संध्या द्विवेदी
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने जलीकट्टू पर लगे बैन को हटाने का आग्रह केंद्र सरकार से किया है। लेकिन केंद्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्रूरता को आधार बनाकर जलीकट्टू पर लगाए बैन के पक्ष में नजर आ रहा है। केंद्र और तमिलनाड्डु के बीच चल रहे इस संवाद के बीच अब कांग्रेस भी कूद गई है।
Congress respects people of Tamilnadu in preserving the culture & tradition of #Jallikattu moreso as adequate safety precautions is taken1/2
— Randeep S Surjewala (@rssurjewala) January 18, 2017
सत्ता से बाहर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने जलीकट्टू के पक्ष में ट्विट किया है। हैरानी इस बात है कि ट्विट की भावना पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा जलीकट्टू के खिलाफ एक गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाए जाने वाले अभियान के बिल्कुल उलट है।
इस मुद्दे पर जब सेंट्रल तमिलनाडु युनिवर्सिटी के मॉस कम्युनिकेशन विभाग के हैड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. फ्रांसिस.पी बर्क्ले से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘यहां के लोग जलीकट्टू को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं। यह परंपरा यहां हजारों साल पुरानी धरोहर के रूप में जानी जाती है। इसलिए इसे लेकर लोग काफी भावुक हैं।’ उनसे जब पूछा गया कि क्या जलीकट्टू को लेकर राजनीति होने के आसार भी हैं? तो उन्होंने कहा ‘जिन मुद्दों के साथ जनभावनाएं जुडी होतीं है उन मुद्दों पर राजनीति करना आसान होता है। वैसे भी इससे पहले जे.जयललिता ने भी जलीकट्टू के समर्थन में केंद्र को पत्र लिखा था। अब एआईएडीएमके की महासचिव शशिकला और प्रधानमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने भी पत्र लिखा है। इस परंपरा के खिलाफ जो भी पार्टी यहां जाएगी वह यहां के लोगों के समर्थन से हाथ धो बैठेगी।’
डॉ फ्रांसिस की बात से यह तो स्पष्ट है कि तमिलनाडु की जनभावना के खिलाफ वहां की राजनीतिक पार्टियां नहीं जा सकतीं। उन्हें पशुओं के खिलाफ होने वाली क्रूरता का एहसास हो तब भी। लेकिन राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की क्या मजबूरी है? तो कहीं इस ट्विट के पीछे कांग्रेस की भावना खुद को देश में परंपरा और संस्कृति की रक्षक पार्टी के रूप में स्थापित करने की तो नहीं! भारत एक ऐसा देश है जहां हर राज्य यहां तक कि जिलों की भी अपनी संस्कृति और परंपराएं होती हैं, त्योहार होते हैं। महाराष्ट्र की बुल कार्ट रेस, कॉक फाइट।
उत्तर प्रदेश में नवदुर्गों के वक्त लोहे छड़ियों से जीभ और शरीर छेदे जवाहरों की परंपरा। ताजिया के वक्त हिंसक होकर भीड़ के लोगों द्वारा खुद को कोड़ों से मारने की परंपरा। और तो और परंपरा के नाम पर औरतों को उनके हक से बेदखल करने की परंपरा। जैसे तलाक प्रथा, हलाला और बहुविवाह प्रथा। खोजेंगे तो कई हिंसक और आज के समय में अपनी प्रासंगिकता खो चुकी कई परंपराएं देश के भीतर मिलेंगी। अब ऐसे में कांग्रेस भला यह मौका कैसे खोने दे!