आतंकवाद की गिरफ्त में दुनिया

अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली।

पिछले दिनों ब्रिटेन की राजधानी लंदन के वेस्टमिन्सटर और बरो मार्केट में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर राजधानी लंदन की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल पैदा हो गए हैं। निश्चित रूप से यह वैश्विक जगत के लिए चिंता की बात है कि आतंकवाद किस तेजी से अपना पैर पसार रहा है। पिछले नब्बे दिनों में लंदन में यह तीसरा बड़ा आतंकी हमला है। इस हमले में आठ लोग मारे गए, जबकि दर्जनों लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए।

वैसे तो आतंकवाद से पूरी दुनिया परेशान है, लेकिन यूरोपीय देशों में पिछले तीन-चार वर्षों से आतंकी हमलों में इजाफा हुआ है। आईएसआईएस के निशाने पर यूरोप के देश की अधिक हैं। लेकिन यह चिंता सिर्फ यूरोप की नहीं है, बल्कि इससे परेशान होने की जरूरत एशियाई देशों की भी है। भारत, रूस और चीन की अपनी चिंताएं हैं। पाकिस्तान भी आतंकवाद की मार झेल रहा है, लेकिन आतंकवाद के खात्मे को लेकर वह कभी गंभीर नहीं रहा। जिस पाकिस्तान में आए दिन मस्जिदों, दरगाहों, बाजारों और स्कूलों में बम धमाके होते हैं, वही पाकिस्तान इन दहशतगर्दों को खबक सिखाने के बजाय आतंकवादियों को अपने यहां संरक्षण दे रहा है।

यही वजह है कि दुनिया में पाकिस्तान की छवि एक आतंकी देश की बनती जा रही है। बावजूद इसके पाकिस्तान और वहां की सरकार अपनी इस नकारात्मक छवि से बाहर नहीं निकलना चाहती है। दुनिया के किसी भी देश में आतंकी हमले हो, लेकिन उसका कनेक्शन कहीं न कहीं पाकिस्तान से जुड़ा होता है। तमाम सबूतों के बाद भी पाकिस्तान इसे मानने को तैयार नहीं होता।

लंदन में हुए आतंकी हमला वाकई एक चिंता का विषय है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि आतंकी लंदन को बार-बार निशाना क्यों बना रहे हैं। क्या वहां की सुरक्षा-व्यवस्था को और अधिक पुख्ता बनाने की जरूरत है। हालांकि, इस हमले के बाद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री ने आतंकवाद से निपटने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।

सच यह है कि आइएस रोज नए उपाय तलाश कर उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। वे पश्चिमी देशों को इसलिए भी निशाना बनाते हैं ताकि पूरी दुनिया को संदेश दे सकें कि वे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देशों के आतंकवाद को समाप्त करने के इरादे से भयभीत नहीं हैं। जिस तरह अमेरिका ने इस्लाम को निशाने पर ले रखा है और ब्रिटेन उसके इस अभियान में साथ खड़ा है, उसमें स्वाभाविक रूप से ये देश आइएस का निशाना बन रहे हैं। आइएस ने इन देशों में बड़ी तादाद में अपने कार्यकर्ता तैयार कर लिए हैं। लंदन की घटनाओं में हमलावर बाहर के नहीं, वहीं के नागरिक थे। इसलिए अब आतंकवाद से लड़ने के उपायों पर इन देशों को नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।

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