ओपिनियन पोस्‍ट।

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच वामपंथी विचारकों को 5 सितंबर तक नजरबंद रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा- ‘असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्ब है,  इसकी इजाजत नहीं दी तो प्रेशर कुकर फट सकता है।’ शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार और अन्य पक्षकारों से 5 सितंबर तक जवाब मांगा है। पुणे पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर 29 अगस्‍त को सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया।

बता दें कि 1 जनवरी 1818 को भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में पेशवा बाजीराव द्वितीय पर अंग्रेजों को जीत मिली थी। इसमें दलित भी शामिल थे। बाद में अंग्रेजों ने कोरेगांव में अपनी जीत की याद में जयस्तंभ का निर्माण कराया। आगे चल कर यह दलितों का प्रतीक बन गया। लड़ाई की 200वीं सालगिरह के मौके पर दलित संगठनों ने कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसी दौरान हिंसा में एक युवक की मौत हो गई और 50 गाड़ियां फूंकी गई थीं।

कवि व माओवादी विचारक वरवर राव,  वकील सुधा भारद्वाज और कार्यकर्ताओं अरुण फरेरा,  गौतम नवलखा व वरनॉन गोन्सालवेज़ को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है, जिसकी चौतरफा आलोचना हो रही है ।

सवाल यह है कि यूएपीए कानून क्‍यों विवादास्‍पद है ? इस कानून का एक हिस्सा यह है कि जिस भी संगठन को सरकार ‘गैरकानूनी संगठन, आतंकवादी गुट या आतंकवादी संगठन’  मानती है,  उसके सदस्यों को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है।

अलग-अलग शहरों में पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं को उनके घरों में मंगलवार शाम को तलाशी लिए जाने के बाद गिरफ्तार किए जाने को लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं कि उन्हें पकड़ने के लिए एक ऐसे आतंकवाद-रोधी कानून का सहारा लिया गया है, जिसमें गिरफ्तारी के लिए किसी वारंट की ज़रूरत नहीं होती।

याचिकाकर्ता के वकील राजीव धवन ने कहा कि गिरफ्तारियां अवैध और मनमाने तरीके से की गईं। इसके विरोध में इतिहासकार रोमिला थापर और चार आरोपियों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। इतिहासकार रोमिला थापर और मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रभात पटनायक,  सतीश देशपांडे और माया डार्नेल गिरफ्तार किए गए पांचों कार्यकर्ताओं के समर्थन में आ गए हैं।

यूएपीए को वर्ष 1967 में ‘भारत की अखंडता तथा संप्रभुता की रक्षा’ के उद्देश्य से पेश किया गया था और इसके तहत किसी शख्स पर ‘आतंकवादी अथवा गैरकानूनी गतिविधियों’ में लिप्तता का संदेह होने पर किसी वारंट के बिना भी उसकी तलाशी ली जा सकती है या गिरफ्तारी की जा सकती है।

पांच में से तीन की पुणे कोर्ट में पेशी

नक्सलियों से रिश्ते रखने के आरोप में गिरफ्तारी के बाद पुलिस मंगलवार रात ही वारवरा राव,  वेरनन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को पुणे ले गई। बुधवार को इन्हें कड़ी सुरक्षा में जिला अदालत में पेश किया गया। उधर,  दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर दो अन्य आरोपी गौतम नवलखा और वकील सुधा भारद्वाज को मंगलवार रात से ही नजरबंद रखा गया है। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पांचों आरोपियों को नजरबंद रखा जाएगा। हाईकोर्ट ने पूछा- पुलिस ने गिरफ्तारी का मेमो क्यों नहीं दिया।