प्रदीप सिंह/प्रधान संपादक/ओपिनियन पोस्ट

वस्तु एवं सेवाकर यानी एक देश एक कर। इसे वास्तविकता बनाने में देश को एक दशक से ज्यादा समय लगा। तमाम बाधाओं-व्यवधानों को पार करके यह अप्रत्यक्ष कर कानून एक जुलाई 2017 से लागू हो गया। संसद में इसे सभी राजनीतिक दलों का समर्थन मिला। कांग्रेस और कुछ अन्य दल कर की दर को अट्ठारह फीसदी निर्धारित करके इसे संविधान संशोधन विधेयक में शामिल कराना चाहते थे। पर सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। उसके व्यवहारिक और सैद्धांतिक कारण थे। कर की दर संविधान संशोधन विधेयक में शामिल करने का अर्थ होता कि सरकार जब भी कर की दरों में कोई भी बदलाव करना चाहती उसे संसद में संविधान संशोधन विधेयक लेकर आना पड़ता। उसके बिना कर की दर में कोई बदलवा संभव नहीं होता। जाहिर है कि यह व्यवहारिक नहीं था। दूसरा कारण सैद्धांतिक था। वह यह कि भारत जैसे सामाजिक-आर्थिक विविधताओं और विषमताओं वाले देश में मर्सिडीज कार और हवाई चप्पल पर टैक्स की एक ही दर नहीं हो सकती। इसलिए विभिन्न वस्तुओं के लिए कर की अलग अलग दरें रखी गईं। आखिरी वक्त तक विपक्ष के एक तबके की कोशिश थी कि इसे फिलहाल टाल दिया जाय। विपक्ष का कहना था कि सरकार जल्दबाजी में इसे लागू कर रही है। सरकार का कहना था कि जब भी लागू करेंगे शुरुआती दिक्कतें तो होंगी ही।

इस क्रांतिकारी कर सुधार के आर्थिक बदलाव को कांग्रेस लाना चाहती थी। उसी ने संसद में सबसे पहले इसके विधेयक का मसौदा रखा। पर वह पास नहीं हो सका। कांग्रेस उसका दोष भाजपा को देती है और भाजपा कहती है कि वह आधा अधूरा था इसलिए संसद की प्रवर समिति को भेजना पड़ा। वजह जो भी रही हो वास्तविकता यह है कि जीएसटी एनडीए की सरकार ही लागू कर पाई। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित पूरे एनडीए ने कांग्रेस के योगदान की सराहना और चर्चा की। पर कांग्रेस इससे न तो पहले संतुष्ट हुई और न ही अब है। कांग्रेस चाहती है कि एनडीए सरकार को इसका राजनीति नुक्सान हो। उसकी उम्मीद दो बातों पर टिकी हुई है। एक, दुनिया के जिन भी देशों में जीएसटी लागू हुई, उसे लागू करने वाली सरकार लौटकर सत्ता में नहीं आई। दूसरा, उन सभी देशों में जीएसटी लागू होने के बाद महंगाई बढ़ी। जाहिर महंगाई बढ़ने का राजनीतिक नुक्सान सत्तारूढ़ दल को ही होता है। इसलिए कांग्रेस ने 2016 में जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक पास नहीं होने दिया। उसकी कोशिश थी कि जीएसटी 2018 से लागू हो जिससे चुनाव के साल में इसकीप रेशानियां अपने चरम पर रहें। ऐसा हो नहीं पाया। अब कांग्रेस को लग रहा है कि उसके लिए सबसे सुनहरा मौका गुजरात चुनाव है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गृह प्रदेश है। देश के किसी और राज्य की तुलना में व्यापार करने वाले सबसे ज्यादा इसी प्रदेश में हैं। इस मुद्दे का चुनावी लाभ अगर वह गुजरात में उठा लेती है। तो जीएसटी को लेकर पूरे देश में संदेह का माहौलल बनाने में कामयाब हो जाएगी। साथ ही गुजरात की जीत उसके लिए 2019 लोकसभा चुनाव में संभावना के द्वार खोलेगी। यही वजह है कि कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनाव में जीएसटी को बड़ा मुद्दा बनाने का फैसला किया है।

जीएसटी लागू करने के साथ सरकार के सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं। पहली चुनौती थी कि कर संग्रह कम न होने पाए। जाएसटी के जरिए राज्य सरकारों में कर जुटाने का अपना अधिकार छोड़ दिया है। राज्यों को आशंका थी कि शुरू के कुछ सालों में कर संग्रह में कमी आ सकती है। राज्यों को आश्वस्त करने के लिए उनकी मांग पर जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक में ही यह प्रावधान कर दिया गया कि पांच साल तक राज्यों के राजस्व में जो भी कमी होगी केंद्र सरकार उसका सौ फीसदी भरपाई करेगी। केंद्र सरकार के लिए यह सबसे अहम मुद्दा था कि राजस्व में कमी न होने पाए। जीएसटी काउंसिल और सरकार के आंकलन के मुताबिक राज्यों को इन करों से औसतन हर महीने इकतालीस हजार करोड़ रुपए की आमदनी होती है। केंद्र सरकार को भी अपने खर्चों, राज्यों को केंद्रीय अंशदान और केंद्रीय योजनाओं के लिए इतनी रकम की जरूरत है। तो यह जरूरी था कि जीएसटी से पपहले महीने यानी जुलाई में कम से कम बयासी हजार करोड़ रुपए का राजस्व मिले। पहले महीने करीब बानबे हजार करोड़ रुपए का राजस्व आया। दूसरे महीने भी करीब इक्यानबे हजार करोड़ रुपए आए। तो सरकार इस मोर्चे पर आश्वस्त हो गई। केंद्र सरकार के सामने दूसरी चुनौती थी कि जीएसटी के कारण दाम न बढ़ने पाएं। उसके लिए कोई अनावश्यक मुनाफा न कमा पाए इसे रोकने की कानूनी व्यवस्था भी की गई। सरकार ने इस मामले में सख्ती का संदेश दिया रेस्त्रां मालिकों के मामले में। पहले एसी और नॉन एसी रेस्त्रां में जीएसटी की दर क्रमशः अट्ठारह और बारह फीसदी रखी गई। इसके साथ ही रेस्त्रां चलाने वालों को इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ भी दिया गया। पर रेस्त्रां मालिकों ने इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ अपने ग्राहकों को खाने पीने की चीजों के दाम घटाकर नहीं दिया। तो जीएसटी काउंसिल ने दस नवम्बर की बैठक में ग्राहकों को राहत देते हुए सभी रेस्त्रां (फाइन स्टार होटलों को छोड़कर) में जीएसटी की दर पांच फीसदी कर दी। पर रेस्त्रां मालिकों को इनपुट टैक्स क्रेडिट से वंचित कर दिया। यह बाकी लोगों के लिए चेतावनी है।

अब बात जीएसटी की समस्या की। जीएसटी में तीन तरह की समस्याएं हैं।  पहली समस्या जीएसटी नेटवर्क के कारण है। यह समस्या वासस्तविक है। इसीलिए सरकार रिटर्न फाइल करने की तारीख बार बार बढ़ा रही है। दूसरी समस्या रिटर्न का गूढ़ होना है। उसके लिए भी सरकार ने इस वित्तीय वर्ष के आखिर तक हर महीने की बजाय तिमाही रिटर्न फाइल करने की छूट दे दी है। इसे सरल बनाने के लिए जीएसटी काउंसिल हर बैठक में कुछ न कुछ राहत दे रही है। तीसरी समस्या ऐसी है जिसका हल कोई सरकार नहीं कर सकती। वह यह है कि व्यापार करने वालों का एक बड़ा वर्ग है जिसने आज तक नम्बर एक में धंधा किया नहीं। उनकी चिंता दोहरी है। पहला कि जीएसटी के बाद अब सब कुछ नम्बर एक में हो गया। उस धंधे की आमदनी पर अब जीएसटी देना पड़ा रहा है। दूसरी चिंता यह है कि उसके कारण निजी आमदनी में जो वृद्धि अब दस्तावेजों में दिखेगी उसके आधार पर आयकर भी देना पड़ेगा। ऐसे लोगों को लगता है कि टैक्स चोरी करना उनका संवैधानिक अधिकार है। उन्हें लगता है कि सरकार उनके गल्ले में हाथ डाल रही है। इसी वजह से जीएसटी के विरोध का स्वर ज्यादा तेज सुनाई दे रहा है। चुनाव का मौका है और कांग्रेस इस विरोध को हवा दे रही है। इसलिए माहौल और गरमा गया है। सरकार ने राजस्व में कमी नहीं होने दी और न ही चीजों के दाम बढ़ने दिए। ऐसे में कांग्रेस के पास जीएसटी विरोध का एक ही आधार है छोटे व्यापारियों का असंतोष। उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने नोटबंदी से उपजे कथित गुस्से को खूब मुद्दा बनाया। पर नतीजा सबके सामने है। कांग्रेस एक बार फिर देश हित की कीमत पर राजनीति पर राजनीति कर रही है। गुजरात का नतीजा उत्तर प्रदेश से ज्यादा अलग होगा ऐसा अबी दिखाई नहीं दे रहा।