देश के जाने माने सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी प्रकाश सिंह  उत्तर प्रदेश में पुलिस और सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक और कई बहुचर्चित जांच आयोगों के अध्‍यक्ष रह चुके हैं। पुलिस में सुधार के हिमायती रहे प्रकाश सिंह सीबीआई में हुए ताजा घटनाक्रम के लिए पूरी तरह इस संस्‍था में राजनीतिक हस्‍तेक्षप को जिम्‍मेदार मानते हैं। सुनील वर्मा  से उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-

सीबीआई में हुए ताजा विवाद की क्‍या वजह रही?
वर्तमान समय में सीबीआई में जो भी प्रकरण हुआ है और दो बड़े अधिकारी विवादों में आए, या इससे पहले के अधिकारियों की सेवानिवृत्ति के बाद लगे आरोपों के पीछे मूल कारण ये है कि उनका चयन ही गलत हुआ। इन सभी के खिलाफ कई आरोपों को तैनाती के वक्‍त अनदेखा किया गया और राजनीतिक वजहों से उनकी नियुक्ति कर दी गई। जिसका परिणाम ये निकला कि राजनीतिक वरदहस्‍त के कारण ये अधिकारी निरंकुश होते चले गए, उन्‍होंने इस प्रतिष्ठित जांच एजेंसी को अपने अहम और महत्‍वाकांक्षा का जरिया बना लिया था। मेरा स्‍पष्‍ट मानना है कि सीबीआई में जब तक राजनीतिक प्रभाव वाले लोगों की तैनाती होती रहेगी, तब तक ऐसा ही होता रहेगा, जो आज हो रहा है। हो सकता है राजनीतिक वजहों से सरकार ने सीबीआई में लंबे समय से चल रही गड़बड़ियों को नजरअंदाज किया हो लेकिन इसका खमियाजा आज इस पूरी संस्‍था को अपनी साख गंवाकर उठाना पड़ा है।

सीबीआई की साख हाल के दिनों में लगातार कम हुई है, साख बहाली और सीबीआई में सुधार के लिए क्‍या किया जाना चाहिए?
सीबीआई की साख को दो तरह से बहाल किया जा सकता है। एक- इसमें सही तरह के अफसरों की तैनाती हो। वे बेदाग छवि के हों और किसी राजनीतिक दल या उनसे जुड़े लोगों के प्रति उनकी आस्‍था न हो। वे किसी भी धर्म, जाति या राज्‍य के हों लेकिन सीबीआई का संचालन अच्‍छी तरह से और ईमानदारी से कर सकें। दूसरी बात दूरगामी उपाय वाली है। सीबीआई नाम के लिए स्‍वतंत्र संस्‍था है, लेकिन असलियत यही है कि वह आज भी पीएमओ के अधीन काम करती है, इसलिए इसकी स्‍वायत्तता के लिए इसमें जो संशोधन- संस्‍थागत परिवर्तन होने चाहिए उन्‍हें तत्‍काल किया जाए। बहुत दिनों से कहा जा रहा है कि सीबीआई को वैधानिक मान्‍यता दी जाए। एलपी सिंह कमेटी सहित कई संसदीय समितियों ने इस बात की सिफारिश भी की है। सबका सुझाव था कि सीबीआई को सही स्‍वायत्तता और आधारभूत ढांचा दिया जाना चाहिए। लेकिन कोई भी सरकार इस पर अमल नहीं कर सकी। दुर्भाग्‍य की बात है कि सीबीआई का आज तक अपना एक्‍ट भी नहीं है। वह दिल्‍ली पुलिस एक्‍ट के अधीन काम करती है। सरकार वाकई सीबीआई में सुधार के प्रति संजीदा है, तो उसे सीबीआई का एक अलग संविधान बनाना होगा, जिसमें इसके डायरेक्‍टर के चुनाव की प्रक्रिया से लेकर जांच एजेंसी में तैनात किए जाने वाले अधिकारियों के बारे में सख्‍त गाइडलाइन हो। इसके अधिकार क्षेत्र को यूनियन टेरेटरी से निकालकर नेशनल लेवल पर मान्‍यता देनी होगी। अजीब विडंबना है कि राज्‍यों से जुड़े मामलों को लेकर आज भी सीबीआई राज्‍य सरकार की अनुमति की मोहताज रहती है। ये देश की सर्वोच्‍च जांच एजेंसी की हैसियत का मखौल नहीं तो क्‍या है। आप देख लीजिए जैसे ही इसे संवैधनिक दर्जा मिलेगा, पूरी स्‍वतंत्रता मिलेगी और इसके कामकाज में राजनीतिक दखलअंदाजी बंद हो जाएगी- इसकी छवि इसकी परफॉरमेंस अपने आप ठीक हो जाएगी।

क्या कारण है कि सीबीआई जैसी देश की सबसे उम्दा और विशेषज्ञ जांच एजेंसी का कनविक्‍शन रेट बहुत कम है?
अगर राज्‍यों की पुलिस के बनिस्पत देखें तो सीबीआई का कनविक्‍शन रेट बहुत अच्‍छा है। जहां तक मुझे पता है सीबीआई का कनविक्‍शन रेट 60 फीसदी से अधिक है। लेकिन मेरा मानना है कि इसमें सुधार किया जा सकता है इसके जांच के स्‍तर को और ज्‍यादा उच्‍च स्‍तर का होना चाहिए। साथ ही इसके अभियोजन विभाग को और मजबूत करके उसमें जुड़े लोगों की मॉनिटरिंग की जानी चाहिए। कई बार जांच में निचले स्‍तर के अधिकारियों और सीबीआई के वकीलों की आरोपियों से मिलीभगत के कारण भी आरोपी अदालत से छूट जाते हैं। कई बार राजनीतिक प्रभाव वाले आरोपियों के दबाव के कारण भी जांच प्रभावित होती है। इसीलिए मेरा मानना है कि राजनीतिक हस्‍तेक्षप सीबीआई को चौतरफा नुकसान पहुंचा रहा है।

सीबीआई में लोगों की विश्‍वास बहाली के लिए फौरी तौर पर क्‍या किया जाना चाहिए?
मामला अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है और मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई में जरूरी सुधार के लिए कुछ दिशा निर्देश देगा। लेकिन पहले सरकार में राजनीतिक प्रभाव रखने वाले सभी अधिकारियों को इस संस्‍था से बाहर करना चाहिए। सरकार को ऐसा संदेश देना चाहिए कि जांच एजेंसी में उसका कोई हस्‍तेक्षप नहीं है और बेदाग छवि के पुलिस अफसरों को इस संस्‍था में तैनात करना चाहिए।