क्या मधेसियों को फिर दगा देंगे प्रचंड ?

माओवादी नेता रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड दूसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए हैं। इसके लिए उन्होंने न सिर्फ केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री पद से हटाने का दांव चला बल्कि अपनी सरकार की मजबूती के लिए मधेसी पार्टियों से भी समझौता करने की रणनीति अख्तियार की। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद नेपाल की राजनीति में दो सवाल मुख्य रूप से उठ रहे हैं। पहला यह कि वे कितने समय तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे क्योंकि उनकी पार्टी नेपाल एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी-केंद्र) के सिर्फ 80
सांसद हैं। साथ ही नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का जो दौर चल रहा है उससे वे किस तरह से पार पाएंगे।
दूसरा सवाल यह है कि अपनी सरकार को मजबूती देने के लिए उन्होंने मधेसियों से समझौता तो कर लिया है मगर क्या वे इस समझौते पर टिके रहेंगे। इस मामले में उनका इतिहास दागदार रहा है। सशस्त्र विद्रोह के दौरान प्रचंड ने मधेसियों को न्यायोचित अधिकार दिलाने की घोषणा की थी। इसी वादे पर तब मधेसियों ने उनकी पार्टी को वोट दिया था और वे प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे थे। मगर सत्ता में पहुंचने के बाद उनका रुख बदल गया। यही नहीं नए संविधान में मधेसियों को दोयम दर्जे का नागरिक करार देने के बाद जब मधेसियों ने आंदोलन शुरू किया तो प्रचंड ने ही सबसे ज्यादा इस आंदोलन का विरोध किया। इस दौरान मधेसी और पहाड़ी का भेदभाव करने में वो सबसे ज्यादा आगे रहे। अब जबकि मधेसियों से समझौता कर वे प्रधानमंत्री बन गए हैं तो यह सवाल उठ रहा है कि क्या वे मधेसियों को फिर से दगा देंगे।
मधेसियों से हुए तीन सूत्री समझौते में संविधान में संशोधन करने सहित आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों को शहीद का दर्जा देने की मांग भी शामिल है। इसके अलावा घायलों का मुफ्त इलाज करने और प्रांतीय सीमा का फिर से रेखांकन करने की मांगें शामिल हैं। समझौते के अनुसार प्रचंड सरकार मधेसी फ्रंट की मांगों को पूरा करेगी।समझौते के बाद तीन मधेसी नेताओं- सोशल फोरम के उपेंद्र यादव, तराई मधेसी डेमोक्रेटिक पार्टी के सर्वेंद्र नाथ शुक्ला और सद्भावना पार्टी के लक्ष्मण लाल  ने प्रचंड की उम्मीदवारी का समर्थन किया।
601 सदस्यीय नेपाली संसद में प्रधानमंत्री पद के लिए हुए चुनाव में 573 वोट पड़े। इनमें से प्रचंड के पक्ष में 363 वोट पड़े। हालांकि सीपीएन माओवादी पार्टी के प्रेसीडेंट प्रचंड पीएम पद के अकेले उम्मीदवार थे, इसके बावजूद संसद में संविधान के मुताबिक वोटिंग हुई। चुनाव में जीत हासिल करने के बाद वह देश के 24 वें प्रधानमंत्री बन गए हैं। वो 2008 में भी नेपाल के पीएम रहे थे। प्रचंड के पीएम चुने जाने के बाद राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे नेपाल में स्थिरता की उम्मीद जताई जा रही है।
चुनाव से पहले प्रचंड ने कहा कि वह राष्ट्रीय सहमति की भावना के साथ आगे बढ़कर देश को आर्थिक विकास की ओर ले जाएंगे। प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम का प्रस्ताव नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा और माओवादी नेता कृष्णा बहादुर म्हारा ने किया। सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद यह चुनाव हुआ। ओली सरकार से माओवादियों ने समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद उन्होंने पिछले महीने इस्तीफा दिया। प्रचंड ने ओली सरकार पर पिछले समझौतों को लागू न करने का आरोप लगाया था।
पिछले साल सितंबर में नया संविधान लागू होने के बाद से ही नेपाल संकट से जूझ रहा है। इसे लेकर चीन और भारत ने चिंता जताई थी कि लंबे समय तक राजनीतिक संकट रहने से नेपाल अपराधियों और आतंकवादियों अड्डा बन सकता है।

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