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मौजूदा समय में राज्य के वैश्य नेताओं में सबसे बड़ा नाम है, समीर महासेठ. समीर मधुबनी से राजद विधायक हैं. उनके पिता पूर्व मंत्री स्वर्गीय राजकुमार महासेठ लंबे समय तक मधुबनी से विधायक रहे और उन्होंने वैश्य समाज की एकता के लिए जीवनपर्यंत प्रयास किए.

gaya-biharबिहार की राजनीति में जाति अति महत्वपूर्ण मानी जाती रही है. राजनीतिक दल भी लोकसभा, विधानसभा या अन्य चुनावों में अपने प्रत्याशियों का चयन क्षेत्र के जातीय आधार पर करते हैं. ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में निवास करने वाले वैश्य समाज की विभिन्न जातियों एवं उपजातियों की चुनावी राजनीति में अहम भूभिका रही है. वैश्यों के वोट हासिल कर राजनीतिक दल अपनी राजनीति तो चमका लेते हैं, लेकिन वैश्य समाज के लिए कुछ विशेष नहीं करते. अब वैश्य समाज में अपने महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ी है. वह राजनीति में आबादी और वोट बैंक के आधार पर सत्ता में हिस्सेदारी के लिए अपनी आवाज बुलंद करने  लगा है. ऐसे में, राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ गई है. राज्य में अब तक सभी बड़े राजनीतिक दल चुनाव के दौरान समाज को लॉलीपॉप दिखाकर वोट हासिल करते रहे हैं. वैश्य समाज अपनी इस उपेक्षा के प्रति खासा नाराज है. समाज के विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान यह बात सामने उभर कर आई, जिनमें वक्ताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि पिछले चार दशकों में राज्य के वैश्यों यानी व्यापारियों को शोषण, अत्याचार और रंगदारी का सामना करना पड़ा. रंगदारी न देने पर उनका अपहरण हो जाता है और कभी-कभी तो उन्हें अपनी जान तक गंवानी पड़ती है.

राज्य में वैश्यों एवं विभिन्न राजनीतिक दलों में शामिल जातीय नेताओं-कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में सक्रिय पटना निवासी अखिलेश कुमार जायसवाल कहते हैं कि आजादी की लड़ाई से लेकर वर्तमान भारत के विकास में वैश्य समाज का बहुत बड़ा योगदान रहा है, लेकिन जब भी देश की राजनीति और सत्ता में भागीदारी की बात उठी, सभी राजनीतिक दलों ने वैश्यों को दरकिनार कर दिया. राज्य में वैश्य सबसे ज्यादा उपेक्षित हैं. उन्हें अपराधियों की मनमानी का सामना करना पड़ता है. लेकिन, अब वैश्य समाज जागरूक और संगठित हो रहा है. राजनीति और सत्ता में उचित भागीदारी के लिए हम पूरी मजबूती के साथ संघर्ष करने को तैयार हैं. अब समाज अपनी उपेक्षा बर्दाश्त नहीं करेगा. बकौल अखिलेश, विभिन्न जातियों में विभाजित वैश्य समाज अब संगठित हो रहा है. इससे न केवल समाज मजबूत होगा, बल्कि राजनीतिक दल वैश्यों को उचित मान-सम्मान देने के लिए बाध्य भी होंगे. गौरतलब है कि अखिलेश को भी रंगदारी के लिए सत्तारूढ़ दल के एक विधायक द्वारा धमकी मिल चुकी है. मामले को लेकर वह संबंधित पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करा चुके हैं, लेकिन आज तक आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.

मौजूदा समय में राज्य के वैश्य नेताओं में सबसे बड़ा नाम है, समीर महासेठ. समीर मधुबनी से राजद विधायक हैं. उनके पिता पूर्व मंत्री स्वर्गीय राजकुमार महासेठ लंबे समय तक मधुबनी से विधायक रहे और उन्होंने वैश्य समाज की एकता के लिए जीवनपर्यंत प्रयास किए. आज वैश्य समाज में जो जागरूकता देखने को मिलती है, उसमें महासेठ परिवार का खासा योगदान है. समीर भी वैश्य समाज को एकजुट करने और उसे उसकी अहमियत समझाने में लगे हैं, ताकि राजनीतिक दल वैश्य समाज की ताकत को नजरअंदाज न कर सकें. समीर महासेठ कहते हैं कि वैश्य समाज कांग्रेस का आधार वोट बैंक था, लेकिन साल 1990 के बाद समाज का झुकाव राजद की ओर हुआ, क्योंकि राजद ने शुरुआत में विधानसभा चुनाव में 14 वैश्य उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. बाद में उसने आठ और फिर सिर्फ छह टिकट ही वैश्यों को दिए. शुरू में तो वैश्यों के बीच राजद का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा, क्योंकि तब पार्टी में कर्पूरी फॉर्मूले के आधार पर टिकट का बंटवारा होता था. बकौल महासेठ, जब राजद में वैश्यों की उपेक्षा होने लगी, तो समाज भारतीय जनता पार्टी की ओर झुका. लेकिन, अब वैश्य समाज का भाजपा से भी मोहभंग हो रहा है. जीएसटी ने छोटे व्यापारियों को परेशान कर रखा है, व्यवसाय करना मुश्किल हो गया है. बड़े मॉल्स और रिटेल कारोबार में भी बड़ी कंपनियों को तरजीह दी जा रही है, जिससे छोटे व्यवसायी परेशान हैं.

समीर कहते हैं कि राजद के वरिष्ठ नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एवं महा-गठबंधन में शामिल अन्य सभी दलों को चाहिए कि वे वैश्य समाज की लड़ाई लड़ें. अगर ऐसा हुआ, तो समाज महा-गठबंधन की तरफ जाकर चुनाव में एनडीए को एक बड़ा झटका दे सकता है. फिलहाल तो वैश्य समाज एकजुटता के लिए प्रयासरत है. गौरतलब है कि राज्य के शहरी क्षेत्रों में वैश्य समाज महत्वपूर्ण भूमिका में है.  अगर यह एकजुट हो गया, तो आगामी चुनावों में अधिकतर लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्रों के नतीजे देखने लायक होंगे.