नई दिल्ली। पिछले कई दिनों से इस बात को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी कि क्या सरकार भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को सेवा विस्तार देगी। इन अटकलों पर राजन ने ही विराम लगा दिया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि वे दूसरा कार्यकाल नहीं लेंगे। उनका कार्यकाल चार सितंबर को पूरा हो रहा है। उनके जाने से जो सवाल उभरे हैं उनमें पहला है राजन की जगह कौन लेगा? दूसरा क्या अब मौद्रिक नीति में वित्त मंत्रालय की दखलंदाजी बढ़ जाएगी? वहीं सबसे बड़ा सवाल यह है कि वित्तीय और मुद्रा नीति के निर्धारकों यानी सरकार और आरबीआई के बीच की रस्साकशी का बैंकों के बढ़ते एनपीए यानी खराब कर्ज क्या असर होगा?

रघुराम राजन की तीन उपलब्धियों या उनके तीन मजबूत कदमों पर विचार किया जाए तो राजन ने अपनी नीतियों से कीमतों को काबू में रखा, रुपये पर पकड़ बनाए रखी और एक मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार का निर्माण किया। जब राजन ने कामकाज संभाला था तो विदेशी मुद्रा भंडार महज 280 अरब डॉलर था जो अब करीब 27 फीसदी बढ़कर 363 अरब डॉलर के आसपास है।

विशेषज्ञों की मानें तो रुपये पर अब नए सिरे से दबाव बनेगा। विदेशी मुद्रा भंडार में स्वाभाविक कमी आ सकती है क्योंकि राजन ने जिस एनआरआई डिपॉजिट की छूट बैंकों को दी थी वह सितंबर से नवंबर के बीच परिपक्व होगा। इस मद में करीब 20 अरब डॉलर अर्थव्यवस्था से निकल जाएंगे। दूसरी तरफ कीमतें तेजी से ऊपर जा रही हैं और तमाम भविष्यवाणियों के बावजूद मॉनसून ने अभी तक जोर नहीं पकड़ा है। निर्यात कमजोर है और लगातार 18वें महीने सिकुड़ा हुआ है। यह देखने वाली बात होगी कि असली महंगाई दर नवंबर तक कहां पहुंचती है।

महंगाई अनियंत्रित हुई तो ब्याज दरें घटाने की गुंजाइश कम हो जाएगी। आरबीआई नए सिरे से महंगाई नियंत्रण में लग जाएगी। ऐसे में नए गवर्नर के सामने दरें बढ़ाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं बचेगा। इससे कर्ज महंगा होगा और उद्योगों पर इसका असर नजर आएगा। घरेलू दिक्कतें ही कम नहीं हैं। आरबीआई के सामने और ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने की संभावना से अनिश्चितता का माहौल है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व भी दरें बढ़ाने की तैयारी में है। कच्चे तेल की कीमतें भी ऊपर जा रही हैं।

सरकार इन सारे हालात को जानती है। सेबी ने राजन के जाने से पैदा हालात से निपटने के लिए अपनी रणनीति के दर्शन करा दिए हैं और बाजार को काबू में रखा। बैंकों और विदेशी मुद्रा डीलरों को चेता दिया गया कि वे डॉलर की एकाएक बढ़ने वाली मांग की पूर्ति के लिए तैयार रहें। दलालों,  पोर्टफोलियो मैनेजरों और बाजार में दखल रखने वाले दूसरे संस्थानों पर सरकार की पैनी नजर है कि कहीं छोटे निवेशकों को बाजार में ऊल-जलूल फायदे का लालच देकर न उलझाया जाए। तो ‘राम’ भरोसे चलने वाली मुद्रा नीति को कौन अपने काबू में करेगा यह आने वाले दिनों में जल्द ही सामने आ जाएगा।

राजन को भले ही भाजपा के कुछ नेता अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालात के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हों मगर उन्होंने अपनी नीतियों से महंगाई को काबू में रखने की पूरी कोशिश की। आरबीआई के अगले गवर्नर जो भी बनें उन्हें राजन के पदचिन्हों पर चलकर ही अर्थव्यवस्था को सही दिशा में आगे बढ़ाने में सफलता मिलेगी।