परमाणु क्षमता में चीन से कम नहीं हम

अभिषेक रंजन सिंह।

भारत डोकलाम से अपनी सेना हटा ले और चीन को वहां सड़क बनाने से नहीं रोके इसे लेकर चीन भारत पर चौतरफा दबाव बनाने में जुटा है। लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि उसकी सेना डोकलाम से नहीं हटेगी। चीन कभी अपने सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के धमकी भरे आलेख के जरिये तो कभी चीनी सैन्य अभ्यास के वीडियो फुटेज प्रसारित कर इस कोशिश में है कि भारत दबाव में आकर डोकलाम से अपनी सेना हटाने को बाध्य हो जाए। इसके अलावा इस मुद्दे पर वह कई देशों से वार्ता कर भी दबाव बनाने में लगा है। चीन ने भारत को चेताया है कि वह उसके धैर्य की परीक्षा न ले। मगर चीन यह भूल रहा है कि भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न देश है और उसकी स्थिति 1962 जैसी नहीं है। इस बात की तस्दीक डिजिटल जर्नल आफ्टर मिडनाइट के जुलाई-अगस्त अंक में प्रकाशित अमेरिका के दो शीर्ष वैज्ञानिकों के आलेख से भी होता है। अपने आलेख इंडियन न्यूक्लियर फोर्सेज 2017 में अमेरिकी वैज्ञानिक हेंस एम क्रिस्टेंसन और रॉबर्ट एस नॉरिस ने कहा कि भारत के पास इतना प्लूटोनियम जमा हो गया है जिससे वह लगभग 200 परमाणु हथियार आसानी से बना सकता है।

आलेख में यह भी कहा गया है कि अमूमन पाकिस्तान पर केंद्रित रहने वाली भारतीय परमाणु नीति अब चीन के मद्देनजर बनाई जा रही है। अमेरिकी वैज्ञानिकों का दावा है कि अगले दशक तक भारत अपने परमाणु कार्यक्रमों को और अधिक आधुनिक बनाने का लक्ष्य पूरा कर लेगा। चीन के मुकाबले भारत की परमाणु क्षमता और अमेरिकी वैज्ञानिकों के दावों पर रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रि.) जीडी बख्शी ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में बताते हैं, ‘भारत की स्थिति इतनी मजबूत हो चुकी है कि वह चीन का मजबूती के साथ मुकाबला कर सकता है। अगर भविष्य में परमाणु युद्ध जैसी स्थिति भी बनती है तो भारत चीन से पीछे नहीं है। भारत की परमाणु क्षमता इतनी विकसित हो गई है कि वह केरल और तमिलनाडु से भी चीन के किसी भी शहर को तबाह कर सकता है। डोकलाम के मुद्दे पर भारत को किसी भी सूरत में पीछे नहीं हटना चाहिए। चीन आदतन हमें डराने की कोशिश में है और ठंडा पसीना निकालने का प्रयास कर रहा है।’ उनके मुताबिक, ‘भारतीय सेना के लिहाज से नरेंद्र मोदी एक बेहतर प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं। पिछले तीन वर्षों के दौरान जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया, आॅस्ट्रेलिया और मंगोलियों से हमारे संबंधों में काफी गर्माहट आई है। भारत को घेरने के लिए चीन नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान पर डोरे डाल रहा है। भारत भी उसी प्रकार से चीन को घेरने में जुटा है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत की आर्थिक और सैन्य क्षमता में लगातार वृद्धि हो रही है। बीते पंद्रह वर्षों में भारत की रक्षा तैयारियों में संतोषजनक प्रगति हुई है। जाहिर है भारतीय रक्षा तैयारियां अब चीन केंद्रित हो चुकी है।’

बख्शी कहते हैं, ‘भारतीय मिसाइलें युद्ध होने पर चीन को करारा जवाब देने में सक्षम हैं। अग्नि-दो मिसाइल पश्चिमी, मध्य और दक्षिण चीन को अपना निशाना बना सकती है। वहीं पूर्वोत्तर में तैनात अग्नि-चार मिसाइलें राजधानी बीजिंग और शंघाई समेत कई अन्य शहरों को निशाना बनाने में सक्षम है। भारत के पास लंबी दूरी तक मार करने के लिए अंतर्महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-पांच भी है जिसकी मारक क्षमता 5000 किलोमीटर है। बैलिस्टिक मिसाइल होने की वजह से अग्नि-5 रडार सिस्टम की आंखों में भी धूल झोंकने में सक्षम है। भारत की ब्रह्मोस मिसाइल को लेकर भी चीन खासा परेशान है। उसकी बेचैनी की बड़ी वजह है ब्रह्मोस का न्यूक्लियर वार हेड तकनीक से लैस होना। हालांकि चीन की डीएफ11, डीएफ15 और डीएफ 21 बैलिस्टिक मिसाइलें भारत के लिए बड़ी चुनौती है। अपनी इन मिसाइलों के जरिये चीन उत्तर भारत के कई शहरों को तबाह कर सकता है। इसके जवाब में भारत के पास अग्नि-पांच मिसाइल है जो बीजिंग तक लक्ष्य साध सकती है। भारत की मौजूदा परमाणु क्षमता से चीन भली प्रकार वाकिफ है। इसलिए वह भारत के साथ युद्ध करने की गलती नहीं करेगा।’

रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रि.) अफसर करीम ने ओपिनियन पोस्ट को बताया, ‘ लड़ाई की तुलना नहीं की जा सकती लेकिन मौजूदा समय में लड़ाई के तौर-तरीके काफी बदल गए हैं। चीन और भारत दोनों की सैन्य क्षमता मजबूत है। चीन भले ही भारत को जंग की धमकी दे रहा हो लेकिन वह इससे इनकार नहीं कर सकता कि भारत वाकई 1962 वाला कमजोर देश नहीं है।

चीन की सेना ने वियतनाम युद्ध के बाद एक भी लड़ाई नहीं लड़ी है जबकि भारतीय सेना पाकिस्तान सीमा पर लगभग रोजाना अघोषित युद्ध का सामना कर रही है। लड़ाईयां केवल हथियारों से नहीं जीती जाती बल्कि प्रभावी सैन्य नीति और बुलंद हौसला भी जंग जीतने के लिए जरूरी है। इस मामले में भारतीय सेना पीछे नहीं है।’

भारतीय नौसेना भी अपराजेय रहे इसके लिए मोदी सरकार ने कई बड़े फैसले लिए हैं। इस मुद्दे पर रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रि.) सैयद अता हसनैन ने ओपिनियन पोस्ट से कहा, ‘सरकार ने आधा दर्जन देशों के साथ ‘प्रोजेक्ट-75’ की शुरुआत की है। इसके तहत नौसेना को आने वाले दिनों में एडवांस स्टील्थ तकनीक से लैस पनडुब्बियां मिलेंगी। इसमें 70 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी। इस प्रोजेक्ट में फ्रांस, रूस, स्वीडन, जर्मनी, स्पेन और जापान हमारा साथ देंगे। यह प्रोजेक्ट ‘मदर आॅफ आॅल अंडरवॉटर डील्स’ के नाम से भी लोकप्रिय है। यह प्रोजेक्ट नौसेना के लिए कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत सरकार इसे जल्द से जल्द पूरा करना चाहती है। हाल के वर्षों में भारतीय नौसेना काफी मजबूत हुई है।’ डोकलाम मुद्दे पर भारत और चीन के बीच जारी तनाव के बारे में सैयद अता हसनैन का कहना है कि इसे लेकर युद्ध की स्थिति नहीं पैदा होगी। भारत और चीन दोनों परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। परमाणु हथियारों का इस्तेमाल सिर्फ एक-दूसरे को डराने के लिए होता है। युद्ध में इनका इस्तेमाल करने की गलती कोई नहीं करेगा। विश्व बिरादरी खासकर अमेरिका, रूस और ब्रिटेन भी नहीं चाहेगी कि भारत और चीन एक दूसरे के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करे।
उनके मुताबिक, ‘1962 में भारत की सैन्य क्षमता काफी कमजोर थी जिसका हमें अहसास भी नहीं था। लेकिन अब हमारी स्थिति काफी मजबूत हो गई है। सरकार ने सेना के लिए अलग से 40 हजार करोड़ रुपये का कोष बनाया है। इसके तहत सेना आपातकालीन स्थिति में बगैर कैबिनेट की मंजूरी के गोला-बारूद खरीद सकती है। सरकार का यह फैसला भारतीय सेना के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा।’ डोकलाम के मुद्दे पर भारत और चीन की तनातनी खत्म करने के लिए भूटान को अहम भूमिका निभानी पड़ेगी, ऐसा उनका मानना है। उनका कहना है, ‘डोकलाम क्षेत्र भूटान का है लेकिन उसने अभी तक कोई रोल प्ले नहीं किया है। इसलिए तनाव खत्म करने के लिए भूटान को चाहिए कि वह भारत और चीन दोनों से आग्रह करे कि वे अपनी सेना वहां से हटा ले। वहीं इस मुद्दे पर दक्षिणी चीन सागर किनारे बसे देशों की नजर भी भारत पर टिकीं हैं। अगर इस मुद्दे पर भारत पीछे हटता है तो इसका असर दक्षिणी चीन सागर के तटवर्ती देशों पर भी पड़ेगा जो भारत से उम्मीद लगाए बैठे हैं।’

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