दिल्ली / इलाहाबाद ( सुनील वर्मा )। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति को अवैध करार दिया है और कहा है कि यादव के चयन को नियमों का उल्लंघन किया गया है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि नियुक्ति के दौरान यादव पर चल रहे आपराधिक मामलों को गुप्त रखा गया।
मंगलवार को इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस यशवंत वर्मा कर रहे थे। कल समय की कमी होने के कारण फैसला नहीं सुनाया जा सका था । आज कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सरकार को एक बड़ा झटका दिया है।
बता दें कि इससे पहले कोर्ट ने राज्य सरकार से यह पूछा था कि यादव में ऐसी क्या खास बात थी कि जिसके कारण उनकी नियुक्ति अध्यक्ष पद पर 82 लोगों के बायोडाटा को खारिज करके की गई थी।
कोर्ट के आदेशानुसार यूपीपीएससी अध्यक्ष, राज्य सरकार और यूपीपीएससी अथॉरिटी अपना जवाब पहले ही फाइल कर चुकी है। यादव की अध्यक्ष पद पर तैनाती को लेकर तीन जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने तीनों पीआईएल की सुनवाई एक साथ की है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव की नियुक्ति के खिलाफ प्रतियोगी परीक्षा दे रहे छात्र और समाज में खास मुकाम हासिल करने वाले लोगो पूर्व आईएएस, आईपीएस अधिकारी, पूर्व कुलपति ने भी नियुक्ति के खिलाफ याचिका दाखिल की थी । उनके खिलाफ पंजाब के पूर्व डीजीपी जूलियो एफ रिबेरो, भारत सरकार के पूर्व सचिव एसएटी रिजवी, पूर्व डीजीपी आईसी चतुर्वेदी, पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह, पूर्व प्रमुख सचिव एसएन शुक्ला, पूर्व कुलपति एचसी पांडेय, पूर्व एडीजीपी एसएन सिंह और अरुणेश कुमार मिश्र ने याचिका दाखिल की थी ।
दरअसल, नियुक्ति के बाद से ही अनिल यादव हमेशा किसी न किसी विवाद की वजह बनते आये हैं। उनके ऊपर फर्जी डिग्री के जरिए नौकरी हासिल करने का भी आरोप लगा । आरोप है कि स्थायी अध्यापक होने के बावजूद अनिल यादव ने विधि में स्नातक और पीएचडी की डिग्री कैसे हासिल की।
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति का कहना है अगर डिग्री का जांच की गयी तो सच्चाई सामने जरूर आयेगी। इससे पहले भी अनिल यादव की उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति किये जाने को लेकर विवाद हुआ था। अनिल यादव पर आपराधिक मुकदमे दर्ज होने की बात सामने आई थी। जिसे उन्होंने हलफनामा दाखिल कर यह स्वीकार किया था। लेकिन उनका ये भी कहना था कि अब वो सारे मुकदमे समाप्त हो चुके हैं।
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति का कहना है कि अनिल यादव ने 1997 से लेकर 2002 तक मैनपुरी में प्राचार्य रहते हुए आगरा विश्वविद्यालय से एलएलएम, डीएससी, पीएचडी (विधि) की डिग्री कैसे हासिल की। समिति के सचिव अवनीश पांडेय के अनुसार आयोग के अध्यक्ष इस तथ्य को भी सार्वजनिक नही किया कि उन्होंने हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा किस वर्ष में और किस श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस तथ्य को भी सामने नहीं रखा गया कि क्या वह कभी प्राचार्य पद से बर्खास्त किए गए।