन्होंने पुनर्जन्म की बात करने वाले अपने नाती ट्रुएक वांगचुक को भगवान बुद्ध के प्रवास काल के स्थानों को दिखाकर नमन कराया। भूटान की महारानी ने अपने परिवार के साथ श्रावस्ती के गंधकुटी पर पूजन कर विश्वशांति के लिए प्रार्थना की। आनंदबोधि वृक्ष पर जाकर शीश नवाया। भगवान बुद्ध के श्रावस्ती में बिताए गए 25 वर्षाचातुर्मास के स्थानों के बारे में जानकार भावविभोर हुर्इं। महारानी वांगचुक ने आनदबोधि वृक्ष के पास दो दर्जन से अधिक बौद्ध भिक्षुओं को दान देकर शांति व अहिंसा का संदेश दिया। जेतवन बिहार के भ्रमण के बाद भूटान की महारानी ने महेट क्षेत्र में प्राचीन श्रावस्ती नगर के अवशेष पक्की कुटी के नाम से जानी जा रही अंगुलिमाल गुफा व कच्ची कुटी के नाम से मशहूर राजा सुदत्त के महल को देखा। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं से यहां का इतिहास जाना।

श्रावस्ती महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित होने के कारण दुनियाभर के बौद्ध तीर्थ यात्रियों की श्रद्धा का केंद्र है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 172 किलोमीटर उत्तर में श्रावस्ती जनपद है। बहराइच जनपद मुख्यालय से 48 किलोमीटर दूर 118 एकड़ क्षेत्र में फैला यह उजड़ा हुआ नगर अपने महिमामय अतीत की कहानी संजोए है। श्रावस्ती को स्थानीय लोग सहेट महेट के नाम से भी जानते हैं। इन्ही दो स्थानों में श्रावस्ती के भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। इस प्राचीन नगर के चारों ओर मिट्टी की दीवार है, जिसके ऊपरी भाग में र्इंटों की चुनाई हुई है। कई द्वार भी हैं। फाटक में प्रवेश करते ही अनेक बौद्ध, जैन, हिंदू भवनों-स्मारकों के भग्नावशेष देखने को मिलते हैं। श्रावस्ती हिंदू, बौद्ध व जैन धर्म का संगम रहा है। यह भगवान राम के पुत्र लव की राजधानी, जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की जन्मस्थली व भगवान बुद्ध की कर्मस्थली है।

फाह्यान एवं ह्वेनसांग दोनों चीनी यात्री श्रावस्ती में आकर लिखते हैं कि विशाखा नाम की एक संत स्वभाव वाली महिला जो बुद्ध भगवान की शिष्या बन गई थी, ने जेतबन के पूर्व में बुद्ध के निवास के लिए 26 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की लागत से एक विशाल बिहार बनवाया था, जिसका नाम पूर्वाराम था। एक क्रूर व्यक्ति आदमियों की उंगलियों को काटकर उनकी माला बना कर पहनता था। भगवान बुद्ध के संपर्क में आकर उसके क्रूर हृदय में परिवर्तन आया और बाद में वह अंगुलिमाल डाकू से बौद्ध अनुयायी बन गया। आज भी उसकी गुफा के भग्नावशेष उसके अतीत की गाथा सुना रहे हैं। सम्राट अशोक अपनी धार्मिक यात्रा के समय श्रावस्ती आए थे। ह्वेनसांग के अनुसार अशोक सम्राट ने यहां 60 फुट ऊंचे दो स्तंभ जेतबन के पूर्वी द्वार पर निर्मित कराए। एक भाग में सम्राट ने एक स्तूप बुद्ध की अस्थियों को सुरक्षित रखने के लिए बनवाया था, जहां महात्मा बुद्ध टहलते और उपदेश दिया करते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्ष काल में आया था। उसने श्रावस्ती को पूर्ण ध्वस्त अवस्था में देखा किंतु बहुत कुछ बौद्धों व बड़ी संख्या में अन्य मतावलंबियों को निवास करते पाया। उसने यहां कई देव मंदिर भी देखे। चीनी यात्री ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि हर्ष के शासनकाल में श्रावस्ती में एक प्रशासकीय मंडप का मुख्यालय था जैसा कि हर्ष द्वारा मधुबन ताम्र पत्र में वर्णित है।

वर्तमान समय में यहां विदेशों के बौद्ध धर्मावलंबियों के भव्य मंदिर एवं मठ बने हैं। जहां देश विदेश के बौद्ध धर्म के अनुयायी आते जाते रहते हैं। भूटान की महारानी दोरजी वांगचुक के श्रावस्ती आगमन से कुछ महीने पहले थाईलैंड की राजकुमारी भी यहां आई थीं। यहां थाई का एक भव्य मंदिर और ध्यान केंद्र पूरी दुनिया को आकर्षित कर रहा है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *