राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में ‘वर्ल्ड थियेटर फोरम’ के आखिरी दिन इस बात पर सभी अभिनेता, कालाकार, निर्देशक और उपस्थित आलोचक सहमत दिखे कि नाट्य मंचन की सबसे खूबसूरत, शक्तिशाली और कम खर्चे में अधिक संप्रेषण की कला वाली विधा नुक्कड़ नाटक है। नुक्कड़ नाटक मामूली खर्चे में जिस तरह से समसामयिक मुद्दों को उठाकर समाज में अपना प्रभाव पैदा करता है, उसका मुकाबला अन्य विधाएं नहीं कर पाती हैं। जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय के प्रशिक्षक व कल्चर मैनेजर इना रोस ने कहा कि नुक्कड़ नाटक केवल संदेश देने के लिहाज से ही नहीं, बल्कि संसाधनों और सहजता के लिहाज से भी एक बेहतरीन माध्यम है। इसके लिए न तो किसी विशेष वेशभूषा की आवश्यकता पड़ती है, न ही स्टेज की जरूरत है और न ही रंगमंच के अन्य साजो-समान की।
19 वें भारत रंग महोत्सव के तहत तीन दिवसीय वर्ल्ड थियेटर फोरम के आखिरी दिन विषय ‘हूज थियेटर इज इन एनी-वे’ पर परिचर्चा में इना रोस के अलावा बंगाली अभिनेता और निर्देशक रुद्रप्रसाद सेन गुप्ता, प्रसिद्ध थियेटर अभिनेता एम.के.रैना आदि उपस्थित थे। एम.के. रैना ने कहा कि थयेटर उनके लिए हमेशा से एक सामुदायिक कला रहा है, जिसके जरिए स्थानीय समुदाय के लोगों और प्रशासन के साथ सीधा संवाद स्थापित किया जा सकता है। रुद्रसेन गुप्ता ने कहा कि कला के हर रूप में सबसे महंगा थियेटर ही है। थियेटर के लिए जगह, दर्शक, रंगमंच की सारी सामगी की जरूरत होता है। बिना इन बुनियादी संरचना के हम वह प्रभाव पैदा नहीं कर सकते। लेकिन हां, जैसा कि इना रोस ने कहा, इन सब में नुक्कड़ नाटक सबसे कम खर्च में संवाद और संप्रेषण का बेहतनरीन माध्यम है।
इनके अलावा रॉक्सी गजडेकर, कल्पना गजडेकर, अनूप रंजन पांडे, ब्राजील के कलाकार टटीना हेनरिक, आइसलैंड एकेडमी ऑफ आर्ट के डीन स्टेनन न्यूट्सडॉटियर ने भी दर्शकों और कलाकारों को संबोधित किया। आतंक से पीडि़त इस संसार में मरहम लगाने पर जोर देते हुए अनूप रंजन ने कहा कि आज की दुनिया में बंदूकें बढ़ती जा रही हैं और ढोल कम होते जा रहे हैं। हमें इसे उलटना है। बंदूकें कम हों और कला बढ़े, तभी संसार में शांति आ सकती हैं।
निर्देशक से मिलिए कार्यक्रम में ‘नावॉर’ के निर्देशक शैदुल हक ने आसाम की स्थानीय भाषा तीवा के इतिहास और संस्कृति से लोगों का परिचय कराया। सोमवार को भारत रंग महोत्सव में मोहित तकलकार का ‘मैं हूं यूसूफ और ये है मेरा भाई’, मंगला सनम का ‘तकाशा सांगडाच्या’ एवं वामन केंद्रे का ‘लागी लगन’ का मंचन किया गया।