आलोक पुराणिक

बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नौ विशिष्ट स्तंभों का जिक्र किया है, जिनके ऊपर उन्होंने अपने इस बजट के टिके होने की बात कही थी। ये नौ विशिष्ट स्तंभ इस प्रकार हैं। एक- कृषि और किसान कल्याण। किसानों की आय अगले पांच सालों में दोगुनी कर दी जाएगी। दो- ग्रामीण क्षेत्र, इसके तहत ग्रामीण रोजगार पर बल दिया जाएगा। तीन-सामाजिक क्षेत्र, स्वास्थ्य। चार- शिक्षा, कौशल, रोजगार सृजन। पांच- इन्फ्रास्ट्रकचर और निवेश। छह-वित्तीय क्षेत्र के सुधार, पारदर्शिता। सात-कारोबार करने में आसानी। आठ-राजकोषीय अनुशासन। नौ- कर संबंधी सुधार।
इन नौ स्तंभों में सबसे पहले के दो विषय खेती से ही जुड़े हैं। और इन विषयों पर बजट में काम होता दीखता है। खेती को दरअसल इस समय अर्थव्यवस्था की चिंता नंबर एक ही होना चाहिए, क्योंकि लगातार दो बार मानसून की कमजोरी ने देश के बड़े इलाकों में विकट स्थिति पैदा कर दी है।

बजट तैयार होने के बाद वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हलवा समारोह में वित्त मंत्री अरुण जेटली
बजट तैयार होने के बाद वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हलवा समारोह में वित्त मंत्री अरुण जेटली

देश के करीब आधे जिले सूखे से पीड़ित हैं। ऐसी सूरत में खेती की बात और उस पर काम बहुत जरूरी है। बजट बताता है कि कृषि और किसान कल्याण के लिए कुल आवंटन 35,984 करोड़ रुपये रखा गया है। प्रधानमंत्री सिंचाई योजना को मजबूत किया गया है। दालों की महंगाई से यह देश पिछले साल बहुत जूझा है। अरहर के भावों ने तो आम आदमी को बहुत ही परेशान किया है। दालों के लिए बजट ने इंतजाम किया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत दालों के लिए 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। बजट ने घोषणा की है कि एकीकृत कृषि मार्केटिंग ई-मंच इस साल 14 अप्रैल को लांच किया जायेगा। एकीकृत इलेक्ट्रानिक बाजार होने से कई किसानों की बहुत समस्याओं का निपटारा हो जाएगा।

खेती पर इस बजट ने जो ध्यान दिया है, वह पूरी अर्थव्यवस्था के संदर्भ में खासा महत्वपूर्ण है। खेती का इस मुल्क के सकल घरेलू उत्पाद में भले ही 17 प्रतिशत का योगदान है, पर उस पर पलनेवाली जनसंख्या की तादाद बहुत बड़ी है, मुल्क के करीब साठ प्रतिशत लोग कृषि पर ही निर्भर हैं। और तमाम कंपनियों की बिक्री का सीधा ताल्लुक भी खेती किसानी की हालत से है। हाल के आंकड़े बताते हैं कि अगर खेती की हालत ठीक ना हो, तो मोटरसाइकिल से लेकर बिस्कुट तक की सेल गिर जाती है। शेयर बाजार की गिरावट के पीछे खेती किसानी की दुर्गति का भी हाथ होता है। तमाम कंपनियां गिरती सेल के चलते गिरते मुनाफे रिपोर्ट करती हैं। गिरते मुनाफे से शेयर बाजार सहमता है और गिर जाता है। यानी खेती की स्थिति सुधरेगी, तो सिर्फ खेती ही नहीं सुधरेगी, पूरी अर्थव्यवस्था की हालत ही सुधरेगी। ऐसी माना जा सकता है और सरकार ने यही माना है।

गांव-किसान-खेती

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क विकास योजना के लिए 19000 करोड रुपये रखे गये हैं। दो साल पहले के इसके आवंटन के मुकाबले इस आवंटन में करीब सौ फीसदी की बढ़ोतरी है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 2016-17 में 5,500 करोड़ रुपये रखे गये हैं। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओं को 2.87 लाख करोड़ रुपये की राशि बतौर सहायता अनुदान दी जाएगी। दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और एकीकृत विद्युत विकास स्कीमों हेतु 8,500 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है।

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कुछ दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही थी, वह यह कि तमाम राज्यों में लगातार तीन बार वही राजनीतिक दल चुनकर आ पाये हैं, जिन्होने अपने राज्यों में विकास की दर तेज की है। अच्छी खेती सिर्फ अच्छी राजनीति ही नहीं है, अच्छा अर्थशास्त्र भी है। खेती-किसानी पर निर्भर जनसंख्या की तादाद इस मुल्क की कुल आबादी की साठ प्रतिशत से ज्यादा है। खेती सकल घरेलू उत्पाद में भले ही सिर्फ 17 प्रतिशत का योगदान करती हो, पर खेती पर निर्भर आबादी राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण योगदान करती है। उसके वोटों से सरकारें बनती हैं, बिगड़ती हैं। कई राज्यों में चुनाव सामने हैं। खेती के आर्थिक महत्व के साथ साथ खेती का राजनीतिक महत्व समझने में किसी भी समझदार राजनेता को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

दो मानसूनों की विफलता के बाद खेती को बहुत मजबूत मदद की दरकार थी। वह इस बजट ने की है। मनरेगा के लिए 38,500 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है। मनरेगा को कांग्रेस की विफलता का स्मारक बता रहे पीएम मोदी के साथ-साथ कई कारोबारियों को भी समझ में आया कि मनरेगा ने ग्रामीण भारत में क्रय शक्ति फूंकी थी। वह क्रय शक्ति प्रकारांतर से वापस कई कंपनियों के पास आयी थी, बिक्री की शक्ल में। मनरेगा की मजबूती सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती नहीं है, वह कारपोरेट की सेल और मुनाफे की मजबूती भी है। खेती-किसानी सुधरेगी, तो ट्रैक्टरों की बिक्री भी सुधरेगी, जो अभी नीचे की ओर जा रही है।

छोटे उद्योगों के लिए

इस अर्थ में देखें, तो यह बजट बड़े उद्योगों के लिए सीधे तौर पर कुछ करता हुआ नहीं दीखता है। छोटे कारोबारियों के लिए बनाया गया मुद्रा बैंक बहुत कामयाबी के साथ काम करता दीखता है। 2015-16 में करीब 1,00,000 करोड़ रुपये की रकम इसके जरिये दी गयी, 2016-17 के दौरान इसके जरिये 1,80,000 करोड़ रुपये दिये जाने के प्रावधान है। अर्थव्यवस्था सात प्रतिशत के आसपास की रफ्तार से विकसित होने का अंदाज है, पर छोटे कारोबारियों को दिये जानेवाले कर्ज में 80 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अंदाज बताता है कि बड़े कारोबारों में भले ही मंदी का सीन हो, लघु उद्यमों की स्थिति उतनी खराब नहीं है।

अनुशासन बनाते हुए

बजट के ठीक पहले यह डिबेट चल रही थी कि मंदी के इस माहौल में वित्तीय अनुशासन को ताक पर रखकर कुछ ज्यादा खर्च कर लिया जाए। राजकोषीय घाटे को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को तेजी देने की कोशिश की जाए। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन बराबर अनुशासन बनाये रखने के पक्ष में थे। वह लगातार तर्क देते रहे थे कि वित्तीय अनुशासन बनाये रखने से ही अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर चल पाती है। ब्राजील जैसे देश ने राजकोषीय अनुशासनहीनता की, तो उसका परिणाम वह झेल रहा है। दूसरी तरफ कई अर्थशास्त्री और खासकर भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रहमण्यम ऐसे तर्क दे रहे थे कि मंदी के इस माहौल में थोड़ी वित्तीय उदारता बरतने में हर्ज नहीं है। सरकार थोड़ा खुलकर खर्च कर ले, अनुशासन बाद में देखा जाएगा।

पर सरकार ने वित्तीय अनुशासन बनाये रखा और साफ किया कि 2016-17 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगा। यह काम आसान नहीं है, क्योंकि बजट में पेश आंकड़े बताते हैं कि बावजूद 7.5 प्रतिशत के आसपास के विकास के कई मदों में निराशा ही हाथ लगी है।

इनकम में तेजी नहीं

बजट में पेश आंकड़ों के मुताबिक 2015-16 में सरकार को कारपोरेट टैक्स के जरिये 4,70,628 करोड़ रुपये वसूलने की उम्मीद थी, इतनी रकम आने की उम्मीद नहीं है। उम्मीद है कि इस मद में 3.7 प्रतिशत कम रकम हासिल होगी। पर सरकार ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है, 2016-17 में इस मद से 4,93,923 करोड़ रुपये उगाहने की योजना है।

यही हाल इनकम टैक्स का है। इनकम टैक्स के माध्यम से सरकार 2015-16 में 2,99,051 करोड़ रुपये ही वसूल पायेगी। जबकि उम्मीद थी कि सरकार इस मद में 3,27,367 करोड़ रुपये वसूलेगी। इनकम टैक्स में तय आंकड़े से करीब नौ प्रतिशत कम ही रकम वसूली जाएगी। फिर भी सरकार ने 2016-17 में इनकम टैक्स का आंकड़ा 3,53,174 करोड़ रुपये का रखा है यानी 2016-17 में इनकम टैक्स से करीब 18 प्रतिशत ज्यादा रकम की वसूली की उम्मीद है, उस रकम के मुकाबले, जो 2015-16 में इनकम टैक्स से वसूली गयी है।

इनकम टैक्स दाता को मोटे तौर पर किसी राहत की उम्मीद नहीं है। अर्थव्यवस्था की विकास दर सात-साढ़े सात प्रतिशत है। पर इनकम टैक्स में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, यह आशावादिता है। वित्तमंत्री विकास की उम्मीद रख रहे हैं। और साथ में यह उम्मीद भी रख रहे हैं कि नये इनकम टैक्स दाता आएंगे सिस्टम में। आर्थिक सर्वेक्षण ने एक बहुत ही गंभीर आंकड़ा पेश किया था, जिसके मुताबिक कुल कमानेवालों में सिर्फ पांच प्रतिशत के आसपास लोग ही इनकम टैक्स देते हैं। यानी तमाम नये लोगों को आयकर के दायरे में लाये जाने का स्कोप है। अगर सरकार उन तमाम लोगों को इनकम टैक्स के दायरे में ला पायी, तो सरकार के आशावाद को ठोस धरातल पर भी उतारा जा सकेगा।
कई उद्योगों से यह बजट पहले के मुकाबले ज्यादा कर वसूलेगा। महंगी कारें और महंगी होंगी। बजट में दस लाख रुपये से अधिक की लग्जरी कारों की खरीद पर और दो लाख रुपये अधिक की वस्तुओं और सेवाओं की नकद खरीद पर एक प्रतिशत की दर से स्रोत पर कर संग्रह करने का प्रस्ताव है। कारें बड़ी और छोटी महंगी हुई हैं। बजट ने पेट्रोल, एलपीजी, सीएनजी की छोटी कारों पर एक प्रतिशत, अलग-अलग क्षमताओं वाली डीजल कारों पर 2.5 प्रतिशत और अधिक इंजन क्षमता वाले वाहनों और एसयूवी पर 4 प्रतिशत उपकर लगाया है।

कारें महंगी हुई हैं, बल्कि बजट में सरकार ने साफ संदेश देने की कोशिश की है कि वह बहुत अमीरों से ज्यादा कर लेने में हिचकेगी नहीं। शेयर बाजार ने इसका स्वागत नहीं किया है। मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक 152.30 बिंदु गिरकर बंद हुआ। यानी शेयर बाजार ने साफ किया कि कारपोरेट सेक्टर और निवेशकों ने इस बजट को पसंद नहीं किया है।

पिकेटी और सूट-बूट विमर्श

कुछ समय पहले भारत में एक फ्रेंच अर्थशास्त्री थामस पिकेटी आये थे। थामस पिकेटी ने कुछ समय पहले एक सुपर हिट किताब लिखी है- केपिटल इन ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी। इसमें उन्होंने विस्तार से बताया था कि किस तरह से पहले से अमीर लोग लगातार तेजी से अमीर होते जा रहे हैं। और आर्थिक पायदान के नीचे की सीढ़ियों पर खड़े लोग संपन्न नहीं हो पा रहे हैं। पिकेटी के सुझाव के अनुसार अमीरों पर बहुत ज्यादा कर लगाया जाना चाहिए। अपने इन विचारों के चलते पिकेटी को आधुनिक मार्क्स कहा जाता है। पिकेटी ने भारत में असमानता की ओर इशारा किया था। आर्थिक सर्वेक्षण ने भी साफ किया कि असमानता के मामले में भारत और अमेरिका लगभग एक ही स्तर पर हैं।

असमानता कम करने का एक जरिया यह है कि अमीरों के उपभोग के आइटमों को महंगा किया जाये। इस बार यही किया गया है। छोटे कारोबारियों, छोटा घर बनानेवालों को तो बजट राहत दे देता है। पर ज्यादा कमाई करनेवालों के प्रति बजट उदार नहीं है। बजट ने एक करोड़ रुपये से अधिक की आयवाले व्यक्तियों पर सरचार्ज 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया है। हजार रुपये से ज्यादा वाले ब्रांडेड कपड़ों पर उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया है। दस लाख रुपये से अधिक लाभांश पानेवाले व्यक्तियों को दस प्रतिशत का अतिरिक्त टैक्स देना पड़ेगा। ये सब कदम इस बात के सुनिश्चितीकरण के लिए लिये लगते हैं कि मोदी सरकार को सूटबूट की सरकार ना कहा जाए।

बैंकों के लिए कम

बजट ने सरकारी बैंकों की पूंजी में 25,000 करोड़ रुपये डालने की घोषणा की है। यह रकम कतई नाकाफी है।मोटे तौर पर यूं समझा जा सकता है कि अकेले एक उद्योगपति विजय मल्लाया ने करीब 8000 करोड़ की पूंजी बैंकों की डुबो दी है। 25000 करोड़ रुपये में सारे सरकारी बैंकों का भला नहीं हो पायेगा। खास तौर पर छोटे सरकारी बैंकों के मामले में तो रकम बढ़ानी होगी, बड़े सरकारी बैंक तो फिर भी कहीं से संसाधनों की व्यवस्था कर लेंगे। पर छोटे बैंकों के लिए दिक्कत होगी।

महंगी हर सेवा

सिर्फ इनकम टैक्स से नहीं, हर सेवा को महंगा करके भी सरकार कमाने की सोच रही है। अब तक तमाम सेवाओं पर सेवाकर 14.5 प्रतिशत था, यह अब 15 प्रतिशत हो जायेगा। गुड्स एंड सर्विस टैक्स के लागू होने के बाद यह और बढ़ेगा और बढ़कर करीब 18 प्रतिशत तक पहुंचेगा। तो तमाम उपभोक्ताओं को लगातार बढ़ते सर्विस टैक्स के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहना चाहिए। एक उपभोक्ता की जेब से पैसा ज्यादा ही निकलेगा पहले के मुकाबले। इसका आशय यह हुआ कि ब्यूटी पार्लर, कोचिंग, अच्छे रेस्त्रां में खाने-पीने से लेकर तमाम सेवाएं महंगी हो जाएंगी। कुल मिलाकर हर आम आदमी की जेब से हर सेवा के लिए ज्यादा रकम निकलेगी। पर इस सबके बावजूद देश की खेती-किसानी की बेहतरी का मार्ग खुल जाए, जैसा बजट प्लान कर रहा है, तो पूरी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा ही होगा। कुल मिलाकर फार्महाऊस से खेती की ओर ले जाते इस बजट का स्वागत ही किया जाना चाहिए।