वीरेन्द्र नाथ भट्ट।

मथुरा कांड ने समाजवादी पार्टी और उसकी सरकार को नये संकट में डाल दिया है। दो कारणों से इस संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है। पहला यह कि कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होना है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का सारा किया धरा पहले ही उनकी पार्टी की वजह से बिगड़ी कानून व्यवस्था की स्थिति से मटियामेट होता दिख रहा था। मथुरा कांड में अब उनका परिवार आरोपों के घेरे में है। प्रदेश में जो राजनीतिक हालात हैं उसमें भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पहले से ही आक्रामक हैं। विपक्ष का आक्रमण सरकार और पार्टी तक सीमित नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सीधे मुख्यमंत्री के चाचा और सरकार में नम्बर दो समझे जाने वाले शिवपाल यादव पर हमला बोला है। शिवपाल यादव इस समय समाजवादी पार्टी के संगठन की रीढ़ हैं। वे कमजोर हुए तो चुनाव नतीजे के बारे में अंदाजा लगाना कठिन नहीं होगा। मुख्यमंत्री पुलिस को दोषी ठहराकर पतली गली से निकलना चाहते हैं। पार्टी और परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव खामोश हैं। उनकी मुश्किल यह है कि सरकार का बचाव करें या परिवार का। दोनों का बचाव तो कठिन लग रहा है।
राज्यसभा चुनाव के पूर्व पार्टी में बेनी प्रसाद वर्मा और अमर सिंह की वापसी का जश्न मना रही समाजवादी पार्टी में चिंता है कि मथुरा के मामले से कैसे निपटा जाए। अब तक तो एक ही स्थायी आरोप था गुंडाराज। अब एक और जुड़ गया सपाई माने जमीन पर अवैध कब्जा करने वाला गिरोह। समाजवादी पार्टी की सरकार आज इस मामले से पिंड छुड़ा रही है। लेकिन उसका अतीत पीछा नहीं छोड़ रहा। जनवरी 2015 में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ए.के. जैन ने इंटेलिजेंस रिपोर्ट के आधार पर बलपूर्वक मथुरा में कब्जे को खाली करवाने की अनुमति अखिलेश सरकार से मांगी थी। सरकार ने तब उनको रोक दिया था।
समाजवादी पार्टी की सरकार के रामवृक्ष यादव से निकट संबंध का सबसे बड़ा सबूत है- लोकतंत्र सेनानी पेंशन। जवाहर बाग कांड के मास्टरमाइंड रामवृक्ष यादव की लोकतंत्र सेनानी पेंशन पर रोक लग सकती है। गाजीपुर के डीएम ने कहा है कि अगर कोई लोकतंत्र सेनानी किसी राजद्रोह में लिप्त पाया जाता है तो उसकी पेंशन रोके या निरस्त किए जाने का प्रावधान है। रामवृक्ष 1975 में इमरजेंसी के दौरान जेल जाने के कारण मीसा बन्दी कहलाने लगा था और समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद लोकतंत्र सेनानी की सम्मान राशि (पेंशन) पाने लगा।jawahar2

सरकार की बेचैनी
सरकार की बेचैनी इस बात से स्पष्ट है कि पांच दिन में तीन बार जांच बदली गई। दो जून को घटना हुई। पहले आगरा मंडल के आयुक्त प्रदीप भटनागर को जांच करने का आदेश दिया गया और चौबीस घंटे में जांच अलीगढ़ मंडल आयुक्त को सौंप दी गई। फिर सात जून को जांच आयोग की घोषणा की गई और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज मिर्जा इम्तियाज मुर्तजा को नियुक्त किया गया।
सरकार कुछ भी दावा करे लेकिन जांच को केवल सरकार द्वारा लीपा पोती का प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। नौकरी के दौरान नकल माफिया पर नकेल कसने के कारण सपा सरकार के निशाने पर रहे रिटायर्ड वरिष्ठ आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह ने सपा सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि आगरा के कमिश्नर प्रदीप भटनागर से जांच हटवाकर अलीगढ़ के कमिश्नर को क्यों दी गई। जांच में दोषियों को बचाने के लिए ईमानदार छवि के आईएएस अफसर से जांच लेकर दूसरे को दी गई। लिहाजा सीबीआई जांच के बगैर सच्चाई सामने नहीं आ सकती।
उधर आरटीआई कार्यकर्ताओं को आशंका है कि इस जांच का भी वही हाल होगा जो मुजफ्फरनगर दंगे की जांच का हुआ था। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज विष्णु सहाय ने मुजफ्फरनगर के लोकल इंटेलिजेंस यूनिट के दरोगा को साम्प्रदायिक दंगों के लिए जिम्मेदार बताया था। इस दंगे में सत्तर से अधिक लोग मारे गए थे और एक लाख से अधिक बेघरबार हुए थे।

दो दिन बनाम ढाई साल
यूं तो प्रशासन से दो दिन के लिए जवाहरबाग की जमीन पर धरने की अनुमति ली गई थी। मगर नीयत तो कब्जे की थी। रामवृक्ष को डर सताता था कि कभी कोई तेजतर्रार डीएम-एसएसपी आया तो उसके कब्जे की जमीन हाथ से निकल सकती है। इस पर रामवृक्ष की मांग पर रामगोपाल ने अपने करीबी डीएम और एसएसपी राकेश कुमार की तैनाती करा दी। ताकि कब्जा खाली कराने को लेकर कभी प्रशासन एक्शन न ले। यही वजह रही कि पिछले ढाई साल से रामवृक्ष व उसके गुर्गों ने धरने की आड़ में तीन सौ एकड़ जमीन पर कब्जा किए रखा। कभी प्रशासन की हिम्मत नहीं पड़ी कि उस कब्जे को खाली करा ले। जमीन पर ब्यूटी पार्लर से लेकर आटा चक्की तक तमाम व्यावसायिक गतिविधियों के प्रतिष्ठान भी खोल लिए गए। इससे साफ पता चलता है कि रामवृक्ष एंड कंपनी को वरदहस्त प्राप्त हो चुका था कि न तो शासन और न ही स्थानीय प्रशासन जमीन से कब्जा खाली कराएगा। लिहाजा स्थाई निर्माण कराया जाने लगा। यह तो गनीमत रही कि एक वकील ने हाईकोर्ट में रिट दाखिल की, तब जाकर प्रशासन को कब्जा खाली कराने के लिए टीम भेजनी पड़ी।04_06_2016-ramvriksha
मथुरा में यदुवंशियों के महाभारत की पूरे सूबे में चर्चा है कि मथुरा के इस खेल से सारे यदुवंशी जुड़े हैं। बाबा जयगुरुदेव हों या फिर पंकज, रामवृक्ष, रामगोपाल-शिवपाल। इनके बीच बाबा जयगुरुदेव के अरबों के साम्राज्य पर कब्जा जमाने के लिए पिछले चार साल से कभी शीतयुद्ध जैसा हाल रहा तो कभी दोनों नेताओं के चेलों के बीच आपसी लड़ाई खुलकर सामने आई।
मुजफ्फरनगर के दंगे के भूत का भय भी फिर से समाजवादी पार्टी सरकार को सता रहा है। मुस्लिम नेता कह रहे हैं कि दंगे से बेघरबार हुए बेसहारा मुसलमान सरकार की जमीन पर लगे राहत शिविरों में रह रहे थे। दिसंबर/ जनवरी की कड़ाके की ठण्ड में बुलडोजर चलाकर शिविरों को उजाड़ दिया गया। उधर मथुरा में सरकार दो साल तक न केवल खामोश रही बल्कि अवैध कब्जे को मजबूत करने में रामवृक्ष और उसके गिरोह की हर संभव सहायता की। सरकार की तो जमीन को 90 साल की लीज पर भी देने की तैयारी थी।
समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सदस्य शाहिद सिद्दीकी ने कहा, ‘मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ित गरीब मुसलमानों को दिसंबर की ठण्ड की रात में शिविरों से भगा दिया गया और राम वृक्ष चूंकि यादव था तो सरकार दो साल तक इंतजार करती रही और हाईकोर्ट के आर्डर के बाद कोर्ट की अवमानाना के डर से कब्जा खाली कराया गया। मुजफ्फरनगर के राहत शिविर में रह रहे मुसलमानों को तो मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि ये लोग कांग्रेस और बीजेपी के एजेंट हैं और समाजवादी पार्टी की सरकार को बदनाम करने की साजिश है। अब मुलायम सिंह को बताना चाहिए कि रामवृक्ष यादव किसका एजेंट था।’

ये सब क्यों चुप रहे!

मथुरा कांड में सपा सरकार की तो कटु आलोचना हो रही है लेकिन इसका जिक्र नहीं हो रहा है कि वहां कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल के विधायक और बीजेपी की सांसद हेमा मालिनी क्यों खामोश रहीं। मथुरा में अवैध कब्जे के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले मथुरा के वकील विजय पाल सिंह तोमर ने कहा, ‘कांग्रेस के विधायक प्रदीप माथुर तो हमेशा अंग्रेजी बोलते हैं। अंग्रेजी बोलना और बात है, सरकार से लड़ना अलग बात। जिले के सभी विधायकों पर सरकार का आतंक था कि यदि आवाज उठाई तो फर्जी मुकदमे में फंसा दिए जाएंगे इसलिए सब चुप थे।’ तोमर सवाल करते हैं कि जिस स्थान पर नो पार्किंग का बोर्ड लगा हो वहां आप अपना वाहन नहीं खड़ा कर सकते तो एक अपराधी बिना सरकार के संरक्षण के सरकार की 280 एकड़ जमीन पर दो साल से अधिक कैसे काबिज रह सकता है।
कांग्रेस के पुराने नेता और अब मथुरा जिले से निर्दलीय विधायक श्याम सुंदर शर्मा ने कहा, ‘इस अंधी बहरी सरकार के सामने क्या अवाज उठाएं। हम पर फर्जी मुकदमे और दर्ज हो जाते। मैंने जिले के अफसरों से बार-बार कहा लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। रामवृक्ष यादव के पूरे प्रकरण को समाजवादी पार्टी की सरकार ने जन्म दिया, कब्जा करवाया, खाद्य सामग्री की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की और साथ में मुफ्त की बिजली भी। सरकार ने ही जवाहर बाग में रामवृक्ष यादव के स्वास्थ्य का ख्याल करते हुए स्वीमिंग पूल भी बनवाया। आज सरकार से कोई पूछने वाला नहीं है कि यह पूल सरकार ने बजट की किस मद से और क्यों बनवाया। और भी सारे साधन सरकार ने ही रामवृक्ष यादव को उपलब्ध करवाए।’
मथुरा शहर के कांग्रेस विधायक और कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर के बारे में श्याम सुंदर शर्मा ने कहा कि वो तो समाजवादी पार्टी की बी टीम हैं। वो सरकार को क्लीन चिट दे चुके हैं और इस मामले में सीबीआई की जांच के भी खिलाफ हैं।
अपना बचाव करते हुए प्रदीप माथुर कहते हैं, ‘केंद्र में इस समय बीजेपी की सरकार है और सीबीआई का नियंत्रण भी उनके हाथ में है। वो अपने राजनीतिक लाभ के लिए उस संस्था का दुरुपयोग अवश्य करेंगे।’ जवाहर बाग में रामवृक्ष के कब्जे के बारे में माथुर ने कहा, ‘दो साल पहले यह मामला इतना गंभीर नहीं था। छह-सात माह पहले इन लोगों ने उत्पात मचाना शुरू किया। वकीलों, तहसील के कर्मचारियों को पीटा, पुलिस और जिला अधिकारी कार्यालय के लोगों से भी मारपीट की। तब मैंने यह मामला प्रदेश के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह, पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री की प्रमुख सचिव अनिता सिंह के सामने रखा और उसके बाद सुरक्षा बल मथुरा रवाना किया गया।’ माथुर का दावा है कि इस मामले में सरकार की कोई गलती नहीं है। सारी गड़बड़ मथुरा के जिला प्रशासन की गलती से हुई। बिना किसी तैयारी के पुलिस के दो अफसर कुछ सिपाहियों के साथ जवाहर बाग खाली कराने पहुंच गए। कांग्रेस विधायक ने दावा किया कि मथुरा के पुलिस अधीक्षक मुकुल द्विवेदी बिना हेलमेट के ही जवाहर बाग की दीवार तोड़ने चल दिए जिसके कारण यह दुखद घटना हुई।
राजनीतिक दलों की निष्क्रियता के आरोप को नकारते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल अनजान ने कहा कि अखिल भारतीय किसान सभा ने पूरे एक साल तक मथुरा में रामवृक्ष यादव के अवैध कब्जे के खिलाफ धरना दिया। मैंने खुद बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती और समाजवादी पार्टी सरकार के जिम्मेदार लोगों को ज्ञापन दिया लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि बाबा जय गुरुदेव का दो हजार हेक्टेयर में फैला आश्रम भी अवैध कब्जा है। मथुरा की जवाहर बाग की जमीन राजा महेंद्र प्रताप ने सरकार को दान में दी थी।

बड़े सपा नेता की शह

मथुरा में हुए खूनी खेल की भेंट चढ़ी दो पुलिस अफसरों सहित चौबीस जिंदगियों की आंच प्रशासन को झुलसाने के बाद अब सत्ता-प्रतिष्ठान तक पहुंची है। घटना के मूल में जयगुरुदेव की सैकड़ों करोड़ की संपत्तियों पर कब्जे की दो गुटों में मची होड़ प्रमुख वजह बताई जा रही है। सपा सरकार में बैठे एक बहुत बड़े नेता का नाम इस घटना के आरोपियों को शह देने में सामने आ रहा है। कहा जा रहा कि यह वही नेता हैं, जिन्होंने चार साल पहले जयगुरुदेव के निधन के बाद उत्तराधिकार विवाद में फंसी उनकी करीब पंद्रह हजार करोड़ की अचल संपत्ति पर बाबा के ड्राइवर पंकज यादव को इस नाते कब्जा दिलाया क्योंकि ड्राइवर उनकी बिरादरी और पार्टी से जुड़ा था। इसके बाद मथुरा के जवाहरबाग में खाली पड़ी तीन सौ एकड़ सरकारी जमीन पर अपने दूसरे चहेते माफिया रामवृक्ष को कब्जा करने की छूट दी। रामवृक्ष यादव जयगुरुदेव की संपत्ति पर कब्जा न पाने से नाराज था। लिहाजा नेता ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की।shivpal-singh-yadav-counters-amit-shah-says-baseless-allegations-levelled
मथुरा की जवाहरबाग जमीन से हाईप्रोफाइल लोगों के जुड़ने के कारण ही दो साल से चाहकर भी पुलिस कब्जा नहीं हटा पा रही थी। अजीबोगरीब मांगों को लेकर दो साल से माफिया रामवृक्ष गुर्गांे के साथ जमीन पर धरने की आड़ में कब्जा किए बैठा था। जब भी प्रशासन कब्जा खाली कराने की सोचता तो बड़े नेता का फोन पहुंच जाता था। यह तो गनीमत रही कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध कब्जा हटाने का फरमान जारी किया। तब जाकर नेता की नहीं चली। यह नेता कौन है, यह तो अधिकृत जांच के बाद पता चलेगा मगर सूबे के दो नौकरशाहों और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने मथुरा कांड के पीछे शिवपाल सिंह यादव को जिम्मेदार ठहराया है जिससे अब शिवपाल को सफाई देनी पड़ रही है।
मथुरा के खूनी खेल के मामले में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने सपा के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव का नाम लिया है। कहा है कि शिवपाल ने जवाहरबाग की जमीन पर कब्जा करने वाले गुंडों को संरक्षण देने का काम किया। इस नाते जांच कर उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।

दरियादिली की कीमत

जयगुरुदेव के ड्राइवर पंकज यादव पर उस नेता ने यूं ही दरियादिली नहीं दिखाई। इसके पीछे मकसद था संपत्ति पर बैकडोर से अपना कब्जा जमाना। इसके लिए दोनों पक्षों में कुछ डील हुई कि जमीन पर कब्जा जमाने के बाद इतना हमारा-उतना तु्म्हारा। हालांकि यह किसी उच्चस्तरीय जांच के बाद ही पता चल पाएगा कि जमीन पर कब्जे में सहयोग को लेकर शिवपाल पर लग रहे आरोप सही हैं या गलत।