ओली के इस्‍तीफे का मतलब नेपाल में राजनीतिक संकट

काठमांडो। अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले ही नेपाल के प्रधानमंत्री पद से केपी ओली के इस्तीफे के बाद देश में राजनीतिक संकट एक बार फिर गहरा गया है। ओली ने अविश्वास प्रस्ताव को देश को ‘‘प्रयोगशाला’’ में बदलने और नए संविधान को लागू करने में रोड़े अटकाने की ‘‘विदेशी ताकतों’’ की साजिश करार दिया। पिछले 10 साल के दौरान बनी नेपाल की आठवीं सरकार की अगुवाई करने के लिए ओली पिछले अक्तूबर में प्रधानमंत्री बने थे। गठबंधन सरकार से माओवादियों द्वारा समर्थन वापस ले लिए जाने के बाद ओली अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे थे।

अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए तैयार बैठे सांसदों से 64 साल के ओली ने कहा, मैंने इस संसद में एक नए प्रधानमंत्री के चुनाव का रास्ता साफ करने का फैसला किया है और मैंने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया है। ओली ने इस्तीफा उस वक्त दिया जब सत्ता में साझेदार दो अहम पार्टियों ‘मधेसी पीपुल्स राइट्स फोरम’ डेमोक्रेटिक और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने नेपाली कांग्रेस और प्रचंड की अगुवाई वाली सीपीएन-माओइस्ट सेंटर की ओर से उनके खिलाफ पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने का फैसला किया।

इन पार्टियों ने ओली पर आरोप लगाया था कि उन्होंने पिछली प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं की। ओली की जगह लेने के लिए प्रबल दावेदार बताए जा रहे माओवादी प्रमुख प्रचंड ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया था कि वह अहंकारी और आत्मकेंद्रित हैं। उन्होंने कहा कि इससे उनके साथ काम करते रहना संभव नहीं रह गया था।

बहरहाल, 598 सदस्यों वाली संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए ओली ने प्रचंड एवं अन्य की ओर से लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने देश के नए संविधान का विरोध कर रहे मधेसियों, जिनमें ज्यादातर भारतीय मूल के हैं, की शिकायतों के निदान के लिए वार्ता का समर्थन किया। मधेसियों ने कुछ महीने पहले प्रदर्शन शुरू किए थे जिससे भारत से वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुई थी।

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