निशा शर्मा।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नजीब अहमद को गुम हुए करीब दो महीने हो चुके हैं लेकिन उसका अब तक कोई पता नहीं लगा है। मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। परिवार इंसाफ की गुहार लगा रहा है और इस उम्मीद में बैठा है कि उसका बेटा एकदिन वापिस आ जाएगा। मां की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं, लेकिन इस उम्मीद में कभी पुलिस, कभी विश्वविद्यालय तो कभी कोर्ट के चक्कर लगा रही हैं कि कहीं ना कहीं से बेटे का कोई सुराग हाथ लगेगा और वह मिल जाएगा। जिसे वह अपने घर वापिस ले जाएंगी और कभी जेएनयू वापिस नहीं भेजेंगी।

अपनी बेटे से हुई बात का जिक्र कर फातिमा नफ़ीस बताती हैं कि वह उस दिन बहुत डरा हुआ था और वापिस अपने घर लौटना चाहता था इसलिए ही मैं उससे मिलने आ रही थी लेकिन ना ही वह लौट पाया और ना ही मुझे मिल पाया।

ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन की प्रदेश संयोजक रहिला परवीन बताती हैं कि 14 अक्तूबर के दिन नज़ीब की एबीवीपी के लड़को से लड़ाई हुई थी। नज़ीब ने एक लड़के को थप्पड़ मारा था, लेकिन उसके बाद उसने उस घटना पर माफ़ी मांग ली थी। उसके बाद एबीवीपी के 20-22 लड़के इक्ट्टठे किए गए और नज़ीब को मिलकर पीटा गया। उसके साथ गाली गलौज की गई। अगले दिन फिर नज़ीब गायब हो गया।

जेएनयू में एनएसयूआई के अध्यक्ष एजाज़ अली शाह कहते हैं कि 14 अक्बटूर को नज़ीब के साथ हाथापाई की गई। सिक्योरिटी गार्ड ने उसका मुंह पानी से साफ करवाया क्योंकि उसको चोट लगी थी। उसके बाद उसे सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल ने कहा कि रिपोर्ट दर्ज होगी तब इलाज होगा नज़ीब डर गया और उसने वहां डॉक्टर को नहीं दिखाया। सफदरजंग की सीसीटीवी फुटेज में भी उसे देखा गया है।

जेएनयू में जो जांच कमेटी बनाई गई उसने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि एबीपीवी के लड़कों ने उसे धर्म आधारित गालियां दी थी। घटना के अगले दिन उसकी मां आनंद विहार में थी, जब उनकी नज़ीब से बात हुई थी। जब नज़ीब की मां उसके कमरे पर पहुंची तो वहां सिर्फ उसका सामान था लेकिन नज़ीब नहीं था। उसके रुम पार्टनर ने उसकी मां को बताया कि वह कुछ देर पहले कमरे में ही था। लेकिन ढूंढने के बाद वह नहीं मिला तो फिर अंदेशा हुआ कि नज़ीब गायब हो गया है। उसके बाद नज़ीब की गुमशुदा होने की शिकायत दर्ज करवाई गई।

पुलिस ने भी मामले में कोई फुर्ती नहीं दिखाई। यहां तक कि नज़ीब को कहीं नहीं ढूंढा गया, जेएनयू कैंपस में भी उसकी तलाश नहीं की गई। पुलिस ने सिर्फ औपचारिकता निभाई, जैसे पुलिस को पता है कि नज़ीब कहां है या नज़ीब के साथ क्या हुआ है। और पुलिस सिर्फ इनाम की राशि को बढ़ा रही है जैसे कोई बोली लगी हुई हो। कोई ईनाम के लिए नज़ीब को ढूंढ देगा तो ठीक है वरना कोई बात नहीं। ऐसा कहीं होता है क्या कि पुलिस कोई जांच पड़ताल न करे।

राहिला कहती हैं कि मामले को दो महीने हो गए हैं। परिवार दर-ब-दर भटक रहा है। लेकिन न तो प्रशासन और न ही सरकाार मामले में कोई रुचि ले रही है। मामला हाईकोर्ट जरुर पहुंच गया है लेकिन दो महीने बाद भी रिजल्ट जीरो है।

वहीं जेएनयू में एबीवीपी के अध्यक्ष रहे आलोक सिंह इन बातों को नकारते हैं कि पुलिस या प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है। उनका कहना है कि पुलिस ने इनाम की राशि 10 लाख कर दी है ताकि जल्द से जल्द नज़ीब के बारे में जानकारी मिल सके। वहीं वह इस बात को भी खारिज करते हैं कि एबीवीपी के लड़कों ने नज़ीब पर हमला किया था। आलोक कहते हैं कि अगर नज़ीब पर हमला किया गया होता तो जेएनयू में वामपंथी लोग जो आज बोल रहे हैं, उस समय चुप रहते। नज़ीब पर हुए हमले की बात बेबुनियाद है।

नज़ीब ने एक कैंपेन करने वाले लड़के को तीन थप्पड़ मारे और थप्पड़ इस बात को लेकर मारे कि उसने कलावा (कलाई में पहना जाने वाला रक्षा कवच) क्यों पहन रखा है। तब तक दोंनो गुटों के लोग इक्ट्टठे हो गए लेकिन एबीवीपी के लड़कों और नज़ीब के बीच कोई लड़ाई नहीं हुई। उसी दिन रात 12 से 2 बजे के बीच मीटिंग हुई जिसमें नज़ीब पर फाइन किया गया और मामला वहीं खत्म हो गया और बाद में पता चला कि अगले दिन नज़ीब गायब हो गया।

गायब होने के बाद एक ऑटो ड्राइवर को पुलिस ने हिरासत में लिया था जिसने बताया था कि उसने नज़ीब को जामिया में छोड़ा था। जामिया के बाद नज़ीब कहां गया, किसी को नहीं पता। नज़ीब के गायब होने के बाद से मामले को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।