नई दिल्ली। तुर्की में अंसतुष्ट सैनिकों के एक गुट की ओर से तख्तापलट की कोशिश के बीच एक खेल कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए 200 भारतीय छात्र वहां फंसे हुए हैं। इन छात्रों ने व्हाट्सएप के जरिये भारतीय टीवी चैनलों को भेजे एक वीडियो संदेश में कहा है कि वे 11 जुलाई से शुरू होकर 18 जुलाई को खत्म होने वाले वर्ल्ड स्कूल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए उत्तरी-पूर्वी प्रांत ट्राबजोन में हैं।
तमिलनाडु के छात्रों के एक समूह ने इस वीडियो संदेश में कहा है, ‘हमारे माता-पिता ने कुछ घंटे पहले हमें फोन कर बताया कि अंकारा में एक बम बलास्ट हुआ है, लेकिन हम ट्राबजोन में जहां हैं, वहां कोई दिक्कत नहीं है।’ हालांकि इस बात पर अनिश्चितता बनी हुई है कि क्या ये स्पोर्ट्स चैंपियनशिप जारी रहेगी। छात्रों का कहना है कि उन्हें अभी कोई सूचना नहीं मिली है। इन सभी भारतीय छात्रों को 18 जुलाई को अंकारा से वापस दिल्ली आने के लिए फ्लाइट पकड़नी थी। उन्होंने सरकार से मदद की मांग की है।
मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स के स्पोक्सपर्सन विकास स्वरूप ने ट्वीट किया है। उन्होंने तुर्की में रह रहे भारतीयों को हालात सुधरने तक घर से बाहर न निकलने की अपील की है। मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स ने इमरजेंसी नंबर जारी किए हैं। तुर्की में फंसे भारतीय और उनके परिवार इन पर कॉन्टैक्ट कर सकते हैं।
अंकारा: +905303142203, इस्तांबुल: +905305671095
क्यों हुई बगावत ?
राष्ट्रपति की एके पार्टी 2002 में सत्ता में आई। उसके बाद से राष्ट्रपति अपने पास ही सारे अधिकार रखने की कोशिश में हैं। उन्होंने फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन पर भी बंदिशें लगाई हैं। सत्ता में आते ही राष्ट्रपति ने ही कई सेना अधिकारियों पर मुकदमे चलाए। इससे सेना में असंतोष बढ़ा। एके पार्टी के नेतृत्व में देश का इस्लाम की तरफ झुकाव बढ़ा है। 2002 में तुर्की के मदरसों में तालीम लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या 65 हजार थी। अब 10 लाख हैं। राष्ट्रपति की प्रो-इस्लाम पॉलिसी का सेक्युलर नेता विरोध कर रहे हैं।
तुर्की में सेना पूरी तरह सेक्युलर डेमोक्रेसी की समर्थक रही है। वह सरकार की इस्लामी सोच का विरोध करती है। सेना तुर्की को यूरोपीय यूनियन का सदस्य बनाने का समर्थन करती है। सरकार ऐसा नहीं चाहती। अभी भी सेना इस बात को लेकर चिंता में है कि सरकार में इस्लामी सोच बढ़ती जा रही है।
तख्तापलट की कोशिश के पीछे मुस्लिम धर्मगुरु फेतुल्लाह गुलेन का नाम लिया जा रहा है। तुर्की सरकार के लॉयर रॉबर्ट एम्सटर्डम ने इस घटना से गुलेन का सीधा कनेक्शन बताया है। उस पर सेना के अफसरों को भड़काने का आरोप है। आरोप है कि उसने अमेरिका में ही रहकर तुर्की में तख्तापलट के लिए सेना के कुछ अफसरों को भड़काया।
गुलेन पहले तुर्की राष्ट्रपति रैचेप तैयाप एर्दोआन के करीबी हुआ करते थे। उन्हें 50 साल पहले इस्लाम को गलत तौर पर प्रचारित करने को लेकर नोटिस दिया गया था। बाद में तुर्की के खिलाफ काम करने का आरोप लगा। इसके बाद 90 के दशक से गुलेन अमेरिकी स्टेट पेन्सिलवेनिया में है। गुलेन और उसके सपोर्टर्स ने मिलकर हिजमेत नाम का एक मूवमेंट शुरू किया। उनका 100 से ज्यादा देशों में करीब 1000 स्कूलों का नेटवर्क है। वे इस्लाम के साथ-साथ, डेमोक्रेसी, एजुकेशन और साइंस का खूब सपोर्ट करते हैं। हालांकि कहा जाता है कि तुर्की में गुलेन के सिर्फ 10% सपोर्टर हैं।