नैनीताल। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने लगातार तीसरे दिन केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाए।केंद्र सरकार की दलीलों पर हाईकोर्ट ने बुधवार को तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि राष्ट्रपति से भी गलती हो सकती है। राष्ट्रपति का फैसला किसी राजा का फैसला नहीं है जो उसकी समीक्षा नहीं की जा सकती। हर मामले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।

हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की पीठ ने यह टिप्पणी एडिसनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील पर की कि राष्ट्रपति ने पूरे सोच समझ कर ही उत्तराखंड में धारा 356 लागू की है। इसकी समीक्षा नहीं की जा सकती। पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर राज्यपाल के माध्यम से दिल्ली से शासन करने का निर्णय संदेहास्पद लगता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि वह राष्ट्रपति के विवेक पर शक नहीं कर रहे हैं लेकिन सब कुछ कोर्ट की समीक्षा के दायरे में हैं।

पीठ की ओर से राज्यपाल के केंद्र को भेजे गए पत्रों को लेकर लगातार कई सवाल पूछे गए। राज्यपाल के केंद्र को भेजे गए पत्र में 18 मार्च के बाद हरक सिंह रावत को कैबिनेट से हटाने व एडवोकेट यूके उनियाल को बाहर करने के औचित्य पर भी पीठ ने सवाल किया।

इससे पहले मंगलवार को हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के वकीलों से पूछा था कि क्या आर्थिक भ्रष्टाचार प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का आधार बन सकता है? पीठ का कहना था कि अगर ऐसा होने लगा तो देश में बहुत कम सरकारें पांच साल चल पाएंगी। शायद यह आजादी के बाद पहला मौका होगा जब राज्यपाल और मुख्यमंत्री सदन में बहुमत सिद्ध करने की बात कर रहे हों लेकिन केंद्र स्तर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया हो। उत्तराखंड सरकार को बर्खास्त करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। इस याचिका पर सुनवाई चल रही है।