अजय विद्युत
उत्तराखंड में कोटद्वार से तीस किलोमीटर दूर एक जगह है लैंसडौन। पर ये पहाड़ के तीस किलोमीटर हैं इसलिए सफर में आधा घंटा में नहीं बल्कि दो घंटे लग जाते हैं। पहाड़ी रास्ता है जो बहुत खतरनाक तो नहीं पर घुमावदार और मोड़ पर कहीं कहीं काफी संकरा है। सुरम्य वातावरण। दो दिन पहले बुधवार को जब मैदानों में गर्मी चप्पल पहने पैरों तक को जला दे रही थी, वहां ठंडी हवा मई में नवंबर की याद दिला रही थी। अंग्रेजों की बसाई जगह है और फौज की छावनी। कुदरत के रमणीक नजारे। पर अब ज्यादातर लोग पहाड़ों के प्राकृतिक नजारों का लुत्फ लेते कम और सेल्फी खींचते या फोटो खिंचाते ज्यादा दिखते हैं।
यहीं एक जगह है भीम पकोडा। लोग इसे महाभारतकालीन बताते हैं। पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां रुके थे और इस स्थान पर खाना बनाया करते थे। पांडवों में भीम सबसे अधिक साहसी और बलशाली थे।
उन्होंने एक चट्टान के ऊपर दूसरी चट्टान रखी थी। कितनी आपदाएं आयीं लेकिन ये चट्टानें वैसी ही टिकी रहीं। आप बिना मेहनत किये ऊपरी चट्टान को हिला तो सकते हैं पर भरपूर जोर लगाकर भी कोई इन्हें गिराना तो दूर ज़रा सी हरकत तक न होगी। हैरत होती है कि इन चट्टानों को एक दूसरे पर इस संतुलन के साथ रखा गया है कि भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद वे जस की तस हैं। खास बात यह कि अगर आप ऊपर रखी चट्टान को एक उंगली से छुएंगे तो वह हिलती है। यह कंपन आप महसूस कर सकते हैं। लेकिन अगर आप अपने दोनों हाथों से पूरी ताकत लगाकर उसे गिराने की कोशिश करें तो वह टस से मस भी नहीं होती।
बड़ी संख्या में सैलानी भीम पकोडा के लिए ही लैंसडौन आते हैं। आश्चर्य ही है कि जो चट्टान केवल एक उंगली से हिल जाती है, वह पूरी ताकत झोंक देने पर भी जरा सी जुंबिश नहीं लेती। आपदाएं तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकीं।