नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों को 2 महीने में सरकारी बंगला खाली करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के उस आदेश को ख़ारिज कर दिया है जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर मुफ्त सरकारी आवास देने की व्यवस्था की गई थी। यही नहीं, इस फैसले का असर मध्य प्रदेश और बिहार समेत उन तमाम राज्यों पर पड़ेगा जिन्होंने बिना ज़रूरी कानूनी प्रावधान के पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला देने की व्यवस्था बनाए रखी है। एनजीओ लोक प्रहरी ने 1997 में जारी सरकारी आदेश को चुनौती दी थी। 2004 में दायर इस याचिका पर नवंबर 2014 में सुनवाई पूरी हुई। लगभग डेढ़ साल बाद दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर के लिए सरकारी आवास नहीं दिया जा सकता।

इस फैसले का सीधा असर मुलायम सिंह यादव, मायावती, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, रामनरेश यादव और एनडी तिवारी पर पड़ेगा। सभी को 2 महीने में लखनऊ का बंगला खाली करना पड़ेगा। एनजीओ ने अपनी याचिका में “उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज़, अलाउंस एंड अदर फैसिलिटीज एक्ट 1981” का हवाला दिया था। इस एक्ट के सेक्शन 4 में कहा गया है कि मंत्री और मुख्यमंत्री  पद पर रहते हुए एक निशुल्क सरकारी आवास के हकदार हैं। पद छोड़ने के 15 दिन के भीतर उन्हें सरकारी मकान खाली करना होगा।

उत्तर प्रदेश में इस कानून के विरुद्ध मुख्यमंत्री खुद ही अपने आप को दूसरा बंगला आवंटित कर रहे थे। पद से हटने के बाद वे उस बंगले में रहना शुरू कर देते थे। यानी एक समय में न सिर्फ एक से ज़्यादा बंगले ले रहे थे,  बल्कि बिना कानूनी प्रावधान के पद छोड़ने के बाद भी सरकारी बंगले में रह रहे थे। 1996 में इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। तब यूपी सरकार ने 1997 में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला देने का एक सरकारी आदेश जारी कर दिया। इस आदेश को एक्ट का सीधा उल्लंघन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। अब याचिकाकर्ता की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है।